Saturday, November 30, 2024
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Home ब्रुनेई के उमर अली सैफुद्दीन मस्जिद पहुंचे पीएम मोदी, जानें क्या है इसका इतिहास

ब्रुनेई के उमर अली सैफुद्दीन मस्जिद पहुंचे पीएम मोदी, जानें क्या है इसका इतिहास

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बंदर सेरी बेगवान: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंगलवार को ब्रुनेई की राजधानी बंदर सेरी बेगवान पहुंचे। यह दौरा इस मायने में खास है कि भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की यह पहली ब्रुनेई यात्रा है। दोनों देशों के बीच 2024 में राजनयिक संबधों के 40 साल पूरे हुए हैं। पीएम मोदी ने ब्रुनेई में भारतीय हाई कमीशन के नए परिसर की शुरुआत की। उन्होंने इसे दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों का प्रतीक बताया। मोदी ने कहा कि यह परिसर प्रवासी भारतीयों की सेवा करेगा। कोटा पत्थरों से बनी यह इमारत भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दिखाती है। मोदी इसके बाद बंदर सेरी बेगवान उमर अली सैफुद्दीन मस्जिद पहुंचे।

उमर अली सैफुद्दीन मस्जिद ब्रुनेई की राजधानी बंदर सेरी बेगवान में एक मस्जिद है। यह देश की दो मस्जिद नेगारा या राष्ट्रीय मस्जिदों (दूसरी जामे अस्र हसनिल बोल्किया मस्जिद) में से एक है। साथ ही यह ब्रुनेई का एक राष्ट्रीय स्थलचिह्न भी है। यह देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है। इसका नाम उमर अली सैफुद्दीन तृतीय (1914-1986) के नाम पर रखा गया है, जो ब्रुनेई के 28वें सुल्तान और वर्तमान सम्राट सुल्तान हसनल बोल्किया के पिता थे। यह मस्जिद ब्रुनेई में इस्लामी आस्था के प्रतीक के रूप में कार्य करती है।

मस्जिद का निर्माण

मस्जिद को बनाने में लगभग पांच साल लगे और उस समय इसकी लागत 1 मिलियन पाउंड (11,00,07,700 रुपये) से अधिक थी। इस मस्जिद का निर्माण मलेशिया की आर्किटेक्चुअल फर्म बूटी एडवर्ड्स एंड पार्टनर्स ने की थी। इस मस्जिद का निर्माण कार्य 4 फरवरी 1954 को शुरू हुआ था। इसके निर्माण में 1,500 टन कंक्रीट और 700 टन स्टील का उपयोग किया गया। इस मस्जिद के नींव की गहराई 80-120 फीट (24-37 मीटर) के बीच है।

कब हुआ था मस्जिद का उद्घाटन

उमर अली सैफुद्दीन मस्जिद का उद्घाटन 26 सितंबर 1958 को सुल्तान उमर अली सैफुद्दीन तृतीय के 42वें जन्मदिन समारोह के साथ किया गया था। इसकी वास्तुकला भारतीय मुगल साम्राज्य की वास्तुकला और इतालवी पुनर्जागरण शैली से प्रभावित है। इस मस्जिद में हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस डिजाइन की संकल्पना सबसे पहले सुल्तान उमर अली सैफुद्दीन तृतीय ने की थी और फिर इसे इतालवी मूर्तिकार और सजावटी पत्थर के ठेकेदार, कमीशन आर्किटेक्ट रुडोल्फो नोली ने विकसित किया था।

कितनी बड़ी है मस्जिद

मस्जिद का आकार लगभग 225X86 फीट (69 गुणा 26 मीटर) है और इसमें 3,000 श्रद्धालु बैठ सकते हैं। इसकी अधिकतम ऊंचाई 52 मीटर (171 फीट) है। इस मस्जिद का गुंबद सोने से ढका हुआ है। फर्श और पिलर इटली से संगमरमर से बनाए गए थे, जिसकी लागत 200,000 डॉलर से अधिक थी। आंतरिक भाग में 15 फीट (4.6 मीटर) व्यास का एक झूमर है जिसका वजन तीन टन से अधिक है; इसमें 62 फ्लोरोसेंट ट्यूब हैं। इस मस्जिद का फर्श बेल्जियम और सऊदी अरब से हाथ से बने एक्समिंस्टर कालीनों से ढके हुए हैं।

प्रियेश मिश्र

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प्रियेश मिश्र

नवभारत टाइम्स डिजिटल में डिजिटल कंटेंट राइटर। पत्रकारिता में दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला जैसी संस्थाओं के बाद टाइम्स इंटरनेट तक 5 साल का सफर जो इंदौर से शुरू होकर एनसीआर तक पहुंचा है पर दिल गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर और गोरक्षनाथ की धरती गोरखपुर में बसता है। देश-विदेश, अंतरराष्ट्रीय राजनीति/कूटनीति और रक्षा क्षेत्र में खास रुचि। डिजिटल माध्यम के नए प्रयोगों में दिलचस्पी के साथ सीखने की सतत इच्छा।… और पढ़ें

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