Monday, January 20, 2025
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श्रीलंका के नए राष्‍ट्रपति के सामने हाथी जैसी 4 चुनौतियां, भारत का क्‍या रोल?

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हाइलाइट्स

श्रीलंका के सामने बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी और कर्ज का बड़ा संकट है. दो साल पहले श्रीलंका के सामने महंगाई दर बढ़कर 70 फीसदी हो गई थी. सरकारी कर्ज जीडीपी का 100 फीसदी पार हो गया है, 51 अरब डॉलर है.

नई दिल्‍ली. बीते 3 साल से भयंकर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे पड़ोसी देश श्रीलंका को अपना नया कप्‍तान मिल गया है. हाल में हुए राष्‍ट्रपति चुनाव में बदलाव का नारा देने वाले अनूरा कुमार दिसानायके ( Anura Kumara Dissanayake) को आखिरकार जनता ने देश की बागडोर सौंप दी. भ्रष्‍टाचार की सफाई करने का भरोसा दिलाकर अनूरा राष्‍ट्रपति की कुर्सी पर तो बैठ गए लेकिन उनके लिए सत्‍ता संभालना आसान नहीं होने वाला. दिसानायके सामने चारों दिशाओं से मुसीबत और चुनौतियां आ रही हैं. राजनीतिक रूप से उन्‍हें भारत और चीन के साथ सामंजस्‍य बिठाना है तो आर्थिक मोर्चे पर 4 बड़ी चुनौतियां उनका इंतजार कर रही हैं.

दरअसल, दिसानायके को सत्‍ता ऐसे समय मिली है जब श्रीलंका खुद को स्थिर करने की कोशिशें कर रहा है. देश और नए राष्‍ट्रपति के सामने 4 बड़ी चुनौतियों की बात करें तो श्रीलंका पर भारी-भरकम विदेशी कर्ज लदा है, जिसे न चुकाने की वजह से लगातार डिफॉल्‍ट करता जा रहा और राजकोषीय घाटा बढ़ रहा. दूसरी बड़ी समस्‍या है रोजगार की है, क्‍योंकि देश में छोटे और मझोले उद्यमों पर ताले लग चुके हैं और बेरोजगारी बेतहाशा रूप से बढ़ती जा रही. तीसरी बड़ी समस्‍या है महंगाई की, जो दो साल पहले 70 फीसदी के आसपास चली गई थी और चौथी समस्‍या देश में बढ़ती गरीबी व खाद्यान्‍न का संकट है.

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बदलाव के नाम पर मिला वोट, पर बदलेगा कैसे
श्रीलंका के राष्‍ट्रपति चुनाव में दिसानायके ने देश में बदलाव लाने की बात कहकर जनता का भरोसा जीता. जनता ने भी वाम विचारधारा के नेता की बात को स्‍वीकार जो भ्रष्‍टाचार पर सबसे कड़ा प्रहार करने की बात कहते हैं. अब राजनीति में तो बदलाव आ चुका है और राष्‍ट्रपति की कुर्सी पर वाम विचारधारा वाले व्‍यक्ति को बैठा दिया गया, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर बदलाव लाना आसान नहीं होगा. ऊपर बताई चारों चुनौतियों से पार पाने का फिलहाल कोई रास्‍ता नहीं दिख रहा, जबकि जनता को जल्‍द अपने नए राष्‍ट्रपति से कुछ राहत की उम्‍मीद है.

कर्ज ने कर दिया बेड़ा गर्क
श्रीलंका पर अभी 50 अरब डॉलर (करीब 4.2 हजार करोड़ रुपये) से ज्‍यादा का विदेशी कर्ज लदा है. इसमें विश्‍व बैंक और आईएमएफ के अलावा चीन, जापान, भारत और फ्रांस का काफी पैसा शामिल है. अप्रैल 2022 में श्रीलंका ने साफ कह दिया था कि वह अभी कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं है, जिसकी बाद कई पमेंट डिफॉम्‍ट कर गई थी. भयंकर आर्थिक संकट में उसे आईएमएफ ने 3 अरब डॉलर की सहायता दी तो भारत ने 4 अरब डॉलर दिए. दिसानायके को इस चुनौती से निकलने के लिए देश के कर्ज को रीस्‍ट्रक्‍चर कराना होगा. उन्‍हें सबसे पहले भारत, जापान और फ्रांस का 5.9 अरब डॉलर का कर्ज रीस्‍ट्रक्‍चर कराने की जरूरत है. श्रीलंका का कुल कर्ज जीडीपी का 100 फीसदी पार कर चुका है.

