ब्यूरो, इंफाल/चुराचांदपुर (मणिपुर)। Published by: निर्मल कांत Updated Sat, 04 May 2024 06:50 AM IST
Manipur: हिंसा में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई। कई हज़ार लोगों को घर-द्वार छोड़ कर विस्थापित होना पड़ा। इससे पहले पूर्वोत्तर राज्य के ये तीन मुख्य जातीय समूह ऐतिहासिक रूप भौगोलिक स्थिति के मुताबिक यहां रहते आ रहे थे।
मणिपुर हिंसा में जान गंवाने वाले लोगों की याद में कैंडल मार्च – फोटो : एएनआई (फाइल)
विस्तार
मणिपुर में जातीय हिंसा को एक साल हो गया और उसका दंश आज भी लोगों को सता रहा है। मणिपुरी इस दिन को कैसे भूल सकते हैं जब उनका गृह प्रदेश दो समुदायों में बंट गया और पीढ़ियों से साथ रहने वाले परिवार व पड़ोसी अलग हो गए। हजारों लोगों की जिंदगी उलट गई। ठीक एक साल पहले 3 मई, 2023 की तारीख मणिपुर के लोगों के जेहन में एक बुरी याद बन कर छप गई।
उस दिन यहा राज्य एक आभासी नियंत्रण रेखा से दो अस्तित्वों में बंट गया। इस दिन मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ की वजह से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष छिड़ा था। इसने वहां के बाशिंदों के रोजमर्रा की जिंदगी पर अनगिनत तरीकों से असर डाला।
हिंसा में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई। कई हज़ार लोगों को घर-द्वार छोड़ कर विस्थापित होना पड़ा। इससे पहले पूर्वोत्तर राज्य के ये तीन मुख्य जातीय समूह ऐतिहासिक रूप भौगोलिक स्थिति के मुताबिक यहां रहते आ रहे थे। मसलन घाटी में मैतेई, दक्षिणी पहाड़ियों में कुकी और उत्तरी पहाड़ियों में नागा, लेकिन ये समुदाय बीते साल मई तक कभी भी पूरी तरह से इतनी दुश्मनी के साथ अलग नहीं हुए थे। अब मैतेई आबादी इंफाल घाटी में है और कुकी पहाड़ियों में चले गए हैं। राज्य की गहरी जातीय दरारों ने इस राज्य को मैदानी और पहाड़ी जिलों की सीमाओं में बांट दिया।
पुलिस चौकियों में बदली प्रदेश की सीमाएं
बिष्णुपुर और कुकी बहुल चूराचांदपुर के बीच की सीमा या मैतेई नियंत्रण वाली इंफाल पश्चिम और कुकी ‘क्षेत्र’ कांगपोकपी के बीच की चौकियां कमोबेश दुश्मन देशों की सीमाओं सी नजार आने लगी है। कंसर्टिना कॉइल, बख्तरबंद वाहन, सशस्त्र सुरक्षाकर्मी, सैंडबैग बंकर वाली इन चौकियों न केवल वहां के निवासियों को बल्कि पुलिस कर्मियों और सरकारी अधिकारियों को भी अलग-थलग कर दिया है। अपने कई सहयोगियों की बात दोहराते हुए एक अधिकारी कहते हैं,राज्य कम से कम दो दशक पीछे चला गया है। मैतेई या कुकी समुदायों से जुड़े पुलिस कर्मी और सुरक्षा बलों के लोग भी अपने-अपने क्षेत्रों तक ही सीमित हैं और दूसरी तरफ नहीं जा सकते।
तनाव के बीच फंसे लोग
तनाव ने लोगों को छोटे और बड़े दोनों स्तरों पर प्रभावित किया है। इंफाल में सुविधाएं पहुंच से बाहर होने की वजह से चुराचांदपुर के लोग चिकित्सा के लिए आइजोल की 12 घंटे से अधिक की यात्रा कर रहे हैं। वहीं, इंफाल हवाईअड्डा कुकी लोगों के लिए बंद है। कॉलेज के छात्र जो बाहर के विश्वविद्यालयों में स्थानांतरण की मांग करने के बजाय चुराचांदपुर में ही रह गए है, उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उत्तर पुस्तिकाएं सीलबंद लिफाफे में जिला आयुक्त कार्यालय में जमा कराने का विकल्प दिया है। उन्हें उम्मीद है कि उनकी उत्तर पुस्तिकाओं पर निशान लगाए जाएंगे और वे सुरक्षित रहेंगी। वहीं, राज्य की आबादी में 53 फीसदी मैतई पहाड़ों से विस्थापित हैं और उनके अपने मुद्दे हैं।
चुराचांदपुर के ट्रांसपोर्ट कारोबार करने वाले एक मैतई का कहना है, एक जिदंगी घर बनाने में वर्षों लगते हैं, हमारा सब खत्म हो गया। हिंसा प्रभावित राज्य में शस्त्रागारों से लूटे गए 4,200 से अधिक हथियार अभी भी लापता हैं और सीमांत क्षेत्रों में हथियारों संग युवकों को देखना आम बात है।
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