बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Wed, 01 May 2024 05:34 PM IST
Supreme Court: क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है और इस कारण राज्य के अधिकारी इसे ‘सार्वजनिक हित’ के लिए अपने कब्जे में ले सकते हैं? उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस जटिल कानूनी सवाल पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।
सुप्रीम कोर्ट (फाइल) – फोटो : एएनआई
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क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है और इस कारण राज्य के अधिकारी इसे ‘सार्वजनिक हित’ के लिए अपने कब्जे में ले सकते हैं? उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस जटिल कानूनी सवाल पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
इस मसले पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ विचार कर रही है। पीठ 16 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) द्वारा 1992 में दायर मुख्य याचिका भी शामिल है। पीओए ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय VIII-A का विरोध किया है। 1986 में डाला गया, यह अध्याय राज्य के अधिकारियों को उपकर भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है जिसके आसपास रहने वाले 70 प्रतिशत लोग रिस्टोरेशन के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।
म्हाडा अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 39 (b) के तहत लाया गया जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का हिस्सा है, और यह राज्य के लिए एक ऐसी नीति बनाना अनिवार्य बनाता जिससे “समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए ताकि आम लोगों की सर्वोत्तम भलाई हो सके।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा अदालत में प्रतिनिधित्व करने वाली राज्य सरकार ने कहा कि म्हाडा प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 31 सी द्वारा संरक्षित हैं, जिसे 1971 के 25 वें संशोधन अधिनियम द्वारा कुछ डीपीएसपी को प्रभाव देने वाले कानूनों की रक्षा के इरादे से डाला गया था।
नौ सदस्यीय पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति आगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं। पीओए और अन्य ने अधिनियम के अध्याय VIII-A को चुनौती दी है, जिसमें दावा किया गया है कि अध्याय के प्रावधान जमीन मालिकों भेदभाव करते हैं और उन्हें बेदखल करने का प्रयास करते हैं। पीओए द्वारा 1992 में मुख्य याचिका दायर की गई थी और 20 फरवरी, 2002 को नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेजे जाने से पहले इसे तीन बार पांच और सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठों में भेजा गया था।
मुंबई पुरानी, जीर्ण-शीर्ण इमारतों के साथ एक घनी आबादी वाला शहर है। ये खस्ताहाल इमारतें मरम्मत की कमी के कारण रहने के लिहाज से असुरक्षित हैं पर इसके बावजूद इनमें किरायेदार रहते हैं। इन इमारतों की मरम्मत और फिर से निर्माण के लिए म्हाडा अधिनियम, 1976 के तहत यहां रहने वालों पर एक उपकर लगाया जाता है जो मुंबई बिल्डिंग रिपेयर एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड (MBRRB) को भुगतान किया जाता है। यह बोर्ड इमारतों की मरम्मत और पुनर्निर्माण की देखरेख करता है। मुंबई में लगभग 13,000 ऐसी इमारतें हैं जिनकी मरम्मत या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। हालांकि, किरायेदारों के बीच या मालिकों और किरायेदारों के बीच डेवलपर की नियुक्ति पर मतभेदों के कारण उनके रीडेवलपमेंट में अक्सर देरी होती है।
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