लोकसभा चुनाव परिणाम 2024
(Source: ECI / CVoter)
होमन्यूज़इंडियाLok Sabha Election Result 2024: बिना नीतीश-नायडू के भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं नरेंद्र मोदी, जानें क्या है वो सियासी फॉर्मूला
Lok Sabha Election Result 2024: बिना नीतीश-नायडू के भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं नरेंद्र मोदी, जानें क्या है वो सियासी फॉर्मूला
Lok Sabha Election Result 2024: नीतीश और नायडू अगर बीजेपी का साथ छोड़ देते है तो एनडीए बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगी. ऐसे निर्दलीय और छोटे दल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाएगी.
By : अविनाश राय | Updated at : 05 Jun 2024 10:58 PM (IST)
बिना नीतीश-नायडू के कैसे पीएम बन सकते हैं नरेंद्र मोदी ( Image Source :X/@narendramodi )
Lok Sabha Election Result 2024: नरेंद्र मोदी तीसरी बार भी प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन तब जब चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों ही एनडीए में बने रहेंगे. क्योंकि बीजेपी के पास अपनी महज 240 सीटें हैं और बहुमत के लिए उसे 32 और सीटों की जरूरत है. टीडीपी और जेडीयू मिलाकर 28 सीटें जीत चुकी है. चिराग पासवान के पास पांच सीटें हैं.
नायडू-नीतीश पर टिका है पूरा समीकरण
इस तरह से तीन सहयोगियों की बदौलत बीजेपी 272 के बहुमत के आंकड़े को पार कर रही है, लेकिन क्या हो, अगर चंद्रबाबू नायडू बीजेपी का साथ छोड़ दें. क्या हो अगर नीतीश कुमार फिर से पलटी मार दें. क्या नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार पर ही टिका है या फिर इन दोनों के साथ के बिना भी नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बन सकते हैं.
लोकसभा की कुल 543 सीटों में से अकेले बीजेपी के पास 240 हैं. एनडीए के पास 294 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा है. यानी कि एनडीए के पास बहुमत से 22 सांसद ज्यादा हैं. अब अगर सिर्फ चंद्रबाबू नायडू साथ छोड़ते हैं, तब भी एनडीए का आंकड़ा 278 का होगा, जो बहुमत से 6 ज्यादा ही है. अब अगर चंद्रबाबू नायडू के साथ नीतीश कुमार भी साथ छोड़ ही देतें हैं, तब एनडीए का आंकड़ा होगा 266 और ये आंकड़ा बहुमत के आंकड़े से 6 कम है.
बिना नायडू-नीतीश के कैसे पीएम बन सकते हैं मोदी
तो फिर क्या होगा. अगर नीतीश और नायडू दोनों ही बीजेपी का साथ छोड़ देते हैं, ऐसे में तो एनडीए बहुमत के आंकड़े को पार ही नहीं कर पाएगा. तो फिर क्या होगा. फिर होगी राजनीति, जो इस देश के लोकतंत्र को और भी खूबसूरत बनाती है. क्योंकि तब काम आएंगे वो छोटे दल जो न तो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ हैं और न ही कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया के साथ हैं. इसके अलावा ऐसे वक्त में निर्दलीय सांसदों की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाएगी.
अब कैसे, उसको भी समझ लेते हैं. और मान लेते हैं कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों ने ही बीजेपी का साथ छोड़ दिया है. तब भी एनडीए के पास 266 का आंकड़ा है, जो बहुमत से महज 6 कम है और इन 6 सीटों की भरपाई तो बीजेपी कुछ छोटे दलों और निर्दलीय सांसदों के साथ मिलकर कर सकती है. इस चुनाव में कुल सात निर्दलीय सांसदों ने जीत दर्ज की है.
निर्दलीय सांसदों की बढ़ेगी भूमिका
इन सात सांसदों में लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा, बारामूला के सांसद इंजीनियर राशिद, दमन और दीव के सांसद उमेशभाई बाबूभाई पटेल, महाराष्ट्र की सांगली लोकसभा के सांसद विशाल प्रकाश बाबू पाटिल, खडूर साहिब के सांसद खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह, फरीदकोट के सांसद सरबजीत सिंह खालसा और बिहार की पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव शामिल हैं.
इन सात लोगों में से पप्पू यादव, अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा के अलावा और चार निर्दलीय सांसद जरूरत पड़ने पर बीजेपी को समर्थन दे सकते हैं. बाकी दो और की जरूरत है तो उसकी भरपाई तो हो ही जाएगी. अब चाहे वो भरपाई जगनमोहन रेड्डी कर दें या फिर कोई और, लेकिन इन सीटों की भरपाई तो हो ही जाएगी. लिहाजा बिना नीतीश कुमार और बिना चंद्रबाबू नायडू के भी सरकार बनाने की नौबत आई तो भारतीय जनता पार्टी पीछे नहीं हटेगी. छोटे दलों और निर्दलीयों के साथ बीजेपी बहुमत के आंकड़े को पार कर ही जाएगी.
सरकार के लिए होंगे कई चैलेंज
हालांकि सवाल तब भी बरकरार रहेगा कि क्या बीजेपी ऐसी गठबंधन की सरकार चला पाएगी? क्योंकि गठबंधन की अपनी मजबूरियां होती हैं, जिनमें अपने हर सहयोगी की हर एक बात का बड़ा ख्याल रखना पड़ता है. पिछले 10 साल से जिस तरह से केंद्र में बीजेपी ने सरकार चलाई है और जैसे फैसले लिए हैं, उसमें गठबंधन के सहयोगियों की किसी बात का कोई मोल रहा नहीं है.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं तीन कृषि कानून, जिनके खिलाफ बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि अकेले बीजेपी 303 के आंकड़े पर थी, जो बहुमत से 31 ज्यादा था.
अब एक-एक निर्दलीय भी अपनी बात मजबूती से रखेगा. फैसले का विरोध करेगा और बात न मानने पर हर रोज सरकार गिराने की धमकी देगा. ऐसी धमकियों के साथ नरेंद्र मोदी ने न तो गुजरात में मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया है और न ही केंद्र में प्रधानमंत्री के तौर पर काम किया. लिहाजा तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी के सामने चुनौतियों का अंबार है, जिसे पार पाना कतई आसान नहीं होगा.
Published at : 05 Jun 2024 10:58 PM (IST)
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