Tuesday, February 25, 2025
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4 साल पहले बेटा का वीर्य कर दिया था फ्रीज, अब उसी से गूंजेंगी किलकारी

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दुनिया में हर मां-बाप की चाहत होती है कि उसकी वंश परंपरा आगे बढ़े. लेकिन, कई बार ईश्वर को कुछ और ही मंजूर होता है. बावजूद इसके इंसान अपनी कोशिश नहीं छोड़ता है और अंततः ईश्वर को भी उसकी कोशिश के आगे झूकना पड़ता है. कुछ ऐसी ही है ये कहानी. दरअसल, एक दंपति का एक 20 साल का बेटा रहता है. उसको कैंसर हो जाता है. डॉक्टर बताते हैं कि इलाज के दौरान लड़का हमेशा के लिए स्पर्श प्रोड्यूस करने की शक्ति खो सकता है. इसलिए उसका वीर्य फ्रीज करवा दिया जाता है.

लेकिन, ईश्वर उस दंपति के साथ बेहद क्रूर नजर आता है. इलाज के दौरान लड़के की मौत हो जाती है. वह अपने मां-बाप की इकलौती संतान था. इसके बाद दंपति पूरी तरह टूट जाता है. फिर वह हौसला हासिल कर बेटे के फ्रीज करवाए गए वीर्य से अपनी वंश परंपरा बढ़ाने की कोशिश करता है. लेकिन, इसमें फिर कानून अड़चन शुरू हो जाती है और दिल्ली हाईकोर्ट को दखल देना पड़ता है.

दरअसल, यह कहानी नहीं बल्कि दिल्ली की एक दंपति के साथ घटी घटना है. हाईकोर्ट ने नामी निजी अस्पताल सर गंगाराम को निर्देश दिया कि वह एक मृत व्यक्ति के संरक्षित रखे गए शुक्राणु उसके माता-पिता को सौंप दे. मौत के बाद प्रजनन का मतलब एक या दोनों जैविक माता-पिता की मृत्यु के बाद सहायक प्रजनन तकनीक का उपयोग करके गर्भधारण की प्रक्रिया से है.

हाईकोर्ट के फैसले दूर होगी उदासी
हाईकोर्ट की जज प्रतिभा एम. सिंह ने इस तरह के पहले निर्णय में कहा, “वर्तमान भारतीय कानून के तहत, यदि शुक्राणु या अंडाणु के मालिक की सहमति का सबूत पेश किया जाता है, तो उसकी मौत के बाद प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है.” कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस निर्णय पर विचार करेगा कि क्या मौत के बाद प्रजनन या इससे संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए किसी कानून, अधिनियम या दिशा-निर्देश की आवश्यकता है.

कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए गंगा राम अस्पताल को निर्देश दिया कि वह दंपती को उनके मृत अविवाहित पुत्र के संरक्षित रखे गए शुक्राणु उन्हें तत्काल प्रदान करें, ताकि ‘सरोगेसी’ के माध्यम से उनका वंश आगे बढ़ सके. याचिकाकर्ता के कैंसर से पीड़ित बेटे की कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले 2020 में उसके वीर्य के नमूने को ‘फ्रीज’ करवा दिया गया था, क्योंकि डॉक्टरों ने बताया था कि कैंसर के उपचार से बांझपन हो सकता है. इसलिए बेटे ने जून 2020 में अस्पताल की आईवीएफ लैब में अपने शुक्राणु को संरक्षित करने का फैसला किया था. जब मृतक के माता-पिता ने वीर्य का नमूना लेने के लिए अस्पताल से संपर्क किया, तो अस्पताल ने कहा कि अदालत के उचित आदेश के बिना नमूना जारी नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने 84 पृष्ठ के फैसले में कहा कि याचिका में संतान को जन्म देने से संबंधित कानूनी व नैतिक मुद्दों समेत कई महत्वपूर्ण मसले उठाए गए हैं. कोर्ट ने कहा, “माता-पिता को अपने बेटे की अनुपस्थिति में पोते-पोती को जन्म देने का मौका मिल सकता है. ऐसे हालात में अदालत के सामने कानूनी मुद्दों के अलावा नैतिक, आचारिक और आध्यात्मिक मुद्दे भी होते हैं.”

Tags: DELHI HIGH COURT

FIRST PUBLISHED :

October 4, 2024, 23:26 IST

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