हाइलाइट्स
ये समझौता 56 लक्ष्यों को तेजी से पूरे करने का लक्ष्य का दस्तावेजरूस और ईरान समेत 7 देशों ने इसका विरोध कियाये दुनिया में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को मजबूत करने की बात कहता है
यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेंबली यानि संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने पिछले हफ्ते एक महत्वाकांक्षी समझौते को अपनाया है, जिसका उद्देश्य संगठन को 21वीं सदी में वैश्विक मंच पर अधिक प्रासंगिक और प्रभावी बनाना है. यह समझौता युद्धों को रोकने और इसके चार्टर का उल्लंघन करने वालों को जवाबदेह ठहराने के लिए किया गया है. हालांकि ये सही है कि पिछले कुछ दशकों में युद्ध और संघर्षों को रोकने में संयुक्त राष्ट्र विफल रहा है. रूस और ईरान समेत सात देशों ने पैक्ट फॉर फ्यूचर यानि “भविष्य के लिए समझौते” का विरोध किया.
सवाल – ये समझौता क्या है?
– ये संधि 42 पेजों का एक दस्तावेज है, जिसमें कहा गया है कि दुनिया के बंटे हुए देशों को एकजुट कर संधि के 56 लक्ष्यों को तेजी से लागू किया जाए. इसमें जलवायु परिवर्तन, एआई, बढ़ते संघर्ष, असमानता और गरीबी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए देशों का एकजुट करके काम करने की बात कही गई है ताकि आठ अरब लोगों का जीवन बेहतर बनाया जा सके. 193 सदस्यों वाली महासभा में 07 सदस्यों ने इसका विरोध किया.
इसके कुछ प्रस्ताव काफी अच्छे हैं जैसे महासचिव से संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की स्थिति की समीक्षा करने का अनुरोध, परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में काम करने का वादा. हालांकि इन्हें हर बार की तरह लंबी चौड़ी बयानबाजी के तौर पर ज्यादा देखा जा रहा है.
सवाल – क्या इस समझौते में ये बताया गया है कि इससे विश्व कैसे बेहतर बनेगा?
– वास्तव में नहीं. भविष्य के लिए समझौता बड़े-बड़े लक्ष्यों और प्रतिबद्धताओं से भरा है लेकिन इसमें वास्तविक, यथार्थवादी कदम कम हैं जिस पर दुनिया के देश शायद ही आगे बढें और इन्हें क्रियान्वित करें.
दस्तावेज़ में दावा किया गया है कि राष्ट्र “भूखमरी को समाप्त करेंगे और खाद्य सुरक्षा को खत्म करेंगे”, एक निष्पक्ष बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के लिए प्रतिबद्ध होंगे, लैंगिक समानता हासिल करेंगे, पर्यावरण और जलवायु की रक्षा करेंगे और मानवीय आपात स्थितियों से प्रभावित लोगों की रक्षा करेंगे लेकिन ये पैक्ट इस बात पर चुप है कि संयुक्त राष्ट्र और उसके सदस्य यह कैसे करेंगे.
सवाल – रूस ने किस तरह इसका विरोध किया और कितने देशों ने इसका समर्थन किया?
– रूस के प्रतिनिधि सर्गेई वर्शिनिन ने शुरुआत में ही संधि में एक संशोधन का प्रस्ताव रखा. उन्होंने कहा, “कोई भी इस संधि से खुश नहीं है.” लेकिन अफ्रीका के 54 देशों ने रूस के संशोधन का कड़ा विरोध किया. कांगो गणराज्य ने अफ्रीकी देशों की ओर से संशोधन पर मतदान न करने का प्रस्ताव रखा, जिसे मेक्सिको ने भी समर्थन दिया.
मतदान में अफ्रीकी देशों के इस प्रस्ताव को 143 देशों का समर्थन मिला, जबकि केवल 6 देशों, ईरान, बेलारूस, उत्तर कोरिया, निकारागुआ, सूडान और सीरिया, ने रूस का समर्थन किया. 15 देश गैरहाजिर रहे.
सवाल – इस समझौते को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने क्यों खुद को मजबूत करने की बात की है?
– संयुक्त राष्ट्र संघ चाहता है कि भविष्य में उसे और ताकतवर बनाया जाए ताकि उसकी आवाज ज्यादा सुनी और मानी जाए. इसका असर रहे. लिहाजा शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार करना चाहिए. संधि में इस बात पर प्रतिबद्धता जताई गई है कि संयुक्त राष्ट्र की 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में सुधार किए जाएं ताकि यह आज की दुनिया का बेहतर ढंग से प्रतिनिधित्व कर सके और अफ्रीका के खिलाफ ऐतिहासिक अन्याय को दूर कर सके. सुरक्षा परिषद में अफ्रीका का कोई स्थायी सदस्य नहीं है. इसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र और लैटिन अमेरिका के प्रतिनिधित्व में कमी को भी दूर करने की बात कही गई है.
