नई दिल्ली: वो 23 मई 2008 की सुबह करीब 5 बजे का वक्त था। मेरठ के गुदड़ी बाजार इलाके में एक घर के अंदर से बाहर की तरफ खून बहता हुआ नजर आता है। घर के पास से गुजर रहे लोगों की नजर पड़ती है, लेकिन कुछ बोलने की हिम्मत किसी में नहीं होती। तभी अचानक एक हलचल होती है और गाड़ियां का काफिला उस घर के बाहर आकर रुकता है। इस काफिले में एक गाड़ी लाल बत्ती लगी हुई भी थी। घर का दरवाजा खुलता है और कुछ युवक खून से लथपथ तीन लाशों को लेकर बाहर निकलते हैं। माहौल में मौजूद हलचल सन्नाटे में बदल जाती है। जल्दी-जल्दी इन तीनों लाशों को घर के बाहर खड़ी मारुति एस्टीम की डिग्गी में डाला जाता है और पलक झपकते ही गाड़ियों का ये काफिला मौके से रवाना हो जाता है।
ये वो मंजर था, जिसे याद कर मेरठ के लोग आज भी सहम जाते हैं। वो हत्याकांड, जिसने प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक हंगामा मचा दिया था। तीन लोगों को रात के अंधेरे में एक घर के अंदर बेरहमी के साथ लोहे के पाइपों से पीटा जाता है। इसके बाद तलवार से उनकी गर्दन पर वार किए जाते हैं। उनकी आंखें फोड़ी जाती हैं। इतने पर भी जब हत्यारों का मन नहीं भरता, तो उन्हें गोली मारी जाती है। तीनों युवकों के साथ ये खूनी खेल सुबह सूरज निकलने तक चलता है। इसके बाद जब हैवानियत का नशा उतरता है, तो लाशों को गाड़ी में भरकर पड़ोस के बागपत जिले में हिंडन नदी के किनारे छोड़ दिया जाता है।
क्या थी हत्याकांड की ये पूरी कहानी?
जिनकी हत्या हुई, उनके नाम थे सुनील ढाका, पुनीत गिरी और सुधीर उज्जवल। और जिसने इस पूरे हत्याकांड को अंजाम दिया, उसका नाथ है इजलाल कुरैशी। आखिर क्या थी इस हत्याकांड की वजह? उन तीनों युवकों का हत्यारे इजलाल कुरैशी के साथ क्या विवाद था, जिसकी वजह से उन्हें बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया गया? वो तीनों उस रात इजलाल के घर पर क्या करने आए थे? एक घर के अंदर तीन लोगों को बेरहमी से मारा-पीटा गया और आसपास के लोगों ने चीखें सुनने के बावजूद पुलिस को फोन करने की हिम्मत तक नहीं की, आखिर क्यों?
