विदेश मंत्री एस. जयंशकर एससीओ सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान दौरे पर हैं. हालांकि उनके इस दौरे के जरिए पाकिस्तान के साथ रिश्तों में जमीं बर्फ पिघलने की कोई संभावना नहीं है. भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जयशंकर की किसी भी पाकिस्तानी प्रतिनिधि के साथ कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं होगी. खैर भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में मौजूदा वक्त में जो तनाव दिख रहा है, ऐसा नहीं है कि यह रिश्ता हमेशा से ऐसा ही रहा है. दोनों देशों के बीच कई बार ऐसे मौके आए जब लगा कि रिश्ते अच्छे हो जाएंगे. सारे विवाद सुलझ जाएंगे.
दरअसल, पाकिस्तान अपनी स्थापना के वक्त से ही एक अस्थिर राष्ट्र रहा है. यहां हमेशा से सिविलिय सरकारों और सेना के बीच टकराव रहा है. इसी टकराव की वजह से भारत के साथ रिश्तों में उतार-चढ़ाव आया और दोनों देशों के बीच करीब-करीब चार जंग हुए.
आज हम बात कर रहे हैं 1980 के दशक के अंतिम वर्षों की. उस वक्त भारत में युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हाथ में सरकार की कमान थी. उनकी उम्र 44 साल थी. दूसरी तरफ पाकिस्तान में भी मात्र 35 साल की उम्र में बेनजरी भुट्टो पीएम बनी थीं. यह ऐसा वक्त था जब भारत बड़े-बड़े सपने देखना शुरू किया था. उधर पाकिस्तान में भी बेनजीर को लेकर युवाओं में अलग ही दीवानगी थी. दोनों युवा प्रधानमंत्रियों ने रिश्तों को नई ऊंचाई पर पहुंचाने का फैसला किया.
राजीव गांधी का पाकिस्तान दौरा
इस बारे में हिंदुस्तान टाइम्स अखबार में 2 जनवरी 2008 को एक रिपोर्ट छपी थी. इसे विदेश मामलों के जानकार अमित बरुआ ने लिखा था. अमित लिखते हैं कि राजीव गांधी अपने पाकिस्तान दौरे से लौटकर 31 दिसंबर 1988 को एक प्रेस कांफ्रेस की. उस प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा था कि निश्चित तौर पर दोनों देश रिश्तों को नॉर्मल बनाना चाहते हैं. दिवंगत राजीव गांधी ने कहा कि मैं पूरे भरोसे से यह कह सकता हूं कि पाकिस्तान की पीपुल्स पार्टी की नीतियां पूर्व की सरकारों से काफी बेहतर है.
राजीव गांधी के इसी पाकिस्तान दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए. इसमें एक-दूसरे के परमाणु ठिकानों पर हमला नहीं करने का समझौता भी शामिल था. इसी कारण दोनों देश हर साल एक दूसरे को अपने परमाणु ठिकानों की सूची सौंपते हैं. राजीव गांधी के पाकिस्तान दौरे के दौरान दोनों प्रधानमंत्री तीन बार मिले थे.
कश्मीर नहीं था अहम मुद्दा
अमित बरुआ लिखते हैं कि उस वक्त दोनों देशों के बीच कश्मीर अहम मुद्दा नहीं था. यहां तक कि बेनजीर भुट्टो ने अपने पहले कार्यकाल (1988 से 1990) में पंजाब के आतंकवादियों को गिरफ्तार कराने या उनका खात्मा करने के लिए अहम सूचनाएं भी उपलब्ध करवाईं. इसके बाद तो उनको पाकिस्तान में भारत का आदमी होने का टैग लगा दिया गया. बेनजीर के काम करने के तरीकों से वहां की सेना बौखला गई.
फिर कुछ ही दिनों में स्थिति बदल गई. फरवरी 1989 में अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेना लौट गई और पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू किया. वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई में कश्मीर सेल बनाया गया और कश्मीरी आतंकवादियों की भर्ती, ट्रेनिंग और उन्हें हथियार मुहैया कराने का खेल शुरू हो गया.
सबसे गंभीर बात यह है कि पाकिस्तान में पीएम के हाथों में हर चीज की कमान नहीं होती. वह आईएसआई पर लगाम लगाना चाहती थीं लेकिन उनके पास ऐसा करने का पावर नहीं था. आईएसआई पर लगाम केवल वहां की सेना लगा सकती है.
कश्मीर में आतंकवाद
फिर 1990 में बेनजीर भुट्टो पीएम पद से हट गईं. दूसरी तरफ कश्मीर में आतंकवादियों ने खूनी खेल खेलना शुरू कर दिया. हजारों कश्मीरी पंडित मारे गए और कई हजार विस्थापित हो गए. आतंकवादियों ने कश्मीर को ऐसा घाव दिया जो आज भी ताजा है.
इसके बाद फिर 1993 में बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की पीएम बनीं. लेकिन, वह बेनजीर 1988 वाली नहीं थी. उन्होंने सत्ता से समझौता कर लिया और अपनी सरकार बचाए रखने के लिए सेना के साथ समझौता कर लिया. अपने पहले कार्यकाल में कश्मीर पर कोई बातचीत नहीं करने वाली बेनजीर अब जेनेवा में कश्मीरियों के मानवाधिकार के मुद्दे उठा रही थीं.
राजीव गांधी की हत्या हो गई थी और भारत में नरसिम्हाराव के नेतृत्व की वाली सरकार था. लेकिन, कश्मीर में आतंकवाद के कारण दोनों देशों के रिश्ते एक बार फिर बुरे दौर में जा चुके थे. बेनजीर के दूसरे कार्यकाल में रिश्तों में सुधार की कोई कोशिश नहीं दिखी.
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FIRST PUBLISHED :
October 16, 2024, 11:20 IST