सवाल – इस समझौते में और कौन सी खास बातें हैं, जिसे पैक्ट फॉर फ्यूचर में शामिल किया गया?
– नेताओं को संवाद और बातचीत को प्राथमिकता देनी चाहिए, मध्य पूर्व, यूक्रेन और सूडान में चल रहे युद्धों को समाप्त करना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में तेजी से सुधार लाना चाहिए, जीवाश्म ईंधनों को छोड़ने की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए और युवा पीढ़ी को सुनना चाहिए. उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए.
सवाल – इस संधि को लेकर सदस्य देशों की प्रतिक्रिया आमतौर पर क्या है?
– संयुक्त राष्ट्र के विकासशील देशों के प्रमुख समूह जी77, जिसमें अब 134 सदस्य हैं, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव गुटेरेश की बात का समर्थन किया. युगांडा की प्रधानमंत्री रोबिनाह नबांजा ने महासभा में कहा कि यह संधि केवल एक औपचारिकता नहीं बननी चाहिए बल्कि इसमें वैश्विक नेतृत्व के सभी स्तरों पर राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता होनी चाहिए.
सवाल – वैसे इस संधि को लेकर चुनौतियां क्या हैं और क्या उम्मीद की जा सकती है?
– ‘भविष्य के लिए संधि’ ऐसे समय में हुई है जब दुनिया बहुत बड़े बदलावों से गुजर रही है. संधि यह चेतावनी देती है कि बढ़ते विनाशकारी कदम दुनिया को संकट और बिखराव की स्थिति में धकेल सकते हैं. इस संधि में उपसंधियां हैं – ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट और भविष्य की पीढ़ियों पर घोषणा पत्र.
इस संधि के जरिए एक दशक से अधिक समय में पहली बार परमाणु हथियारों को खत्म करने पर बात हुई है. इसमें अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ को रोकने और घातक ऑटोमेटिक हथियारों के इस्तेमाल को नियंत्रित करने पर प्रतिबद्धता की बात कही गई है. ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर वैश्विक स्तर पर पहला समझौता करने की बात कही गई है. एआई पर कानून बनाने को लेकर पिछले कुछ समय से बहस हो रही है.
सवाल – कैसे इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को और मजबूत करने की बात की गई, ताकि उसकी बात मानी जाए?
– चूंकि गाजा और साउथ लेबनान में इजरायल के युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध और सूडान में गृह युद्ध में लोगों की जान जा रही है, लिहाजा इस स्थिति ने संयुक्त राष्ट्र को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का समर्थन करने के लिए फिर से प्रतिबद्ध किया है लेकिन इजरायल ने साफ कर दिया कि वो इस मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की बात नहीं सुनेगा.
सवाल – रूस, ईरान समेत 7 देश क्यों इस संधि का विरोध कर रहे हैं?
– रूस ने छह अन्य देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के “भविष्य के लिए संधि” का विरोध किया.
रूस का तर्क है कि संधि मुख्य रूप से पश्चिमी हितों का पक्ष लेती है, अन्य देशों की चिंताओं का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करती है. रूसी उप विदेश मंत्री सर्गेई वर्शिनिन ने दावा किया कि मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में पश्चिमी देशों का वर्चस्व था, जिसने रूस और उसके सहयोगियों के इनपुट को दरकिनार कर दिया.
रूस ने एक संशोधन का प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया कि संधि में संबोधित कई मुद्दे घरेलू अधिकार क्षेत्र में आते हैं, लिहाजा संयुक्त राष्ट्र को इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. इस संशोधन को अस्वीकार कर दिया गया. रूस ने संधि के भीतर 25 तत्वों पर आपत्ति जताई, जिनमें लैंगिक अधिकार और निरस्त्रीकरण से संबंधित तत्व शामिल हैं. रूसी प्रतिनिधिमंडल ने यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों तक सार्वभौमिक पहुँच से संबंधित भाषा पर असंतोष व्यक्त किया, इसे राष्ट्रीय संप्रभुता पर थोपने के रूप में देखा.।
सवाल – क्या इसे रूस के लिए झटके के तौर पर देखना चाहिए, क्योंकि दुनिया के ज्यादातर देशों ने इस समझौते का समर्थन कर दिया?
– बिल्कुल ये रूस के लिए एक झटके जैसा हो सकता है. रूस ने ऐसे समय में संशोधनों का प्रस्ताव करके कूटनीतिक परिदृश्य को गलत तरीके से पढ़ा जब अन्य राष्ट्र समझौते के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार थे. इस गलत अनुमान के कारण रूस को सार्वजनिक रूप से झटका लगा क्योंकि वह अपनी स्थिति के लिए व्यापक समर्थन हासिल करने में विफल रहा.
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FIRST PUBLISHED :
September 25, 2024, 21:50 IST