झारखंड और महाराष्ट्र में हो तो विधानसभा चुनाव रहे हैं, लेकिन मुद्दों से ऐसा लगता है कि चुनाव लोकसभा के हों. जो मुद्दे ज्यादा चर्चा में रह रहे हैं और जिन्हें ज्यादा हवा दी जा रही है, वे कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव जैसे ही लगते हैं. इन विधानसभा चुनावों में भी ध्रुवीकरण, लोकलुभावन वादे, घुसपैठ जैसे मुद्दे ही केंद्र में हैं.
झारखंड में ध्रुवीकरण के लिए भाजपा ने सोशल मीडिया पर ऐसा कैंपेन चलाया, जिसे चुनाव आयोग ने भी गलत माना. वहां भाजपा और कांग्रेस अखबारों में जिस तरह का विज्ञापन दे रहे हैं, उन्हें देख कर भी ऐसा नहीं लगता कि जनता की समस्याओं का हल करना और उनके जीवनस्तर को ऊपर उठाना किसी पार्टी के कोर एजेंडे में शामिल है.
भाजपा ने तीन मुद्दों – घुसपैठ, भ्रष्टाचार और एकजुटता – का जिक्र किया है. जाहिर है, भाजपा ने पूरे चुनाव में घुसपैठ और एकजुटता के मुद्दे के बहाने ध्रुवीकरण करने के मकसद से अभियान चलाया है. इसी के तहत उसके नेताओं ने ‘वे रोटी-बेटी पर कब्जा कर लेंगे’, ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे बयान दिए.
महाराष्ट्र में भी भाजपा नेताओं ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दिया. यह बात अलग है कि वहां उसके साथी अजीत पवार ने साफ कह दिया कि महाराष्ट्र में ऐसा नहीं चलता, यह यूपी नहीं है. मुख्यमंत्री शिंदे ने भी कहा कि उनके वोट मांगने का आधार ऐसे बांटने वाले नारे नहीं, बल्कि उनकी सरकार के विकास कार्य हैं. यहां तक कि भाजपा में भी पंकजा मुंडे जैसी नेताओं ने साफ कहा कि इस तरह के नारे महाराष्ट्र में नहीं चलते.
उधर, कांग्रेस भी अपने विज्ञापन में अपनी सात गारंटियों की बात करते हुए जनता से वोट देने की अपील कर रही है. इन गारंटियों में जनता को मुफ्त में देने वाली ‘रेवड़ियों’ और कुछ न पूरा किए जाने लायक (पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए) वादों की बात की गई है. सरकारी नौकरी देने के वादे में नई संख्या बताई जा रही है, जबकि पिछली बार किया वादा भी पूरा नहीं हो सका है.
नारे नए, नैरेटिव पुराना
पूरे चुनाव प्रचार में दोनों ही प्रमुख गठबंधनों ने नए नारों से पुराने नैरेटिव को ही धार देकर चुनाव जीतने की कोशिश की है. घोषणापत्रों में लिखे शब्द नेताओं के भाषणों से अलग, नरम तेवर लिए जरूर होते हैं. लेकिन, विडंबना है कि घोषणापत्रों की अहमियत न नेताओं के लिए है और न जनता वोट देते समय उन्हें दिमाग में रखती है. शायद यही वजह है कि घोषणापत्र मतदान से महज कुछ दिन पहले जारी करने का चलन चल पड़ा है. झारखंड में सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने ‘अधिकार पत्र’ के नाम से अपना घोषणापत्र पहले चरण के मतदान के लिए प्रचार खत्म होने वाले दिन (11 नवंबर) जारी किया.
जनता की नजर में क्या हैं मुद्दे?
ऐसे में जनता के असल मुद्दे गौण हैं. एक स्थानीय अखबार ने झारखंड के सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों में कराए गए सर्वे के आधार पर बताया है कि चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार है. करीब आधे लोग रोजगार और विकास को चुनावी मुद्दा मानते हैं. सर्वे के मुताबिक सबसे ज्यादा 26 फीसदी लोगों ने रोजगार को और 23 फीसदी ने विकास को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बताया. सर्वे में एक और बात सामने आई कि स्वास्थ्य (5%), सुरक्षा (3%), शिक्षा (8%) और स्थानीयता (6%) से ज्यादा बड़ा मुद्दा घुसपैठ (14%) को माना गया. 15 प्रतिशत लोगों की नजर में भ्रष्टाचार चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है. 65 प्रतिशत लोगों की राय है कि पांच साल में राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ा है.
