बड़ौदा की महारानी को क्यों नेहरू ने गिफ्ट की खास मॉडल की रोल्स रॉयस कार, क्या थी वजह
ये वाकया 1951 का है. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राजघरानों के महत्व और उनके योगदान के मद्देनजर एक खास काम किया. उन्होंने बडौदा की महारानी के लिए खास रोल्स रॉयस कार गिफ्ट की. उन्होंने कुछ और राजा-महाराजाओं को भी ये गिफ्ट दिया. बड़ौदा महारानी को दी गई ये कार कुछ साल पहले चर्चा में भी आई.
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देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने 1951 में बडौदा की महारानी चिमना देवी गायकवाड़ को क्लासिक रोल्स रॉयस कार भेंट की थी. ये एक खास कार थी. ये कार भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा खास आर्डर देकर खरीदी गई और फिर उपहार दी गई. नेहरू को तो राजा-महाराजाओं का विरोधी माना जाता था, आखिर क्यों उन्होंने रजवाड़े को इतनी महंगी कार भेंट की. वैसे नेहरू ने केवल बड़ौदा की महारानी ही नहीं कई राजाओं को ऐसी कार गिफ्ट की थी.
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भारतीय महाराजा रोल्स रॉयस ब्रांड की कारों के दीवाने थे. पूरे देश में भारतीय महाराजाओं ने 1920 के दशक तक सैकड़ों रोल्स रॉयस कारें खरीदकर उन्हें अपने काफिले में शामिल किया. बाद में जब कुछ महाराजाओं ने महसूस किया कि हर राजा के पास ऐसी कार है तो उन्होंने खास आर्डर से जरिए अपनी कार को कस्टमाइज कराना शुरू किया. कई महाराजा तो थोक के भाव में ऐसी कारें खरीदते थे. जैसे महाराजा मैसूर ने पहली बार 06 रोल्स रॉयस कार खरीदी तो दूसरी बार में 14 और फिर एक लाट में इससे और भी ज्यादा.
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नेहरू जानते थे कि भारतीय राजा महाराजाओं को रोल्स रॉयस कारें बहुत पसंद हैं. ये वो समय था जबकि देशभर के तमाम रजवाड़ों और रियासतों को भारतीय संघ में मिलाया जा चुका था. हालांकि राजाओं का असर बना हुआ था. वो अपनी रियासतों में खासे लोकप्रिय भी थे. नेहरू आजादी के बाद भारतीय रजवाडो़ं से बेहतर संबंध रखना चाहते थे.
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1951 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बड़ौदा की महारानी चिमना बाई साहिब गायकवाड़ को ये खास उपहार दिया. नेहरू भारत सरकार और शाही परिवारों के बीच बेहतर संबंध रखना चाहते थे. इसी मकसद से उन्होंने बड़ौदा की महारानी को ये खास कार गिफ्ट की. कार को एचजे मुलिनर एंड कंपनी द्वारा कस्टम-मेड किया गया था, इसकी मौजूदा कीमत करीब 2.5 करोड़ रुपए से कहीं ज्यादा है. इस कार को लेकर पिछले दिनों मध्य प्रदेश में एक मुकदमा भी हुआ. फिलहाल ये कार ग्वालियर राजघराने के पास है.
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भारतीय राजघरानों के बीच तब इस तरह के उपहार आम थे, जो उनके धन और असर को दिखाते थे. नेहरू के इस उपहार को स्वतंत्रता के बाद भारत की रियासतों के साथ संबंधों को बढ़ावा देने के लिए व्यापक रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है. कुछ प्रमुख रॉयल्स को सम्मानित करके नेहरू ने दिखाया कि भारत सरकार पूर्ववर्ती शाही परिवारों के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहती है.
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दरअसल रोल्स रॉयस कार को भारत में राजा-महाराजाओं की कार समझा जाता था. वह अपनी विलासिता और शिल्प कौशल के लिए जानी जाती थी. ये राजसीपन के शान का प्रतीक थी. इसलिए नेहरू ने ऐसी प्रतिष्ठित कार को गिफ्ट के लिए चुना.
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नेहरू ने ऐसी ही कारें दूसरे कई रजवाड़ों को भी गिफ्ट की थीं. उन्होंने एक लग्जरी रोल्स रॉयस कार महाराजा मैसूर को भी सरकार की ओर से प्रेजेंट की थी. 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद देश को 562 से अधिक रजवाड़ों में से एकीकृत करना चुनौतीपूर्ण था। इनमें से कई रजवाड़े अपनी स्वायत्तता खोने के कारण नाखुश थे. नेहरू ने इन रॉयल्स को विशेष सम्मान देकर उन्हें भारतीय गणराज्य के प्रति समर्पित और संतुष्ट बनाए रखने की कोशिश की.
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एक जमाने में रोल्स रॉयस को दुनिया की सबसे महंगी कार माना जाता था. दुनिया के हर रईस और बड़े लोगों की हसरत होती थी कि उनके पास ये कार जरूर हो. भारतीय राजे-महाराजा भी इस कार को अपने पास रखने के लिए दीवाने रहते थे. रोल्स रॉयस की एक खासियत ये भी थी कि वो यूं ही किसी को अपनी कार नहीं बेचती थी बल्कि उसका बैकग्राउंड और आर्थिक स्थिति के साथ हैसियत भी चेक करती थी. इसके बाद ही उन्हें कार बेचती थी.
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रोल्स रॉयस कारें आज भी दुनियाभर में वैभव और लग्जरी की प्रतीक मानी जाती हैं. आज भी रोल्स रॉयस को दुनिया की सबसे लग्जरी कारों में गिना जाता है. इसे रखना शान की बात होती है. इसीलिए दुनियाभर के धनाढ्य लोगों की कारों में रोल्स रॉयस कारें जरूर होती हैं.