नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड – फोटो : एएनआई (फाइल)
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नेपाल की सियासत में समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ की कुर्सी खतरे में पड़ती हुई नजर आ रही है। दरअसल, उनके मंत्रिमंडल के आठ मंत्री इस्तीफ दे चुके हैं। प्रचंड की सरकार सीपीएन-यूएमएल के समर्थन से चल रही थी। हालांकि प्रचंड ने इस्तीफा न देने और संसद में विश्वस मत का सामना करने का फैसला किया है। ऐसे में अटकलें शुरू हो गई हैं कि क्या यह प्रचंड की अपने पूर्व सहयोगी से प्रतिद्वंद्वी बने केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री का पद संभालने से रोकने की रणनीति है।
नेपाली कांग्रेस (नेक्रां) के प्रमुख शेर बहादुर देउबा और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने सोमवार की रात नया गठबंधन बना लिया था। उन्होंने नेपाल कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल गठबंधन की सरकार बनाने के लिए सत्ता साझेदारी के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
सत्तारूढ़ गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने प्रचंड से समर्थन वापस ले लिया था। जिसके बाद आठ कैबिनेट मत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे गुरुवार को प्रधानमंत्री ने स्वीकार कर लिए थे। इस बीच जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) के प्रमुख अशोक राय के एक करीबी सूत्र ने बताया कि प्रचंड के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में जेएसपी का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन मंत्री भी अपने पदों से इस्तीफा देने की तैयारी कर रहे हैं। संसद के निचले सदन में पार्टी की सात सीटें हैं और उसने नेपाल कांग्रेस-नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी- एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी गठबंधन को समर्थन देने का फैसला किया है।
नेपाल की 275 सदस्यीय प्रतिनिधइ सभा में सबसे बड़ी पार्टी नेपाल कांग्रेस के पास 89 सीटें हैं। जबकि सीपीएन-यूएमएल के पास 78 सीटें हैं। प्रचंड की पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी- माओवादी केंद्र (सीपीएन-एमसी) के पास 32 सीटें हैं।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत समाजवादी (सीपीएन-यूएस) के एक वरिष्ठ नेता घनश्याम भुशाल ने कहा कि उनकी पार्टी जब प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार सदन में विश्वास मत हासिल करेगी तो वह उसके पक्ष में मतदान करेगी। गुरुवार तक प्रचंड को प्रतिनिधि सभा में सिर्फ 63 सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन सदन में विश्वास मत जीतने के लिए उन्हें 138 वोटों की जरूरत है। प्रचंड पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि सीपीएन-यूएमएल की मांग पर भी वह पद नहीं छोड़ेंगे। जबकि निचले सदन में उन्होंने बहुमत खो दिया था और इसके बजाय विश्वास मत का सामना करने का फैसला किया था जिसके लिए उनके पास तीस दिन का समय है।
राजनीतिक विश्लेषक प्रचंड के इस कदम को एक रणनीति मान रहे हैं कि वह पद से इस्तीफा न दें, बल्कि सदन में विश्वास मत का सामना करें। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री प्रचंड, ओली को किसी भी तरह से प्रधानमंत्री बनने से रोकना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यह नेपाली कांग्रेस और यूएमएल के बीच टकराव पैदा करने का एक कदम हो सकता है। दोनों बड़े दल पहले चरण में ओली को प्रधानमंत्री बनाने पर सहमत हुए हैं।