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वासुकी नाग ने गुफा से फुफकार मारी तो डरी सिकंदर की सेना, एक राजा ने जिंदा जलाया था पाताल लोक के नागों का कुनबा

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Navbharat Timesवासुकी नाग ने गुफा से फुफकार मारी तो डरी सिकंदर की सेना, एक राजा ने जिंदा जलाया था पाताल लोक के नागों का कुनबा

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Authored byदिनेश मिश्र | नवभारतटाइम्स.कॉम 2 May 2024, 6:49 pm

गुजरात की एक खदान में सांप के जीवाश्म खोजे गए हैं। 15 मीटर लंबे इस सांप को वासुकी इंडिकस नाम दिया गया है। पौराणिक कथाओं में नागों के राजा वासुकी वही हैं, जो भगवान शिव के गले में हर वक्त नजर आते हैं।

हाइलाइट्स

  • सिकंदर का सामना हिमालयी क्षेत्र की गुफाओं में रह रहे विशालकाय सांपों से हुआ
  • कश्मीर का राजा अपने साथ रखता था दो विशालकाय सांप, दरबार में भी लाता था
  • गुजरात की खदान से मिले 5 करोड़ साल पहले के एक विशालकाय सांप के अवशेष
नई दिल्ली: सिकंदर महान जब दुनिया जीतने निकला तो उसके साथ सेनाएं और यूनानी दार्शनिक, इतिहासकार और भूगोलवेत्ता भी गए। इसी में से एक था स्ट्रैबो। यूनान का महान दार्शनिक और भूगोलवेत्ता स्ट्रैबो ने अपने यात्रा संस्मरण में लिखा है कि जब सिकंदर पांच नदियों वाले इलाके यानी पंजाब क्षेत्र में पहुंचा तो वहां पर उसका सामना बड़े-बड़े सांपों से हुआ। सिकंदर सेनापति नियार्कस तरह-तरह के सांपों को देखकर हैरान रह गया। इस वजह से यहां के लोग जमीन से काफी ऊंचाई पर रहते थे। उस वक्त दक्षिण-पश्चिम के पहाड़ी कश्मीर क्षेत्र के राजा अभिसार के पास 80 और 140 फीट के दो विशालकाय नाग रहते थे। वह उन्हें कभी-कभी दरबार में भी लेकर आता था। भारत में तब गुफाओं में रहने वाले बड़े-बड़े सांपों को कोई परेशान नहीं करता था। उन्हें पवित्र माना जाता था और वो गुफाओं में रहा करते थे। इन सभी नागों को वासुकी ही कहा जाता था, क्योंकि ये वासुकी के वंशज माने जाते हैं।
सिकंदर की सेनाओं के मार्च से परेशान होकर मारी फुफकार
जब सिकंदर की सेना इन गुफाओं के पास से गुजरी तो ये नाग उन सेना के कदमों की आवाज सुनकर बेहद नाराज हुए। उन्होंने गुस्से में आकर एकसाथ इतनी तेज फुफकार भरी कि हर कोई डर गया और वहां से सेना भाग खड़ी हुई। वासुकी के वंशज 70 फीट लंबे नागों ने गुफा से बाहर केवल सिर ही निकाला था और लोग सहम गए थे। यह जिक्र जेएच वोगेल की किताब इंडियन सरपेंट-लोर में किया गया है। जेम्स फरग्यूसन ने अपने ग्रंथ ट्री एंड सरपेंट वर्शिप (1868) में लिखा है कि नागों को पूजने वाले सपेरे उत्तर भारत में रहा करते थे। भारतीय सेना में ब्रिगेड सर्जन रहे डॉ. सीएफ ओल्डहैम ने लिखा है कि नागों का प्रमुख शहर तक्षशिला हुआ करता था। एक भारतीय राजा जन्मेजय ने तक्षशिला पर कब्जा कर लिया था। उसने हजारों नागों को जिंदा जला दिया था। जन्मेजय की यह कहानी महाभारत में है।

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एनाकोंडा जैसे सांपों से भी काफी विशाल था वासुकी नाग
दरअसल, हाल ही में गुजरात के पैनान्ध्रो लिग्नाइट खदान में सांप के जीवाश्म खोजे गए हैं। ये अवशेष दुनिया में अब तक के सबसे बड़े जीवित सांपों में से एक है। इस नाग की लंबाई 15 मीटर थी, जो डायनासोर टी-रेक्स से भी लंबा था। ये नाग 5 करोड़ साल पहले धरती पर रहता था। ये इतना विशाल था कि एनाकोंडा जैसे बड़े-बड़े अजगर भी इसके आगे बौने नजर आते थे। वैज्ञानिकों ने खोजे गए इस सांप को वासुकी इंडिकस नाम दिया है। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक वासुकी भगवान शिव के गले में मौजूद सांप का नाम है। इसका जीनस नाम हिंदू धर्म में नागों के पौराणिक राजा वासुकी से लिया गया है।

