मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर महाविकास अघाड़ी के मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग की है। सीएम की घोषणा को लेकर सीनियर ठाकरे मुंबई में 2 सिल्वर ओक समेत दिल्ली में 10 जनपथ के चक्कर भी लगा चुके हैं, मगर सोनिया गांधी और शरद पवार ने पत्ते नहीं खोले। कांग्रेस और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) से हमेशा एक ही डिप्लोमैटिक बयान आया कि मुख्यमंत्री की चर्चा बाद में की जाएगी, पहले मिलकर चुनाव जीतना है। अब उद्धव ठाकरे ने नया दांव खेला है। उन्होंने कहा कि एमवीए अंदरखाने में सीएम फेस तय कर ले, भले ही इसे चुनाव के बाद सार्वजनिक किया जाए। उनकी इस डिमांड को भी कांग्रेस ने ठुकरा दिया है। लगातार एक ही मांग रखने से यह सवाल उठने लगा है कि उद्धव ठाकरे आखिर सीएम के चेहरे को लेकर उतावले क्यों हैं? दूसरा सवाल यह है कि अगर एमवीए ने ठाकरे परिवार को कुर्सी नहीं दी तो क्या वह गठबंधन से अलग हो जाएंगे?
मातोश्री का दबदबा खत्म, पवार ने 2 सिल्वर ओक में शिफ्ट कर दी पावर
पिछले 10 साल के दौरान महाराष्ट्र में राजनीति में कई बदलाव हुए। दशकों तक अटूट माने जाने वाला शिवसेना-बीजेपी गठबंधन खत्म हो गया। दोनों दलों के पॉलिटिकल पार्टनर बदल गए। राज्य में बीजेपी का नेतृत्व बदला और शिवसेना के उसूल बदले। बाला साहेब के दौर में एक कहावत चर्चित थी, शिवसेना का मुख्यमंत्री ठाकरे परिवार की हाथों की कठपुतली है। मुख्यमंत्री के लिए वर्षा बंगला से ज्यादा महत्वपूर्ण मातोश्री हुआ करता था, जहां से सरकार के फैसले तय किए जाते थे। बाला साहेब के एक इशारे पर मनोहर जोशी जैसे बड़े नेता सीएम की कुर्सी से बेदखल हो गए। राम मंदिर और मुंबई दंगे पर उनके बेबाक बयान पर काफी विवाद हुआ, मगर वे हमेशा उस पर कायम रहे। 2019 में बदलते राजनीति के दौर में ठाकरे परिवार की नजर सीएम की कुर्सी पर टिक गई। उद्धव ठाकरे ढाई साल तक मुख्यमंत्री बनने वाले ठाकरे परिवार के पहले नेता बन गए, मगर पावर सेंटर मातोश्री से शिफ्ट होकर 2 सिल्वर ओक पहुंच गया। शरद पवार ही ठाकरे सरकार और एमवीए के फैसले तय करने लगे।
पार्टी को बचाने के लिए सीएम की कुर्सी उद्धव ठाकरे के लिए जरूरी
महाविकास अघाड़ी में शरद पवार की ताकत ही अब उद्धव ठाकरे के लिए चिंता का सबब बन गई है। शिवसेना में टूट के बाद उद्धव वह हैसियत भी गंवा बैठे, जो बाला साहेब को हासिल था। बाला साहेब के दौर में शिवसेना के असंतुष्ट नेता साथ छोड़कर गए, मगर किसी ने पार्टी तोड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई थी। अब बची हुई शिवसेना को संभालने के लिए जरूरी है कि पार्टी सत्ता में बनी रहे और कमान ठाकरे परिवार के हाथ में हो। वह पार्टी के किसी दूसरे नेता पर भरोसा नहीं करते हैं। शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं ने मान लिया है कि अगर चुनावों में बहुमत मिला तो उद्धव ठाकरे सीएम तय नहीं करेंगे बल्कि खुद कुर्सी संभालेंगे। संभावना जताई जा रही है कि वह आदित्य ठाकरे को उत्तराधिकारी बनाने की तैयारी कर रहे हैं, इसलिए चुनाव से पहले सीएम पद की चर्चा की मांग कर रहे हैं।
कांग्रेस में भी सीएम पद के कई दावेदार, डील शरद पवार के हाथ में
पिछले दिनों एक बयान में शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख ने कहा था कि चुनाव से पहले वह सीएम फिक्स करना चाहते हैं क्योंकि पिछले चुनाव में अधिक सीटें मिलने के बाद बीजेपी ने दावा ठोक दिया था। इस कारण उन्हें नए गठबंधन के साथ सरकार बनानी पड़ी। अब वह नहीं चाहते हैं कि 2019 का अनुभव फिर से दोहराया जाए। इस बीच महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी रमेश चिन्निथाला ने कहा कि पार्टी सीएम पद और सीटों के बंटवारे पर खुले मन से काम करेगी। उन्होंने आश्वासन दिया है कि कांग्रेस को इस गठबंधन में बड़ा भाई बनने की कोई मंशा नहीं है। हालांकि उन्होंने महाविकास अघाड़ी में कई छोटे दलों को शामिल करने के संकेत दिए, जिससे ठाकरे की टेंशन बढ़ रही है। राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि सीएम पद का सारा दारोमदार चुनाव नतीजों में छिपा है। कांग्रेस में भी सीएम पद के कई दावेदार हैं और पिछले 10 साल से सत्ता के इंतजार में हैं। शरद पवार की दिलचस्पी गैर बीजेपी सरकार बनाने में है। वह ऐसे सीएम का समर्थन करेंगे, जो उनके समीकरणों में फिट बैठता हो। ऐसे में उद्धव ठाकरे को दोबारा मौका मिल सकता है, मगर आदित्य ठाकरे को उत्तराधिकारी बनाने के लिए राजी करना आसान नहीं है।