घुसपैठ को हवा दे रहे, पलायन को भूल रहे नेता
बीजेपी नैरेटिव बना रही है कि बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठिये झारखंड में अवैध तरीके से आ रहे हैं और स्थानीय लोगों से शादी करके उनकी ‘बेटी और माटी पर कब्जा’ कर रहे हैं. नतीजा हो रहा है कि मुस्लिमों की आबादी आदिवासियों की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. वे इसके पीछे छिपे पलायन के हकीकत की बात नहीं करते.
आंकड़े बताते हैं कि 2001 की जनगणना में झारखंड में 26.3 प्रतिशत आदिवासी थे. 2011 में ये 26.2 प्रतिशत थे. 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड के 14.72 लाख लोग (आदिवासी और गैर आदिवासी) पलायन कर गए थे. यह संख्या कुल आबादी का 5.46 फीसदी थी. 2011 की जनगणना में झारखंड से पलायन करने वालों का प्रतिशत 18.66 पर पहुंच गया था.
जानते हुए गलत मुद्दों को हवा दे रहे नेता
झारखंड में भाजपा ने अवैध घुसपैठ, तुष्टीकरण, धर्मांतरण, भ्रष्टाचार, महंगाई, आरक्षण खतरे में है, जैसे मुद्दे उठाए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार द्वारा किए गए ‘विकास कार्यों’ को गिनाए हैं. कांग्रेस ने ‘संविधान बचाओ’ पर जोर दिया है. उसकी सहयोगी जेएमएम ने आदिवासी अस्मिता पर मेन फोकस रखा है.
महाराष्ट्र में भी लगभग वही हाल है. भाजपा हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और मोदी सरकार के कामकाज के नाम पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस संविधान, आरक्षण और महाराष्ट्र के साथ केंद्र के कथित भेदभाव को मुद्दा बनाए हुए है.
लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने इस बात की हवा बनाई कि अगर एनडीए को 400 सीटें आ गईं तो वह ओबीसी आरक्षण खत्म कर देगा, संविधान बदल देगा. यह जानते हुए कि व्यावहारिक रूप से ऐसा करना आसान नहीं होगा. एनडीए को लगा कि विपक्ष का यह नैरेटिव कारगर रहा, तो विधानसभा चुनाव में अब उसने भी यही नैरेटिव सेट करने की कोशिश की. प्रधानमंत्री सहित भाजपा नेता सत्ताधारी गठबंधन पर निशाना साधते हुए कह रहे हैं कि अगर ‘उनकी’ सरकार आ गई तो आदिवासियों का आरक्षण खत्म कर मुसलमानों को दे दिया जाएगा.
चुनाव राज्यों के, छाए हैं राष्ट्रीय नेता
झारखंड हो या महाराष्ट्र, मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों में ही है. एक में भाजपा है और दूसरे में कांग्रेस. दोनों के साथ स्थानीय क्षेत्रीय पार्टियां हैं. दोनों ही राज्यों में सरकार का नेतृत्व स्थानीय पार्टियों के हाथ में है. झारखंड में जेएमएम के पास और महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे) के पास. इसके बावजूद चुनाव में राष्ट्रीय नेता और लोकसभा जैसे मुद्दे ही छाए हुए हैं.
झारखंड में पहले चरण के मतदान के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार सभाएं और एक रोड शो किया. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान, योगी आदित्य नाथ जैसे बड़े नेताओं की करीब पौने दो सौ सभाएं हुईं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने भी चार-चार सभाएं कीं.
उधर, महाराष्ट्र में भी पिछले हफ्ते तक पीएम मोदी चार, गृह मंत्री अमित शाह छह, योगी आदित्यनाथ दो, राहुल गांधी दो सभाएं कर चुके थे. अब इन सभाओं और इनके जरिए बनाए जा रहे नैरेटिव का कितना असर होता है, यह तो 23 नवंबर को परिणाम आने पर ही पता चलेगा.
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FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 21:45 IST