18वी लोकसभा के सत्र की शुरुआत हो गयी है. सांसद शपथ ले रहे हैं, लेकिन विपक्षी पार्टियों के नेताओं के हाथ में संविधान की कॉपी दिखी और दिखाने की वजह थी कि संविधान खतरे में है. विपक्ष का कहना है कि हम संविधान की मर्यादा करते हैं जबकि विपक्ष और खास तौर पर बीजेपी संविधान की मर्यादा को तार तार कर रही है.
लेकिन आज का सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आज लोकतंत्र खतरे है, क्या आज संविधान खतरे है. फिर 25 जून 1975 के दिन जब इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल लगायी थी, तब क्या था. और तो और सियासत की मजबूरी देखिये आज आपातकाल के दंश से निकली पार्टियां उसी कांग्रेस पार्टी के साथ खड़ी होकर संविधान बचाओ का रट्ट लगा रही हैं और आपातकाल पर मौन है.
इमरजेंसी के वक्त लोकतंत्र खतरे में था आज नहीं
आज 25 जून है यानी आपतकाल की वर्षगांठ. आज से ठीक 49 साल पहले ही कांग्रेस ने देश में आपतकाल लगाया था। 1975 का आपातकाल अब भी बड़ी आबादी के जेहन में बसा है। विपक्ष ने सत्तासीन इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें जेलों में ठूंस दिया गया। हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द करने की राह बनाई तो इमरजेंसी थोप दी गई। मीडिया को सेंसर के त्रासद दौर से गुजरना पड़ा। अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली गई। यहां तक कि शीर्ष अदालतों पर भी दबाव बनाने की कोशिश हुई। न्यायमूर्ति को प्रलोभन देने के प्रयास हुए।
सबसे बड़ी बात है कि उस वक़्त लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और इनलोगो के राजनीतिक गुरु जय प्रकाश नारायण जैसे नेताओं को जेल में डाल दिया गया था.
चाहे लालू प्रसाद यादव की पार्टी RJD हो या फिर मुलायम सिंह यादव की SP. RJD और SP आपातकाल से निकली पार्टियां है. लेकिन समय का पहिया देखिये, आज ये दोनों पार्टियां कांग्रेस से हाथ मिलाये उनके साथ खड़ी है.
मीसा भारती भी अब कांग्रेस के साथ
ये भी एक दिलचस्प बात है कि आज आरजेडी की सांसद मीसा भारती भी कांग्रेस के खेमे में खड़ी है. ये जानकर आपको हैरानी होगी की मीसा भारती का नाम लालू यादव ने आपातकाल में लगी मीसा कानून के नाम पर रखा हैं. मीसा राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी की नौ संतानों में सबसे बड़ी बेटी हैं। मीसा का जन्म उस समय हुआ, जब देश में आपातकाल लगा था और उस वक्त लालू आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा) के तहत जेल में थे। लेकिन राजनीति का मिजाज देखिये, आज मीसा भारती कांग्रेस के साथ खड़ी होकर आपातकाल पर उनके परिवार और उनकी पार्टी पर हुए जुल्म को भूलकर संविधान खतरे का रट लगा रही है.
आपातकाल
25 जून 1975 की रात काफी डरावनी बन गई थी। उस आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी. अगली सुबह यानी 26 जून 1975 को पौ फटने के पहले ही विपक्ष के कई बड़े नेता हिरासत में ले लिए गए. यहां तक कि कांग्रेस में अलग सुर अलापने वाले चंद्रशेखर भी हिरासत में लिए गए नेताओं की जमात में शामिल थे.
इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले विपक्षी नेताओं से जेलें भरने लगीं. जयप्रकाश नारायण तो इंदिरा के खिलाफ आंदोलन के अगुआ ही बने थे. पहले दिन गिरफ्तार नेताओं में वे प्रमुख थे. जयप्रकाश नारायण समेत तकरीबन एक लाख राजनीतिक विरोधियों को देश की विभिन्न जेलों में डाल दिया गया था. पत्रकार भी जेल जाने से नहीं बचे.
इमरजेंसी लगाने की एक और बड़ी वजह
इमरजेंसी की मूल वजह 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण का वह कार्यक्रम था, जिसमें तिल रखने की भी जगह नहीं बची थी. इंदिरा को अदालती फैसले से अधिक भय जेपी के आंदोलन से था. बिहार से शुरू होकर जेपी मूवमेंट देशभर में फैलने लगा था. इंदिरा उसी से घबराई हुई थीं. पहले तो बहुमत का बेजा लाभ उठाते हुए उन्होंने लोकसभा का कार्यकाल साल भर बढ़ाने का संशोधन संविधान में किया. ऊपर से इमरजेंसी में लोगों के मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए थे. इमरजेंसी लगाने वाले संविधान के संशोधन में एक प्रावधान जन प्रतिनिधित्व कानून में परिवर्तन का भी था. प्रावधान किया गया कि सरकारी कर्मी का इस्तीफा सरकारी गजट में प्रकाशित हो जाने से ही काम चल जाएगा. इस्तीफा मंजूर करवाना जरूरी नहीं. शायद यह प्रावधान यशपाल कपूर के कारण उत्पन्न हुई स्थिति से बचने के लिए किया गया
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FIRST PUBLISHED :
June 25, 2024, 10:52 IST