नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक सुसाइड केस में बड़ी टिप्पणी की है। शुक्रवार को अदालत ने कहा कि टूटे हुए रिश्ते भावनात्मक रूप से कष्टदायक होते हैं, और अगर आत्महत्या के लिए उकसावे का कोई इरादा न हो तो यह खुद-ब-खुद उकसाने के अपराध की श्रेणी में नहीं आते। जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने एक फैसले में यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को पलटा
शीर्ष अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी को आईपीसी के तहत धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में दोषी ठहराया गया था। फैसले में कहा गया, ‘यह टूटे हुए रिश्ते का मामला है, न कि आपराधिक आचरण का।’ सनदी पर शुरू में आईपीसी की धारा 417 (धोखाधड़ी), 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 376 (बलात्कार) के तहत आरोप लगाए गए थे।
क्या है पूरा मामला?
निचली अदालत ने उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया, जबकि कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील पर उसे धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया और पांच साल की कैद की सजा सुनाई। अदालत ने उस पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। मां के कहने पर दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, उसकी 21 साल की बेटी पिछले आठ साल से आरोपी से प्यार करती थी और अगस्त 2007 में उसने सुसाइड कर लिया था, क्योंकि आरोपी ने शादी का वादा पूरा करने से मना कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 पेजों का ऑर्डर किया जारी
बेंच की ओर से जस्टिस मिथल ने 17 पेजों का फैसला लिखा। बेंच ने महिला की मौत से पहले के दो बयानों का विश्लेषण किया और कहा कि न तो जोड़े के बीच शारीरिक संबंध का कोई आरोप था और न ही सुसाइड के लिए कोई जानबूझकर किया गया काम था। इसलिए फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि टूटे हुए रिश्ते भावनात्मक रूप से परेशान करने वाले होते हैं, लेकिन वे स्वत: आपराधिक कृत्य की श्रेणी में नहीं आते।
‘ऐसे मामलों में आरोपी को दोषी ठहराना गलत’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यहां तक कि वैसे मामलों में भी जहां पीड़िता क्रूरता के कारण आत्महत्या कर लेती है, अदालतों ने हमेशा माना है कि समाज में घरेलू जीवन में कलह और मतभेद काफी आम हैं और इस तरह के अपराध का होना काफी हद तक पीड़िता की मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है।’ अदालत ने यह भी कहा, ‘निश्चित रूप से जब तक आरोपी का आपराधिक इरादा स्थापित नहीं हो जाता, तब तक उसे आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी ठहराना संभव नहीं है।’
फैसले में कहा गया है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह दर्शा सके कि आरोपी ने महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि लंबे रिश्ते के बाद भी शादी से इनकार करना उकसावे की श्रेणी में नहीं आता।