इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश जल निगम के शहरी व ग्रामीण में विभाजित होने से पहले जूनियर इंजीनियर, सहायक इंजीनियर, रूटीन ग्रेड क्लर्क आदि के 1314 पदों की भर्ती में 169 दागी अभ्यर्थियों का चयन निरस्त कर दिया। साथ ही शेष 163 चयनितों की मेरिट के अनुस
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कोर्ट ने कहा कि इन लोगों को वरिष्ठता दी जाएगी लेकिन जितने समय तक नियुक्ति से बाहर रहे, उसका वेतन नहीं मिलेगा।
कोर्ट ने कहा कि आप्टेक लिमिटेड द्वारा जारी 479 अभ्यर्थियों की मेरिट लिस्ट में आने वाले उन्हीं अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा, जिन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कोर्ट ने चयनित सूची में शामिल 479 अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लेकर तीन माह में परिणाम घोषित कर आरक्षण नियमानुसार मेरिट तय करने के बाद कट ऑफ पाने वाले याचियों की नियुक्ति करने का आदेश दिया है।
जो हाईकोर्ट नहीं आए उन्हें लाभ नहीं
कोर्ट ने कहा जिन अभ्यर्थियों ने परिणाम से संतुष्ट होकर अपना दावा छोड़ दिया और हाईकोर्ट नहीं आए, उन्हें चयन परिणाम का कोई लाभ नहीं मिलेगा।केवल हाईकोर्ट आने वाले याचियों को ही साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा। इसी के साथ कोर्ट ने जल निगम के दो मार्च 2020 के आदेश को रद्द कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने समराह अहमद सहित सैंकड़ों अभ्यर्थियों की 32 याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे व आरके ओझा को सुनने के बाद याचिकाएं निस्तारित करते हुए दिया है।
मामले के तथ्यों के अनुसार जल निगम ने बंटवारे के पहले 335 स्टेनो सहित लिपिक, 853 जूनियर इंजीनियर,122 सहायक अभियंता व चार कंप्यूटर साइंस/इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के पदों की भर्ती निकाली। परीक्षा परीणाम के बाद साक्षात्कार हुआ और चयन परिणाम घोषित किया गया। कुछ संदिग्ध अभ्यर्थियों की सीएएफएसएल हैदराबाद से रिपोर्ट मांगी गई। जिसमें 169 अभ्यर्थी फर्जी पाए गए। इन्होंने फर्जी व अवैध तरीके से साक्षात्कार दिया और चयनित हुए थे। पुनरीक्षित परिणाम के बाद 479 अभ्यर्थियों को जूनियर इंजीनियर पद के साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना था लेकिन नहीं बुलाया गया।
कोर्ट मं दी गईं दलीलें
याचियों की ओर से दलील दी गई थी कि जूनियर इंजीनियर भर्ती का चयन परिणाम एक जुलाई, 2017 को जारी हुआ। याची उसमें सफल घोषित किए गए। इसके बाद उन्हें नियुक्ति मिल गई। विभिन्न जिलों में उनकी तैनाती कर दी गई। इसी बीच अंतिम उत्तरकुंजी के कुछ प्रश्नों को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। कोर्ट ने विभाग को याचियों की शिकायतों पर विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया। इस आदेश के परिप्रेक्ष्य में विभाग ने पूरा चयन परिणाम निरस्त करते हुए चयनित याचियों की नियुक्तियां रद्द कर दीं। ऐसा करने से पूर्व याचियों को न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया। यह भी नहीं बताया गया कि चयन परिणाम दूषित होने में याची कैसे उत्तरदायी हैं। याचियों का कहना था कि चयन के बाद तीन साल की सेवा के बाद उन्हें निकाल दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि जो याची इसमें शामिल हैं, उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया जाए और मेरिट के बाद कट ऑफ के अनुसार नियुक्ति दी जाए। लेकिन जो अभ्यर्थी कोर्ट नहीं आए और 479 चयनितों में शामिल हैं, वे इस लाभ के हकदार नहीं होंगे।
करीब चार साल बाद आए 242 पेज के फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विज्ञापन व चयन के वक्त जल निगम एकीकृत निगम था। इसलिए जल निगम उनकी नियुक्ति के लिए जिम्मेदार था और चयनित अभ्यर्थी जल निगम के एकीकृत कर्मचारी थे। वर्ष 2021 में तत्कालीन यूपी जल निगम को यूपी जल निगम (शहरी) और (ग्रामीण) में तब्दील किए जाने से याचियों के दावे पर कोई असर नहीं पड़ेगा।