Friday, November 29, 2024
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भितरघात से हारे या ऐंटी इनकंबेंसी ने बिगाड़ा खेल? बीजेपी की स्पेशल टीम करेगी हारी सीटों की पड़ताल

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मनीष श्रीवास्तव, लखनऊ: यूपी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम होने कारणों की जमीनी तलाश शुरू हो गई है। हारी हुई लोकसभा सीटों से सांसदों, हारे प्रत्याशियों, लोकसभा प्रभारियों, संयोजकों और जिला प्रभारियों-जिलाध्यक्षों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट कारणों समेत प्रदेश मुख्यालय को भेज दी है। प्राथमिक रिपोर्ट में प्रत्याशियों की ‘एंटी-इनकंबेंसी’ से लेकर हारी हुई सीटों पर भितरघात और गड़बड़ी की आशंका जताई गई है। रिपोर्ट में विपक्ष के हर दांव के बारे में भी जानकारी दी गई है। अब इसी हफ्ते प्रदेश मुख्यालय पर समीक्षा बैठक होगी। इसके बाद अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में भितरघात और हार के कारणों की पड़ताल के लिए स्पेशल टीम भेजी जाएगी।

विधायक, सांसद, पदाधिकारी होंगे टीम में

बीजेपी ने इस लोकसभा चुनाव में यूपी में 33 सीटें जीती हैं। गठबंधन के साथ बीजेपी की 36 सीटें हैं। पार्टी का वोट शेयर भी 8.50% कम हो गया है। 2019 में बीजेपी के पास गठबंधन को मिलाकर 64 सीटें थीं। इसके बाद अब पार्टी ने फैसला किया है कि उन लोकसभा क्षेत्रों में स्पेशल टीम भेजकर प्राथमिक रिपोर्ट में जताए गए कारणों की असल पड़ताल करेगी, जहां बीजेपी हारी है या कम वोट मिले हैं। इस स्पेशल टीम में राज्यसभा सांसद, MLA, MLC और पार्टी के प्रदेश और क्षेत्र पदाधिकारी भी शामिल होंगे।

इन सभी को उन लोकसभा क्षेत्रों में भेजा जाएगा, जहां के वे निवासी नहीं हैं। यह टीम 5 से 6 दिन हर लोकसभा क्षेत्र में रुकेगी। वहां स्थानीय पदाधिकारियों के साथ प्रबुद्ध वर्ग और आम लोगों से बातचीत करके रिपोर्ट तैयार करेगी। एक सप्ताह में यह टीम अपनी फाइनल रिपोर्ट भाजपा प्रदेश मुख्यालय को भेजेगी। सूत्रों का कहना है कि भितरघात या गड़बड़ी की जानकारी मिलने पर ऐक्शन भी होगा। कुछ जिलों में संगठन में बदलाव भी किया जा सकता है। इनमें जिलाध्यक्षों, जिला प्रभारियों के साथ क्षेत्रीय पदाधिकारियों को हटाया भी जा सकता है।

रिपोर्ट में ये कारण बताए

– दो बार वाले ज्यादातर सांसदों के प्रति जनता में नाराजगी थी। कुछ सांसदों का व्यवहार भी ठीक नहीं था। विपक्ष ने घर-घर जाकर बताया कि आपका सांसद क्षेत्र में नहीं दिखता है।
– पार्टी पदाधिकारियों से विधायकों, सांसदों ने दूरी बना रखी थी। पहले विधायक-सांसद पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं के घर जाते थे। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की सुनी नहीं जाती थी। पार्टी ने हर रोज के हिसाब से अभियान चला रखे थे। कार्यकर्ताओं का ज्यादातर वक्त इसी में गुजरता था।
– टिकट रिपीट होने के बाद कुछ जिला प्रभारियों ने प्रत्याशी बदलने का सुझाव भी दिया, पर उसे सुना नहीं गया।
– कुछ जिलों में विधायकों और सांसद के बीच समन्वय नहीं था। कई जगह विधायक अपने ही क्षेत्र तक सीमित रह गए थे।
– विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के अभियान की काट बीजेपी नहीं कर पाई।
– बीजेपी को पिछले कई चुनावों से फायदा देने वाले लाभार्थी वर्ग के बीच विपक्ष ने जाकर 8,500 रुपये प्रतिमाह देने का वादा किया और फॉर्म भरवाकर उनके हस्ताक्षर भी लिए। फ्री राशन पाने वाला वर्ग इससे आकर्षित हुआ।
– लाभार्थियों-महिलाओं से डोर टु डोर संवाद नहीं हो रहा था। उनसे कॉल सेंटर से जानकारी ली जा रही थी।

राघवेंद्र शुक्ला

लेखक के बारे में

राघवेंद्र शुक्ला

राघवेंद्र शुक्ल ने लिखने-पढ़ने की अपनी अभिरुचि के चलते पत्रकारिता का रास्ता चुना। नई दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता में डिप्लोमा हासिल करने के बाद जुलाई 2017 में जनसत्ता में बतौर ट्रेनी सब एडिटर दाखिला हो गया। वहां के बाद नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की लखनऊ टीम का हिस्सा बन गए। यहां फिलहाल सीनियर डिजिटल कंटेंट प्रड्यूसर के पद पर तैनाती है। देवरिया के रहने वाले हैं और शुरुआती पढ़ाई वहीं हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री है। साहित्यिक अभिरूचियां हैं। कविता-उपन्यास पढ़ना पसंद है। इतिहास के विषय पर बनी फिल्में देखने में दिलचस्पी है। थोड़ा-बहुत गीत-संगीत की दुनिया से भी वास्ता है।… और पढ़ें

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