वॉशिंगटन: अमेरिकी कंपनी बोइंग एयरोस्पेस चीन के मुकाबले बड़ी संख्या में भारतीय इंजीनियरों की भर्ती कर रहा है। माना जा रहा है कि अमेरिका दुनियाभर में बढ़ते तनाव के बीच चीनी विशेषज्ञता पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है। हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, बोइंग भारत में चीन की तुलना में लगभग 20 गुना ज्यादा इंजीनियरों को नियुक्त कर रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 31 जुलाई तक, बोइंग करियर वेबसाइट ने चीन में केवल पांच नौकरियों के अवसर दिखाए, जिनमें से तीन इंजीनियरिंग में थे। इसके विपरीत, भारत में 83 नौकरियों के मौके थे, जिनमें से 58 इंजीनियरिंग पोस्ट के लिए थे। यह असमानता कम से कम दो सप्ताह से स्थिर बनी हुई है।
बोइंग के कर्मचारियों में कितने भारतीय
बोइंग के वर्तमान रोजगार आंकड़े इस प्रवृत्ति को और उजागर करते हैं। बोइंग के चीन में लगभग 2,200 कर्मचारी हैं, जबकि भारत में 6,000 से अधिक हैं। जबकि फैक्ट यह है कि भारत का कुल कॉमर्शियल एविएशन फ्लीट चीन के आकार का केवल छठा हिस्सा है। यह बदलाव विशेष रूप से चीनी प्रतिभा के साथ बोइंग के ऐतिहासिक संबंध को देखते हुए उल्लेखनीय है। बोइंग के पहले एयरोनॉटिकल इंजीनियर वोंग त्सू का जन्म बीजिंग में हुआ था। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से ग्रेजुएशन करने के बाद 1916 में नियुक्त किए गए वोंग ने बोइंग के पहले वित्तीय रूप से सफल विमान, मॉडल सी नेवल ट्रेनिंग सीप्लेन को डिजाइन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस उपलब्धि ने बोइंग के लिए एक दशक बाद अपने पहले समर्पित यात्री विमानों को विकसित करने का आधार तैयार किया।
चीनी इंजीनियर ने बोइंग को दी पहचान
स्मिथसोनियन के नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूजियम में क्यूरेटर एमेरिटस और कई एविएशन के इतिहास से जुड़ी पुस्तकों के लेखक टॉम क्राउच ने बोइंग की शुरुआती सफलता में वोंग के महत्वपूर्ण प्रभाव का उल्लेख किया है। क्राउच ने कहा, “मॉडल सी न केवल बोइंग का पहला प्रोडक्शन ऑर्डर था, बल्कि यह बड़ी संख्या में उत्पादित और बेचा जाने वाला पहला बोइंग विमान था।” उन्होंने कहा, “वोंग त्सू ने बोइंग कंपनी को दुनिया के मानचित्र पर ला खड़ा किया।” अपने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, वोंग ने बोइंग में केवल दस महीने बिताए, मॉडल सी की नौसेना परीक्षण उड़ानों से कुछ समय पहले ही वे चीन चले गए। सिएटल में, वोंग के योगदान को फ्लाइट म्यूजियम में याद किया जाता है, जहां एक स्थायी प्रदर्शनी उनके काम का सम्मान करती है।
बोइंग ने चीन से भारत पर ध्यान केंद्रित किया
बोइंग का चीनी एविएशन मार्केट के साथ संबंध 1970 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ, जो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की ऐतिहासिक यात्रा से प्रेरित था। इस जुड़ाव के कारण चीन में कई संयुक्त उद्यमों की स्थापना हुई, जिसमें इंजीनियरिंग, मेंटीनेंस और रिसर्च सेंटर, साथ ही सबसे सफल यात्री विमान मॉडल 737 के विकास को पूरा करने और निर्माण करने की फैसिलिटी भी शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में, दुनिया भर में 10,000 से ज्यादा बोइंग विमानों के पुर्जे और असेंबली चीन में बनाए गए हैं, जिसमें झेजियांग प्रांत के झोउशान में 737 कम्प्लीशन और डिलीवरी सेंटर जैसे उल्लेखनीय सहयोग शामिल हैं।
चीनी पुर्जों के कारण मुश्किल में फंसा बोइंग
हालांकि, 737 मैक्स विमानों से जुड़ी दो भयावह दुर्घटनाओं के बाद बोइंग के लिए हालात नाटकीय रूप से बदल गया है। इनमें से एक दुर्घटना 2018 में इंडोनेशिया में और दूसरी 2019 में इथियोपिया में हुई। इन घटनाओं के कारण 737 मैक्स बेड़े को उड़ान भरने से रोकना पड़ा और बोइंग की प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुंचा, लेकिन सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण बोइंग को और ज्यादा आलोचना का सामना करना पड़ा। इसमें विमानों के पहिए गिरने और 737 मैक्स विमान में हवा में पैनल फटने की घटनाएं शामिल हैं।
चीन ने बोइंग की जगह एयरबस को दी तवज्जो
बोइंग की चुनौतियों को और बढ़ाते हुए, चीन ने कमर्शियल एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन ऑफ चाइना (कॉमैक) के माध्यम से अपना यात्री जेट, C919 विकसित किया है, जिसका लक्ष्य बोइंग और एयरबस दोनों से बाजार हिस्सेदारी हासिल करना है। बोइंग के 2024 कमर्शियल मार्केट आउटलुक के अनुसार, चीन अगले दो दशकों में दुनिया का सबसे बड़ा विमानन बाजार बनने की ओर अग्रसर है, जहां 2043 तक 8,830 विमानों की डिलीवरी की अनुमानित आवश्यकता है। बोइंग की परेशानियों को बढ़ाते हुए, चीन ने अपने नए बेड़े के अधिग्रहण के लिए बोइंग की तुलना में एयरबस को प्राथमिकता दी है, जिससे बोइंग को अन्य जगहों पर विकास के अवसर तलाशने पर मजबूर होना पड़ा है।
बोइंग को भारत में दिखा बड़ा फायदा
इस बदलाव ने बोइंग को रणनीतिक रूप से भारत की ओर मोड़ दिया है, जो इंजीनियरिंग प्रतिभाओं का एक बढ़ता हुआ पूल और तेजी से बढ़ता विमानन बाजार वाला देश है। भारत, जो अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू एयरलाइन बाजार है, जो सिर्फ अमेरिका और चीन से पीछे है, को 2043 तक 2,835 विमानों की डिलीवरी की जरूरत होगी। बोइंग का भारत पर बढ़ता ध्यान चीन पर निर्भरता कम करने और भारत की इंजीनियरिंग क्षमताओं का लाभ उठाने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। यह तकनीक और विनिर्माण के लिए चीन के विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करने की भारत की महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप है।