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पाताललोक में रहा करते थे नाग, वासुकी का रंग मोतियों जैसा
शशांक शेखर पांडा की किताब नागाज इन द स्कल्पचरल डेकोरेशंस ऑफ अर्ली वेस्ट ओडिशन टेंपल्स में लिखा है कि नागों का जिक्र सबसे पहले महाभारत और वाराह पुराण में मिलता है, जो पाताललोक में रहते थे। वाराह पुराण के अनुसार, ऋषि कश्यप के सात पुत्र थे, जिन्हें वासुकी, तक्षक, करकोटका, पदम, महापदम, शंखपाला और कूलिका। मायाशिल्प में कहा गया है कि वासुकी नाग का रंग मोतियों की तरह सुनहरा सफेद था। वहीं तक्षक का रंग लाल था और उसके फन पर स्वस्तिक का निशान था। करकोटा का रंग काला और उसके फन पर तीन सफेद धारियां थी। पदम का रंग गुलाबी था, जबकि महापदम का रंग सफेद था। उसके फन पर त्रिशूल का निशान था। शंखपाला का रंग पीला और कूलिका का रंग लाल था। महाभारत में कहा गया है कि वासुकी समेत ये नाग महर्षि कश्यप और कद्रु की संतान थे। महाभारत में कहा गया है कि हजारों की संख्या में नाग भोगवतीपुर में रहा करते थे। वासुकी की पत्नी शतशीर्षा थी। नागधन्वातीर्थ में देवताओं ने वासुकी को नागराज बनाया था। मान्यता है कि नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे। कश्मीर का अनंतनाग इन नागवंशियों का गढ़ था।

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किताब शिल्परत्न में दावा-नाग आधे इंसान और आधे सांप
ऐसी मान्यता है कि वासुकी शिव के परम भक्त हैं और उनका निवास स्थान भगवान शिव का शरीर ही है। 17वीं सदी की किताब शिल्परत्न में कहा गया है कि नाग आधे इंसान और आधे सांप जैसे हुआ करते थे। शरीर का निचला हिस्सा सांप जैसा था, जबकि ऊपरी हिस्सा इंसानों जैसा। नागों के 1 से लेकर 9 सिर होते थे। मत्स्य पुराण में भी नागों का वर्णन है। हड़प्पा सभ्यता में भी नागों के चित्र बने हुए हैं। मिट्टी की कई नाग आकृतियां मिली हैं। इसमें बिहार के एक पुरातात्विक स्थल चिरांद से हैं। पांच सिर वाले नाग की मूर्ति भरहुत से मिली है। नागों को शिव से जोड़ा जाता है। आज भी कई मंदिरों में शिवलिंग के साथ या शिव के साथ नाग की आकृति लिपटी हुई दिखाई दे जाती है।

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समुद्र मंथन के वक्त नाग वासुकी बन गए थे रस्सी
दिल्ली में आचार्य पंडित विनोद शास्त्री के अनुसार, एक बार भगवान शिव को अपनी आंतरिक शक्ति से पता चला कि नागवंश का नाश होने वाला है, तब शिव और माता पार्वती ने अपनी पुत्री मनसा का विवाह जरत्कारू के साथ कर दिया। इनके पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के नागयज्ञ के समय नागों की रक्षा की। समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग ने मंदराचल पर्वत को बांधने के लिए रस्सी का काम किया था, जिससे लक्ष्मी समेत कई तरह के रत्न निकले। त्रिपुरदाह के समय नाग वासुकी शिव के धनुष की डोर बन गए थे। वासुकी के बड़े भाई शेषनाग हैं जो भगवान विष्णु के परम भक्त हैं और उनके लिए आरामदेह बिस्तर बन जाते हैं। 1000 नागों में शेषनाग सबसे बड़े भाई हैं, जबकि दूसरे स्थान पर वासुकी और तीसरे स्थान पर तक्षक हैं।

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जनमेजय ने जब नागों को मारने के लिए किया था नाग यज्ञ
महाभारत के अनुसार, पांडवों के पौत्र राजा परीक्षित एक बार शिकार खेलते हुए शमीक ऋषि के आश्रम में चले गए थे। ऋषि उस वक्त ध्यान में लीन थे। इस पर परीक्षित ने गुस्से में ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया। जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि को यह बात मालूम चली तो उन्होंने परीक्षित को यह श्राप दिया कि उनकी सात दिन के भीतर तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हो जाएगी। राजा परीक्षित को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने भागवत कथा सुननी शुरू कर दी। सातवें दिन तक्षक नाग ने उन्हें डस लिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए परीक्षित के बेटे जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया। इस यज्ञ में सभी सांप आकर गिरने लगे थे। ऐसे में वासुकी नाग ने अपनी बहन जरत्कारु से नागों की रक्षा का निवेदन किया। तब जरत्कारू ने अपने ज्ञानी पुत्र आस्तिक को नागों को बचाने का जिम्मा सौंपा। आस्तिक ने अग्नि की पूजा की और जनमेजय से यज्ञ की आहुतियों को रोकने को कहा। इससे वासुकी और तक्षक यज्ञ में भस्म होने से बच गए।

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