कैसे दूर होगी बेरोजगारी
श्रीलंका में बनी नई सरकार और नए राष्‍ट्रपति दिसानायके को सबसे ज्‍यादा समर्थन युवाओं का मिला है. चुनाव में उन्‍होंने बेरोजगारी को भी बड़ा मुद्दा बनाया था. अभी बेरोजगारी दर 9 फीसदी है. अब जबकि वे सत्‍ता पर काबिज हो चुके हैं तो बेरोजगार मिटाने के लिए उन्‍हें काफी पैसे और सही रणनीति की जरूरत होगी. दरअसल, श्रीलंका की छोटी-मझोली कंपनियां (MSMEs) सेक्‍टर पूरी तरह ढह चुका है. आपको बता दें कि किसी भी देश में रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत एमएसएमई सेक्‍टर ही होता है. भारत में भी कोरोना महामारी से जब यह सेक्‍टर मुश्किल में फंसा तो सरकार ने 20 लाख करोड़ का कर्ज बांटा और आज तक बिना किसी कोलैटरल के इस सेक्‍टर को कर्ज दिया जा रहा. सवाल ये है कि क्‍या दिसानायके इस सेक्‍टर को जिंदा करने के लिए आर्थिक सहायता मुहैया करा पाएंगे, क्‍योंकि तभी वे बेरोजगारी और उत्‍पादन जैसी समस्‍या से निपट सकते हैं.

सुरसा की तरह मुंह फैला रही महंगाई
श्रीलंका के नए राष्‍ट्रपति को महंगाई पर काबू पाने के लिए वृहद स्‍तर पर काम करना पड़ेगा. अपको बता दें कि 2022 में यहां महंगाई की दर 70 फीसदी के आसपास चली गई थी. फिलहाल यह 6.3 फीसदी के आसपास चल रही है. इसकी प्रमुख वजह श्रीलंकाई करेंसी का पतना होता है, जिसकी वजह से देश का आयात महंगा हो गया. एमएसएमई सेक्‍टर के कोलैप्‍स हो जाने की वजह से उत्‍पादन पहले से ही ठप चल रहा था. ऐसे में बाहर से ईंधन समेत तमाम जरूरी चीजों को महंगी कीमत पर मंगाना पड़ा और देश बेतहाशा महंगाई के जाल में फंसता चला गया. दिसानायके को इस चुनौती से निकलने के लिए न सिर्फ घरेलू उत्‍पादन बढ़ाना होगा, बल्कि आयात पर निर्भरता भी कम करनी पड़ेगी और यह काम तभी संभव होगा, जबकि एमएसएमई सेक्‍टर फिर से रिवाइव हो.

गरीब और खाद्यान्‍न का संकट
श्रीलंका का कृषि क्षेत्र देश में 30 फीसदी नौकरियां पैदा करता है और पिछले 4-5 साल से इस सेक्‍टर पर पूरी तरह ग्रहण लग चुका है. आतंकी घटनाओं ने टूरिज्‍म सेक्‍टर को भी काफी नुकसान पहुंचाया और नतीजा ये हुआ कि 25 फीसदी जनसंख्‍या गरीबी रेखा से नीचे चली गई. अनाज उत्‍पादन में आई गिरावट की सबसे बड़ी वजह देश में बिना ठोस रणनीति के ही फटिलाइजर्स के उपयोग पर बैन लगाना है. पिछली सरकारों ने ऑर्गेनिक खेती के नाम पर फर्टिलाइजर्स का आयात बैन कर दिया. ऑर्गेनिक खेती की कोई ठोस रणनीति थी नहीं, तो जाहिर है कि उत्‍पादन में अचानक तेजी से गिरावट शुरू हो गई. देश का खजाना खाली है और सिर्फ 3 दिन का खर्च चलाने भर का ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा है. देश की विकास दर 2022 में शून्‍य से 8 फीसदी नीचे थी, जो इस साल 2 फीसदी के आसपास रहने का अनुमान है.

भारत का क्‍या रोल और असर
सबसे अहम सवाल यही है कि वाम विचारधारा वाले नए राष्‍ट्रपति का ज्‍यादा झुकाव चीन की तरफ होने की आशंका है, जबकि भारत ने हमेशा श्रीलंका की मदद ही की है. तब जबकि 2 साल पहले भयंकर आर्थिक संकट चल रहा था, तब भी आईएमएफ ने 3 अरब डॉलर और भारत ने 4 अरब डॉलर की मदद दी है. इस मुश्किल हालात में चीन की तरफ से कुछ नहीं मिला. जाहिर है कि श्रीलंका की जनता तो भारत को लेकर पॉजिटिव है, लेकिन नई सरकार का किस तरह का रुख होगा, यह देखने वाली बात है. फिलहाल भारत अपनी तरफ से मदद करना जारी रखेगा, क्‍योंकि उसके बाकी पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्‍लादेश, पाकिस्‍तान और मालदीव के साथ रिश्‍तों में हाल में समय में खटास आई है. ऐसे माहौल में दिल्‍ली नहीं चाहेगी कि उसके रिश्‍ते एक और पड़ोसी से खराब हों.

Tags: Business news, Economic crisis, Sri lanka

FIRST PUBLISHED :

September 23, 2024, 12:38 IST

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