Monday, January 6, 2025
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Ethnic Conflict: ‘राष्ट्रपति शासन से ही मणिपुर संकट का समाधान’; सांसद बोले- मैतेई-कुकी के लिए अलग हों प्रशासन

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मणिपुर में दिन प्रतिदिन बढ़ते संघर्ष के समाधन को लेकर शुक्रवार को मिजोरम से राज्यसभा सांसद के. वनलालवेना ने अपना बयान जारी किया है। जिसमें उन्होंने मणिपुर में जातीय संघर्ष को खत्म करने के लिए मैतेई और कुकी-जोज़ समुदायों के लिए अलग प्रशासनिक इकाइयों के गठन की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने भयावह संकट को रोकने के लिए पहला और जरूरी कदम के तौर पर राष्ट्रपति शासन लागू करने का आह्वान किया है। 

राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग

भाजपा सहयोगी मिजोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) नेता वनलालवेना ने हिंसा रोकने के लिए पहला और सबसे जरूरी कदम राष्ट्रपति शासन लागू करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाना बहुत जरूरी है। इसके दौरान केंद्र को स्थिति का गहन अध्ययन करना चाहिए और मैतेई और आदिवासी समुदायों के कब्जे वाली ज़मीन का सीमांकन करना चाहिए। बता दें कि मई 2023 से मणिपुर में शुरू हुई जातीय हिंसा में अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। 

अलग प्रशासन इकाईयों के गठन पर दिया जोर

राज्यसभा सांसद वनलालवेना ने हिंसा रोकने के लिए दूसरे कदम में तौर पर दोनों समुदायों के लिए अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयों के गठन पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों समुदायों को अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयों के तहत चलाना चाहिए, क्योंकि उनकी ज़मीन और जीवनशैली के बीच बहुत फर्क है। उन्होंने कहा पहाड़ी जनजातियां अब घाटी में नहीं जा सकतीं और मैतेई लोग पहाड़ी इलाकों में नहीं जाना चाहते। दोनों समुदायों के बीच नए प्रशासनिक इकाइयाँ बनाई जानी चाहिए ताकि स्थायी समाधान संभव हो सके और संघर्ष खत्म हो सके।

हिंसा अब राज्य सरकार के नियत्रंण से बाहर

मिजोरम नेशनल फ्रंट के नेता ने आगे मणिपुर सरकार पर पक्षपाती होने का आरोप लगाचते हुए कहा कि मणिपुर में जातीय हिंसा अब राज्य सरकार और पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। उनका मानना है कि राष्ट्रपति शासन से ही स्थिति सुधरेगी, लेकिन इसके साथ ही दोनों समुदायों के लिए अलग-अलग प्रशासन जरूरी है। 

सीएम बीरेन को हटाने में असमर्थ भाजपा

इसके साथ ही वनलालवेना ने यह भी कहा कि भाजपा की सरकार मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने में असमर्थ है क्योंकि वह अपनी पार्टी की छवि बचाना चाहती है। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि अगर केंद्र ने पहले ही राष्ट्रपति शासन लगाया होता, तो हिंसा रोकी जा सकती थी लेकिन भाजपा अपनी छवि बचाने के लिए ऐसा नहीं कर सकी।

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