उपेंद्र द्विवेदी, महोबाः बुंदेलखंड में लोककथा की तरह बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेमगाथा कही-सुनी जाती है। दोनों के प्यार की निशानी के रूप में महोबा के जैतपुर में भव्य मस्तानी महल आज भी मौजूद है। अब सरकार इस भव्य दुर्ग को संरक्षित करने जा रही है। एक करोड़ रुपये की लागत से मस्तानी महल को पर्यटन के लिए विकसित किया जाएगा, जिसके लिए 50-50 लाख रुपये के दो अलग-अलग प्रस्ताव तैयार किए गए हैं। इसको शासन से हरी झंडी भी मिल गई है। अब ऐतिहासिक मस्तानी महल के पर्यटन विकास की संभावना तेज हो गई है।
यह कहानी महाराजा छत्रसाल बुन्देला (4 मई 1649 से 20 दिसम्बर 1731) से शुरू होती है। महाराज छत्रसाल मध्ययुग के एक प्रतापी क्षत्रिय योद्धा के रूप में विख्यात हैं। उन्होने औरंगज़ेब को युद्ध में पराजित कर बुन्देलखण्ड में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था और उन्हीं की मुस्लिम रानी से जन्मी पुत्री मस्तानी से बाजीराव पेशवा को प्रेम हो गया था। मस्तानी ग्रन्थ में इतिहासकार दत्तात्रेय गणेश गोडसे ने लिखा है कि छत्रसाल बुन्देला और बाजीराव प्रथम के बीच सम्बन्ध पिता-पुत्र जैसे थे। मृत्यु के पहले ही छत्रसाल बुन्देला ने महोबा और उसके आस-पास का क्षेत्र बाजीराव प्रथम को सौंप दिया था। महाराजा छत्रसाल की जैतपुर रियासत बुंदेलखंड की सबसे संपन्न रियासतों में थी। उन्होंने जैतपुर की जागीर छोटे बेटे जगतराज को दी। बड़े बेटे हृदयशाह को पन्ना की जागीर सौंपी।
महाराज छत्रसाल ने बाजीराव को माना था अपना बेटा
इलाहाबाद के मुगल सूबेदार बंगश खां ने 1728 में जैतपुर पर हमला किया। उस समय महाराज छत्रसाल वृद्ध अवस्था में थे और उनका बड़ा बेटा हृदयशाह जैतपुर की जागीर न मिलने से नाराज था और युद्ध में साथ देने से मना कर दिया। तब महाराज छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा को पत्र भेजकर मदद मांगी।बाजीराव पेशवा ने महाराजा छत्रसाल की मदद करते हुए बंगश खां को युद्ध में परास्त किया। युद्ध विजय के बाद महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा को अपना तीसरा बेटा मानते हुए राज्य का एक तिहाई हिस्सा झांसी, कोंच और जालौन, सागर आदि का आधिपत्य बाजीराव को सौंप दिया था।
मस्तानी ने जहर खाकर दे दी थी जान
इतिहासकार एलसी अनुरागी बताते हैं कि इसी युद्ध में मस्तानी बाजीराव को मिली थी। युद्ध के बाद पेशवा ने महाराज छत्रसाल से मस्तानी का हाथ मांग लिया। महाराज छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा और मस्तानी का विवाह कराया और उपहार में मस्तानी महल बनवाकर दिया। इतिहासकारों का कहना है कि बाजीराव पेशवा के निधन के बाद दुखी मस्तानी ने भी जहर खाकर जान दे दी। इसके बाद उनकी प्रेम गाथा अमर हो गई। बेलाताल कस्बे में मस्तानी महल में आज भी युवा पहुंचकर उनके प्रेम को याद करते हैं।
एक करोड़ से होगा कायाकल्प
सरकार के द्वारा ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण का निर्णय लिया गया जिसके तहत बेलाताल को टूरिज्म सर्किट बनाने की तैयारी है। मस्तानी महल के संरक्षण के साथ इसे सैलानियों के लिए तैयार किया जा रहा है। जिसमें पहले प्रस्ताव में 50 लाख रुपये की लागत से मस्तानी महल को जाने वाले पहुंच मार्ग का उच्चीरण किया जाएगा और पर्यटकों के बैठने के लिए फर्नीचर आदि की व्यवस्था की जाएगी तो वही दूसरे प्रस्ताव में 50 लाख रुपये की लागत से मस्तानी महल के सौंदर्यीकरण, पार्किंग और पर्यटन विकास से संबंधित अन्य कार्य कराए जाएंगे।
देश के कोने-कोने से पर्यटक पहुंचेंगे यहां
जिला पर्यटन अधिकारी चित्रगुप्त श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए बताया कि ऐतिहासिक मस्तानी महल को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए प्रस्तावित कार्यों को लेकर शासनादेश भी जारी कर दिया गया है और कार्यदायी संस्था के तौर पर यूपीपीसीएल को नामित किया गया है।सरकार की पहल से अब मस्तानी महल के पर्यटन विकास संबंधित कार्य तेजी से होंगे जिसके बाद मस्तानी महल का दीदार करने के लिए देश के कोने-कोने से पर्यटक यहां पहुंच सकेंगे।
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