सड़क चौड़ीकरण के लिए घर का 1345 वर्गफीट हिस्सा तोड़ने के एवज में नगर निगम को 33.27 लाख रुपए का मुआवजा देना होगा। मामला 2006 का है, जब नगर निगम ने हनुमान चौराहा (जीवाजीगंज) पर सड़क चौड़ीकरण कार्य के लिए अरोरा परिवार के घर का बड़ा हिस्सा तोड़ दिया था।
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बाद में परिवार ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधान के अंतर्गत मुआवजा मांगा, तो निगम ने इनकार कर दिया। तर्क दिया कि ये जनहित का मामला है। इसमें अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते। नगर निगम के अलग प्रावधान है। हालांकि, हाई कोर्ट ने नगर निगम के तर्क को खारिज करते हुए 4 सप्ताह के भीतर ब्याज के साथ मुआवजा देने का आदेश दिया है।
दरअसल, मामले की शुरुआत 2006 से हुई, जब निगम ने अरोरा परिवार को नोटिस जारी किया। इसमें बताया कि सड़क चौड़ीकरण के लिए उनके घर की तुड़ाई करनी है। ऐसे में 15 दिन के भीतर जगह खाली करें। निगम की ओर से ये भी दलील दी गई कि निर्माण बिना अनुमति किया गया है। सड़क चौड़ीकरण का कार्य जनहित से जुड़ा कार्य है।
फिर भी मकान मालिक को थोड़ा मुआवजा दे दिया जाएगा। निगम के नोटिस को 2006 में ही चुनौती देते हुए अरोरा परिवार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इसमें बलदेव कुमार के प्रकरण में दिए मुआवजा को आधार मानकर भुगतान की मांग की गई।
हाई कोर्ट ने जिला न्यायाधीश, ग्वालियर को निर्देश दिया कि वे रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद मुआवजा राशि निर्धारित करें। कुछ समय जिला न्यायाधीश ने 33.27 लाख रुपए बतौर मुआवजा देने के संबंध में रिपोर्ट पेश की।
निगम ने इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई और कहा कि नगर निगम को जमीन अधिग्रहण अधिनियम के अंतर्गत मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है। नगर निगम अधिनियम में ऐसे प्रकरणों में मुआवजा देने का पृथक से प्रावधान है। हालांकि, हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया।