Tuesday, January 21, 2025
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Home 70 घंटे काम… नारायण मूर्ति का फिर आया बयान, अब क्‍या बोले इन्‍फोसिस के सह-संस्‍थापक?

70 घंटे काम… नारायण मूर्ति का फिर आया बयान, अब क्‍या बोले इन्‍फोसिस के सह-संस्‍थापक?

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नई दिल्‍ली: काम के लंबे घंटों पर इन्फोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति का फिर बयान आया है। उन्‍होंने हाल में युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी। यह लंबे समय तक बहस का विषय बना रहा। अब नारायण मूर्ति ने इस पर अपना पक्ष रखा है। सोमवार को मुंबई में उन्होंने कहा कि किसी को जबरदस्ती लंबे समय तक काम करने के लिए नहीं कह सकते। लेकिन, हर किसी को खुद सोचना चाहिए और जरूरत समझनी चाहिए। मूर्ति ने बताया कि उन्होंने इन्फोसिस में 40 साल तक हर हफ्ते 70 घंटे से ज्‍यादा काम किया। उनका मानना है कि इस मुद्दे पर बहस नहीं, बल्कि खुद से विचार करने की जरूरत है।

एनआर नारायण मूर्ति ने युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की सलाह पर उठे विवाद पर अपनी बात रखी। उन्होंने साफ किया कि उनका मकसद किसी पर दबाव डालना नहीं था। बल्कि उनका कहना है कि हर व्यक्ति को अपनी स्थिति और जरूरतों के हिसाब से फैसला लेना चाहिए। उन्होंने खुद का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होंने इन्फोसिस में 40 साल तक हफ्ते में 70 घंटे से ज्‍यादा काम किया। लेकिन, इसका मतलब ये नहीं कि हर कोई ऐसा ही करे।

मूर्ति ने अपना द‍िया उदाहरण

आईएमसी मुंबई में किलाचंद स्मृति व्याख्यान के बाद मूर्ति से कार्य-जीवन संतुलन पर सवाल पूछा गया। इस पर उन्होंने कहा, ‘मैं कह सकता हूं कि मैं सुबह साढ़े छह बजे ऑफिस पहुंचता था और रात साढ़े आठ बजे कार्यालय से निकलता था, यह एक तथ्य है। मैंने ऐसा किया है। इसलिए, कोई यह नहीं कह सकता कि नहीं, यह गलत है। और मैं यह काम 40 साल से कर रहा हूं।’ उन्होंने जोर दिया कि यह उनकी निजी कहानी है, इस पर बहस की बजाय आत्मनिरीक्षण जरूरी है।

मूर्ति का मानना है कि इस विषय पर ज्‍यादा बहस की जरूरत नहीं है। हर व्यक्ति को खुद सोचना चाहिए और समझना चाहिए कि उसके लिए क्या सही है। उन्होंने कहा, ‘जो सलाह मैंने दीं, उस पर लोगों को बहुत अधिक चर्चा या बहस करने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय यह जरूरी है कि हर व्यक्ति खुद पर विचार करे, इसे समझे और फिर अपनी सोच के आधार पर एक निष्कर्ष पर पहुंचे। इसके बाद जो भी निर्णय वे लेना चाहें, ले सकते हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि हमारी मेहनत समाज के लिए कितना योगदान दे रही है, इस पर ध्यान देना जरूरी है।

समाज में बदलाव लाने पर द‍िया जोर

मूर्ति ने कहा कि हमें अपनी मेहनत को एक बच्चे के भविष्य से जोड़कर देखना चाहिए। हमारी मेहनत से अगर किसी बच्चे का भविष्य बेहतर हो सकता है, तो यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। उन्होंने कहा, ‘हमें अपने प्रयासों और मेहनत को इस बात से जोड़कर देखना चाहिए कि हम समाज में बदलाव लाने में कितना योगदान दे रहे हैं। खासकर एक गरीब बच्चे के दृष्टिकोण से हमें यह समझना चाहिए कि हमारी मेहनत उस बच्चे के भविष्य को बेहतर बनाने में मदद कर रही है या नहीं।’

मूर्ति ने आगे समझाते हुए कहा, ‘यदि मैं कड़ी मेहनत करूंगा, यदि मैं समझदारी से काम करूंगा, यदि मैं अधिक राजस्व अर्जित करूंगा, यदि मैं अधिक कर चुकाऊंगा, तो वह बच्चा बेहतर स्थिति में होगा।’ यानी ज्‍यादा मेहनत और कमाई से ज्‍यादा टैक्स दे पाएंगे। इससे सरकार को मदद मिलेगी और बच्चों के लिए बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी। उन्होंने साफ किया कि 70 घंटे काम करना कोई नियम नहीं है। यह सिर्फ उनका निजी अनुभव है। हर व्यक्ति को अपनी क्षमता और परिस्थितियों के हिसाब से काम करना चाहिए। काम के घंटों से ज़्यादा जरूरी है कि हमारा काम समाज के लिए कितना फायदेमंद है।

अमित शुक्‍ला

लेखक के बारे में

अमित शुक्‍ला

पत्रकारिता और जनसंचार में पीएचडी की। टाइम्‍स इंटरनेट में रहते हुए नवभारतटाइम्‍स डॉट कॉम से पहले इकनॉमिकटाइम्‍स डॉट कॉम में सेवाएं दीं। पत्रकारिता में 15 साल से ज्‍यादा का अनुभव। फिलहाल नवभारत टाइम्स डॉट कॉम में असिस्‍टेंट न्‍यूज एडिटर के रूप में कार्यरत। टीवी टुडे नेटवर्क, दैनिक जागरण, डीएलए जैसे मीडिया संस्‍थानों के अलावा शैक्षणिक संस्थानों के साथ भी काम किया। इनमें शिमला यूनिवर्सिटी- एजीयू, टेक वन स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय (नोएडा) शामिल हैं। लिंग्विस्‍ट के तौर पर भी पहचान बनाई। मार्वल कॉमिक्स ग्रुप, सौम्या ट्रांसलेटर्स, ब्रह्मम नेट सॉल्यूशन, सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी और लिंगुअल कंसल्टेंसी सर्विसेज समेत कई अन्य भाषा समाधान प्रदान करने वाले संगठनों के साथ फ्रीलांस काम किया। प्रिंट और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म में समान रूप से पकड़। देश-विदेश के साथ बिजनस खबरों में खास दिलचस्‍पी।… और पढ़ें

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