हाइलाइट्स
वैज्ञानिकों ने लगाया इसका पता कि कैसे फूड पैकेजिंग होती है खतरे वालीखाद्य पैकेजिंग में मौजूद 14,000 केमिकल्स में 25 फीसदी मानव शरीर में पाए गएवैज्ञानिकों को ये खून से लेकर बाल या ब्रेस्ट मिल्क के नमूनों में मिले
आपने बाजार से पैक की हुई सब्जी ली हो या दूध या फिर दही या खाने का कोई भी सामान जो पैक्ड है. रेस्तरां से अगर आपके घर टेकआउट कंटेनर आ रहा हो या फिर सॉफ्ट ड्रिंक से भरी प्लास्टिक की बोतलें या फिर केन. हर किसी में किसी ना किसी तरह बनाने में, चिपकाने में या पैकिंग में कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल होता है, जो वहां खाने के सामानों में घुलता है और फिर हमारे शरीर में जाकर वहां जगह बना लेता है.
दिन भर में हम जो कुछ भी अब खा या पी रहे हैं वो सभी तकरीबन किसी ना किसी तरह से पैकिंग में ही आता है. इसका हम धडल्ले से यूज करते हैं. नए अध्ययन से पता चलता है कि इस तरह की पैकेजिंग से रासायनिक नुकसान होता है. ये हमारे शरीर को प्रभावित करता है. बाद में कई तरह की बीमारियों की वजह बन सकता है.
सवाल – ये किस अध्ययन में पता लगा, इसमें किसने नमूने पाये गए?
– स्विट्जरलैंड और अन्य देशों के शोधकर्ताओं ने अपने ताजे अध्ययन में ये पाया. उन्होंने अध्ययन के बाद देखा कि खाद्य पैकेजिंग में मौजूद लगभग 14,000 ज्ञात रसायनों में से 3,601 – या लगभग 25 प्रतिशत – मानव शरीर में पाए गए हैं.
उन रसायनों में धातु, कार्बनिक यौगिक, पॉलीफ्लुओरोएल्काइल पदार्थ या PFAS और कई अन्य तरह के केमिकल्स शामिल हैं. ये शरीर के अंदर पूरे सिस्टम को बाधित करते हैं और अन्य बीमारियों का कारण बनते हैं.जर्नल ऑफ़ एक्सपोज़र साइंस एंड एनवायरनमेंटल एपिडेमियोलॉजी में इस बारे में अध्ययन प्रकाशित किया गया है.
सवाल – पैकिंग के बारे में माना जाता है कि ये आमतौर पर नुकसानदायक नहीं होती तो ऐसा कैसे हो रहा है?
– फूड पैकेजिंग फोरम की मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी और इस अध्ययन की लेखिकाओं में एक जेन मुनके का कहना है, “कुछ ऐसे खतरनाक रसायन हैं जो मानव स्वास्थ्य पर गलत असर डालते हैं. ये रसायन पैकेजिंग करते समय बाहर निकल जाते हैं और पैकेट के अंदर रखी खाद्य सामग्री को प्रभावित करने लगते हैं.”
सवाल – पैकिंग के फूड पैकेट्स कब और कैसे इस्तेमाल करने पर सबसे ज्यादा खतरा होता है?
– जब आप फूड पैकेट्स को गरम तापमान पर गर्म करने के लिए रख देते हैं. यही वजह है कि वैज्ञानिक टेकआउट कंटेनर में रखे भोजन को माइक्रोवेव करने से बचने की सलाह देते हैं, ये वो भोजन होता है जिनको आनलाइन आर्डर करके या होटलों से पैक कराकर आप घर लाते हैं. जिन खाद्य पदार्थों में वसा या एसिड ज्यादा होता है, वो भी पैकेजिंग मटीरियल से अधिक रसायनों को सोखने लगते हैं. खाना जितने छोटे डिब्बे में रखा होगा, भोजन उतना ज्यादा प्रभावित होगा.
सवाल – इसका मतलब ये हुआ कि रेल यात्रा से लेकर फ्लाइट में जो खाना पैक होकर दिया जाता है, वो सब इस तरह प्रभावित होता होगा?
– अगर अध्ययन से निकले निष्कर्षों की बात करें तो कहना चाहिए बिल्कुल ट्रेन से लेकर फ्लाइट तक में जो पैक खाना दिया जाता है, वो घंटों पहले बनाकर पैक कर दिया जाता है. अगर आपके भोजन में तेल और सिरके से जुड़ी कोई खाद्य चीज रखी हो.