अथाह दौलत का मालिक था इजलाल
इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए आपको लिए चलते हैं, 16 साल पीछे साल 2008 में… जब मीट कारोबारी इजलाल कुरैशी की मुलाकात मेरठ कॉलेज में पढ़ने वाली शीबा सिरोही से हुई। इजलाल के पास अथाह दौलत थी। मीट का कारोबार, करोड़ों की प्रॉपर्टी और कोल्ड स्टोर के अलावा कुछ और धंधों में भी उसने पैसा लगाया हुआ था। उसके फार्म हाउस पर रात-रात भर पार्टियां चलती थीं। इजलाल के ताऊ के बेटे हाजी शाहिद अखलाक उस वक्त मेरठ लोकसभा सीट से सांसद थे। बेपनाह दौलत और बेशुमार ताकत रखने वाले इजलाल की नजर जब शीबा पर पड़ी, तो पहली नजर में ही वो दिल हार बैठा।
शीबा भी जीना चाहती थी लग्जरी लाइफ
मेरठ के ही कैंट इलाके में अपनी मां और बहन के साथ रहने वाली शीबा सिरोही की हसरतें भी कुछ ऐसी ही थीं। परिवार ने सेना के एक अफसर के साथ उसकी शादी की, लेकिन शीबा की हरकतों की वजह से ये शादी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। नतीजा ये हुआ कि शीबा ससुराल छोड़कर मायके में रहने लगी। इस बीच इजलाल की लग्जरी लाइफ और उसकी दौलत की चकाचौंध ने शीबा को अपनी तरफ खींच लिया। एकतरफा इश्क में पागल इजलाल उसके ऊपर दिल खोलकर पैसे खर्च करने लगा। लेकिन उसी दौरान इजलाल को पता चला कि शीबा, सुधीर उज्जलव नाम के लड़के से भी बातें करती है। इजलाल पहले से ही सुधीर को जानता था। उसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि शीबा उसके अलावा किसी और से भी बातें करे।
तलवारों से काटा, आखें तक फोड़ डालीं
22 मई 2008 की रात को इजलाल ने सुधीर और उसके दो दोस्तों सुनील ढाका और पुनीत गिरी को शराब पीने के बहाने से अपने घर पर बुलाया। यहां बातों-बातों में शीबा का जिक्र छिड़ा और इजलाल गुस्से में भर गया। उसने अपने भाइयों और कुछ दोस्तों को भी घर बुला लिया। इसके बाद इन सबने मिलकर सुधीर और उसके दोस्तों को लोहे के पाइपों से पीटा। जब तीनों अधमरे हो गए तो तलवारों से उनके ऊपर वार किए गए, उनकी आंखें तक फोड़ दी गईं। इजलाल के सिर पर खून सवार था, उसने रिवॉल्वर निकाली और तीनों को गोली मार दी। सुबह होते-होते जब इजलाल का नशा उतरा तो लाशों को ठिकाने लगाने की बारी आई।
लाल बत्ती की गाड़ी के साथ ठिकाने लगाईं लाशें
घर के आंगन में चारों तरफ खून ही खून फैला हुआ था। इजलाल ने पानी की मोटर चलाई और चौक को धोना शुरू किया। लेकिन तब तक खून की धार बाहर तक पहुंच चुकी थी। उसने आनन-फानन में कुछ फोन घुमाए और थोड़ी ही देर बाद गाड़ियों का एक काफिला उसके घर के बाहर आकर रुक गया। लाल बत्ती वाली एक गाड़ी इसलिए मंगाई गई, ताकि रास्ते में कोई उसे रोके नहीं। तीनों लाशों को सुधीर की एस्टीम गाड़ी में डाला गया और काफिले के साथ इजलाल इन्हें ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़ा। इलाके में इजलाल का खौफ इतना था कि रात के अंधेरे में उसके घर के अंदर से आ रही चीखें सुनने के बावजदू किसी ने पुलिस को फोन नहीं किया।
दोषियों में शीबा सिरोही का नाम भी शामिल
लाशों को लेकर इजलाल जब पड़ोस के बागपत जिले में हिंडन नदी के पास पहुंचा, तो एस्टीम का तेल खत्म हो गया। ऐसे में इजलाल ने उस गाड़ी को वहीं छोड़ा और वापस अपने घर लौट आया। इस हत्याकांड की खबर जैसे ही फैली, पूरे मेरठ में हंगामा मच गया। आम लोगों से लेकर छात्र और व्यापारी सड़कों पर उतर आए। कोर्ट में 16 साल तक ये मुकदमा चला। हत्याकांड में इजलाल और शीबा सिरोही सहित 14 आरोपी बनाए गए। 1 अगस्त 2024 को मेरठ की अदालत ने 10 लोगों को हत्या का दोषी माना। दो आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि एक उस वक्त नाबालिग था। वहीं एक आरोपी का मामला फिलहाल विचाराधीन है। शीबा के ऊपर इस हत्याकांड के लिए इजलाल को उकसाने का दोष सिद्ध हुआ है। सभी दोषियों को अब 5 अगस्त को सजा सुनाई जाएगी।