पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की नींव रखने का फैसला किया तो उनके सामने तमाम कठिनाईयां आईं. सबसे बड़ा संकट पैसे का था. मालवीय ने चंदा जुटाना शुरू किया और देशभर में घूमने लगे. इसी क्रम में वो हैदराबाद के निजाम से मिलने पहुंचे, जो उस वक्त भारत के सबसे अमीर शख़्स माने जाते थे और बेशुमार दौलत के मालिक थे. पंडित मदन मोहन मालवीय ने निजाम से कहा कि वो बनारस में यूनिवर्सिटी बनाने के लिए आर्थिक सहयोग दें, पर निजाम ने मदद देने से साफ इनकार कर दिया और हाथ खड़े कर दिये.
निजाम ने कहा- जूती के अलावा कुछ नहीं
निजाम ने मालवीय से कह दिया कि उनके पास देने के लिए जूती के अलावा कुछ नहीं है. पंडित मदन मोहन मालवीय बहुत विनम्र स्वभाव के थे. उन्होंने निजाम की तल्खी बर्दाश्त की और कहा- आप अपनी जूती ही दे दीजिये. मालवीय उस जूती के साथ वापस लौटे तो निजाम को सबक सिखाने की ठानी. बनारस लौटने के बाद पंडित मदन मोहन मालवीय ने निजाम की जूती की नीलामी शुरू कर दी. उसके तमाम खरीदार भी सामने आने लगे. इसके बाद यह खबर निजाम तक पहुंची तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और पछतावा भी. इसके बाद उन्होंने एक फरमान के जरिये 1 लाख का चंदा भिजवाया.
हालांकि कुछ इतिहासकार जूती वाली बात से इत्तेफाक नहीं रखते और दावा करते हैं कि मालवीय खुद चंदा मांगने नहीं गए, बल्कि उन्होंने विवि के चांसलर के जरिये चंदा मांगा था और निजाम ने फौरन इसे मंजूर भी कर दिया था.
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बीएचयू के लिए कितना चंदा जुटाया?
पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के लिए शावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की और उन्होंने उस जमाने में कुल 1 करोड़ 64 लाख की रकम जमा कर ली थी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बनाने के लिए मदन मोहन मालवीय को 1360 एकड़ जमीन दान में मिली थी. इसमें 11 गांव, 70 हजार पेड़, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला शामिल था.
क्यों महात्मा गांधी से असहमत हो गए
महात्मा गांधी, पंडित मदन मोहन मालवीय को अपनी अंतरात्मा का ‘रक्षक’ मानते थे और सार्वजनिक मंचों पर उन्हें अपना बड़ा भाई कहा करते थे. हालांकि जब सिद्धांतों की बात आती थी तो मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी से असहमत होने में भी पीछे नहीं हटते. उदाहरण के तौर पर साल 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान, जब गांधी जी ने छात्रों से स्कूलों का बहिष्कार करने को कहा, तो मालवीय ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी व्यक्त की. उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों का बहिष्कार करना देश के हित के लिए ठीक नहीं है. अगर बच्चे पढ़ेंगे नहीं, तो वे देश चलाने की तैयारी कैसे करेंगे?
लड़ा चौरी-चौरा केस
साल 1922 में जब चौरी-चौरा कांड हुआ तो ब्रिटिश हुकूमत ने इस मामले में कुल 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई. वरिष्ठ पत्रकार शशि शेखर एक लेख में लिखते हैं कि चौरी-चौरा कांड तक मदन मोहन मालवीय ने राजनीति और सामाजिक कार्यों के चलते वकालत छोड़ दी थी, फिर भी उन्होंने फांसी की सजा पाए लोगों का केस लड़ा और 153 लोगों को बरी कराने में कामयाब रहे. यही नहीं, उन्होंने वायसराय से भगत सिंह की फांसी की सज़ा रोकने की अपील भी की. अगर उनकी अपील मान ली गई होती तो देश की राजनीति की दिशा ही बदल जाती.
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Tags: Banaras Hindu University, BHU
FIRST PUBLISHED :
April 29, 2024, 13:00 IST