Friday, January 10, 2025
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Home वाराणसी में शुरू हुई पावरलूम की जियो टैगिंग:पावरलूम का तैयार होगा डेटा, 1985 के बाद पहली बार हो रही गणना

वाराणसी में शुरू हुई पावरलूम की जियो टैगिंग:पावरलूम का तैयार होगा डेटा, 1985 के बाद पहली बार हो रही गणना

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वाराणसी में बनारसी साड़ी की चमक को और ज्यादा करने के लिए वस्त्र एवं हथकरघा डिपार्टमेंट अब पावरलूम की जियो टैगिंग करवा रहा है। इससे जहां हथकरघा को नई संजीवनी मिलेगी। वहीं पावरलूम की भी संख्या पता चलने के बाद उनके संवर्धन पर काम होगा।

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पावरलूम की संख्या पर वाराणसी में कब काम हुआ था और अब जियो टैंगिंग की जरूरत क्यों पड़ी। इन सब विषयों पर हमने वाराणसी परिक्षेत्र के वस्त्र एवं हथकरघा अपर आयुक्त अरुण कुमार कुरील से बात की। उन्होंने इस संबंध में विस्तार से बात की। पेश है खास रिपोर्ट…

1985 में हुई थी प्रदेश में पावरलूम की गणना सहायक आयुक्त वस्त्र एवं हथकरघा अरुण कुमार कुरील ने बताया- प्रदेश में पावरलूम की गणना साल 1985 में हुई थी। जिसकी अब कोई प्रामणिकता नहीं रह गई है। ऐसे में सरकार ने इनकी संख्या पता करने के लिए जियो टैगिंग शुरू की गई है। जो वाराणसी परिक्षेत्र में भी हो रही है। वाराणसी परिक्षेत्र चंदौली, जौनपुर, मिर्जापुर और भदोही हैं। जहां हमने काम शुरू कर दिया है।

यूपी कॉर्न कर रही जियो टैगिंग अरुण कुमार कुरील ने बताया- उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी कॉर्न को जियो टैगिंग की जिम्मेदारी दी है। उसने वाराणसी परिक्षेत्र में काम शुरू कर दिया है। अभी तक वाराणसी में कुल 28970 की जियो टैगिंग हो चुकी है। उन्होंने बताया कि वाराणसी में एक अनुमान के अनुसार एक लाख से अधिक पावरलूम हैं। 1985 में इनकी संख्या न के बराबर थीं। पावरलूम की वास्तविक जानकारी के लिए अब जियो टैगिंग हो रही है। वाराणसी के अलावा चंदौली में 2717, मिर्जापुर में 191 और भदोही में अभी तक किसी भी लूम की जियो टैगिंग नहीं हो सकी है।

हथकरघा को पहुंचा रहे चोट अरुण कुमार कुरील के अनुसार- वाराणसी का बनारसी साड़ी उद्योग जिसमें साल 2004 में मंदी आयी तो हथकरघे बंद हो गए। जिनका स्थान पावरलूम ने ले लिया। इनपर डुप्लीकेट बनारसी बनने लगी। ये आज भी हैंडलूम की कढ़ुआ साड़ी नहीं बना पाते हैं जिसकी विदेशों भी डिमांड हैं। आम इंसान को यह पहचान पाना मुश्किल होता है कि कौन सी साड़ी हैंडलूम की है और कौन सी साड़ी पावरलूम की। ऐसे में हैंडलूम के संवर्धन के लिए भी इनकी जियो टैगिंग की आवश्यकता है ताकि ये पता चल सके कि ये क्या बना रहे हैं और कैसे बना रहे हैं।

लोहता, जैतपुरा और बजरडीहा में सर्वाधिक पावरलूम उन्होंने बताया – शहर के जैतपुरा, बजरडीहा और लोहता इलाके में सर्वाधिक पावरलूम हैं। इसके अलावा लल्लापुरा में भी हैं। इनकी जियो टैगिंग के बाद हम उनका भी संवर्धन करेंगे और उन्हें भी बाजार और व्यापार मुहैया कराएंगे। हस्तशिल्पियों के साथ ही साथ पावर लूम के कारीगरों को भी बढ़ावा दिया जाएगा। उनके हुनर के अनुसार उन्हें काम मिलेगा।

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