सवाल – साइंटिस्ट किस तरह इस नतीजे पर पहुंचे?
– साइंटिस्ट ने पहले फूड पैकेजिंग और फूड प्रोसेसिंग मशीनों में मौजूद केमिकल्स की लिस्ट बनाई. फिर मानव शरीर में मौजूद रसायनों की जांच की. फिर इन दोनों चीजों का आंकलन वर्ल्ड टीशूज डेटाबेस से उन्हें मिलाया.
“हममें से ज्यादातर लोग ये नहीं सोचते ज़्यादातर प्लास्टिक पैकेजिंग हमारे भोजन में रसायन कैसे मिलाती है, ये मानव को संकट में डालने का सबसे अहम सोर्स है. इससे जाहिर है कि हानिकारक रसायन बड़े पैमाने पर मानव के अंदर घुस रहे हैं.
सवाल – क्या फूड पैकेट्स या फूड पैकेजिंग में निकलने वाले ज्यादातर केमिकल्स प्लास्टिक मटीरियल वाली चीजों से आते हैं?
– खाद्य पैकेजिंग से निकलने वाले अधिकांश रसायन प्लास्टिक से आते हैं लेकिन सभी नहीं. यहां तक कि कागज और कार्डबोर्ड पैकेजिंग से भी आते हैं, क्योंकि उनको बनाने और फिर रिसाइकल करने में केमिकल्स का इस्तेमाल होता है.
सवाल – कागज को बनाने में कितने तरह के कैमिकल्स का इस्तेमाल होता है?
– पेपर मेकिंग प्रोसेस में करीब सौ केमिकल्स का इस्तेमाल होता है, इसमें कई तरह के पल्पिंग केमिकल, ब्लीचिंग केमिकल, साइजिंग एजेंट, कागज को मजबूत बनाने वाले एजेंट केमिकल, रंगने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल और अन्य तरह के केमिकल यूज किये जाते हैं, जो क्लोरीन से लेकर सोडियम, सल्फर, कार्बोनेट, पॉलीमाइन आदि होते हैं. यहां तक जिस सफेद कागज की शीट का इस्तेमाल करते हैं और इसे सुरक्षित मानते हैं, वो भी सुरक्षित नहीं. व्हाइट पेपर की एक सामान्य शीट में वजन के हिसाब से लगभग 5-20 फीसदी केमिकल हो सकते हैं.
सवाल – आमतौर पर फूड आइटम्स की पैकेजिंग में सुरक्षित मानकर पेपरबोर्ड का भी खूब इस्तेमाल होता है, क्या इसमें केमिकल होते हैं?
– बिल्कुल होते हैं, पेपरबोर्ड में कुल रासायनिक सामग्री वजन के हिसाब से 5% से 30% तक हो सकती है. उदाहरण के लिए, उच्च गुणवत्ता वाले पेपरबोर्ड में मानक ग्रेड की तुलना में अधिक फिलर्स, पिगमेंट और ऑप्टिकल ब्राइटनर हो सकते हैं. क्योंकि इनको बनाने में पल्पिंग, ब्लीचिंग, साइजिंग, स्ट्रेंथनिंग एजेंट, फिलर्स, पिगमेंट और ऑप्टिकल ब्राइटनर का खूब इस्तेमाल होता है.
सवाल – क्या कागज और पेपरबोर्ड की पैकेजिंग करते समय जिस गोंद या चिपकाने वाले आइटम का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें भी केमिकल्स होते हैं?
– बिल्कुल. पेपर फूड पैकेजिंग में चिपकने वाले पदार्थ यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि पैकेजिंग सुरक्षित है खासकर खाद्य संपर्क के लिए सुरक्षित है लेकिन इसमें भी तमाम केमिकल्स का इस्तेमाल होता है. मसलन हॉट मेल्ट चिपकने वाले पदार्थ ऐसे केमिकल्स होते हैं, जो गर्म करके चिपकाए जाते हैं और ठंड होने पर चिपक जाते हैं. इसमें जिलेटिन, सिंथेटिक और गोंद का इस्तेमाल होता है.
हालांकि ये FDA दिशानिर्देशों का पालन करते हुए पैकेजिंग में इस्तेमाल होती है लेकिन नए साइंटिस्ट अध्ययन से लगता है कि इन सभी में केमिकल्स हैं और वो किसी न किसी तौर पर खाद्य पदार्थों के संपर्क में आता ही है.
Tags: Chemical Factory, Food, Food business, Food Insecurity, Single use Plastic
FIRST PUBLISHED :
September 17, 2024, 21:57 IST