‘रोम पोप का तो मधेपुरा गोप का’, जानें किस लोकसभा चुनाव से शुरू हुई थी यह कहावत? इस बार है कड़ा मुकाबला
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पटना. बिहार के सियासत में एक कहावत बेहद प्रचलित है. इस कहावत में ही इसका जवाब भी छुपा हुआ है. दरअसल यह कहावत है ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का’. यह पिछले कई सालों से बिहार की सियासत में खूब बोली और सुनी जाती है. लेकिन, जब मौका चुनाव का होता है. तब यह कहावत और चर्चा में आ जाती है. बिहार में लोकसभा चुनाव में ऐसे तो 40 सीटों पर मुकाबला बेहद कड़ा है. लेकिन, मधेपुरा लोकसभा सीट ऐसा है जिसकी चर्चा खूब हो रही है.
जातीय समीकरण के लिए चर्चित बिहार में जाति की राजनीति हावी रहती है और यादव बाहुल्य मानी जाने वाली इस सीट पर आरजेडी की साख टिकी हुई है क्योंकि यादवों के गढ़ माने जाने वाले इस सीट पर जदयू का क़ब्ज़ा है और आरजेडी किसी भी क़ीमत पर इस पर कब्जा करना चाहती है. मधेपुरा में यह कहावत खूब चर्चा में रहती है. लेकिन, क्या आपको पता है इस कहावत की शुरुआत कब हुई थी? आखिर इस कहावत की शुरुआत क्यों और कैसे हुई.
जानें कब हुई इस कहावत की शुरुआत
बीपी मंडल के पोते निखिल मंडल बताते हैं कि जो उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि 1962 में तीसरा आम चुनाव था, जब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले बीएन मंडल ने सहरसा लोकसभा से प्रसिद्ध कांग्रेस नेता ललित नारायण मिश्रा को हराया था. लेकिन, फैसले को इस आरोप के आधार पर अदालत में चुनौती दी गई थी कि बीएन मंडल जी ने अपने एक पैम्फलेट में जातिवादी नारा ‘रोम है पोप का, मधेपुरा है गोप का’ का इस्तेमाल किया था, जिसने सांप्रदायिक भावनाओं को हवा दी थी.
यादव उम्मीदवार ही जीतते आ रहे हैं चुनाव
निखिल मंडल बताते हैं कि तब यह मामला काफी गर्माया था और काफी चर्चा भी हुई थी और बाद में मामला अदालत तक गया था. तब से आज तक मघेपुरा में यादव उम्मीदवार ही जीतता रहा है. चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधान सभा चुनाव यादव उम्मीदवार के अलावा किसी और जाति के उम्मीदवार की जीत नहीं हुई है. इस बार भी मुकाबला जदयू के दिनेश चंद्र यादव और आरजेडी के कुमार चंद्रदीप के बीच है. मुकाबले को अपने पाले में करने के लिए जदयू की तरफ से खुद नीतीश कुमार ने मोर्चा संभाल रखा है. वहीं दूसरी तरफ तेजस्वी यादव भी मधेपुरा में लगातार चुनावी सभाएं कर रहे हैं.
क्या कहता है मधेपुरा का जातीय समीकरण?
मधेपुरा के जातीय समीकरण पर नजर डाले तो यहां सबसे अधिक आबादी यादव की है. इसके बाद मुस्लिम, ब्राह्मण और राजपूत वोटर हैं. इस सीट पर दलित, कुर्मी कोयरी वोटर की संख्या भी ठीक-ठाक है. मघेपूरा सीट से लालू यादव, शरद यादव और पप्पू यादव जैसे दिग्गज यादव नेता सांसद रह चुके हैं और सबसे दिलचस्प यह है कि मघेपूरा में किसी एक दल की बादशाहत नहीं रही. इस सीट पर बारी-बारी से अलग-अलग दल का कब्जा रहा है.
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FIRST PUBLISHED :
April 29, 2024, 18:14 IST