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बड़ा फैसला: इस देश में सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे बच्चे! जानें विशेषज्ञ क्यों मान रहे इसे जरूरी कदम

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बड़ा फैसला: इस देश में सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे बच्चे! जानें विशेषज्ञ क्यों मान रहे इसे जरूरी कदम

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Fri, 08 Nov 2024 12:16 PM IST

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने देश में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए किसी भी तरह के सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। मनोचिकित्सक कहते हैं, इस तरह के फैसले भारत में भी लिए जाने चाहिए।

मोबाइल और सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल और इसके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर अक्सर चर्चा होती रही है। इस दिशा में अब ऑस्ट्रेलिया सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने देश में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए किसी भी तरह के सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। पीएम ने कहा, सोशल मीडिया का इस्तेमाल बच्चों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है, ये उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। इसके लिए प्रस्तावित कानून अगले सप्ताह संसद में पेश किए जाएंगे। 

सरकार ने सख्त रवैया अपनाते हुए कहा है कि यदि इन नियमों को तोड़ने की जानकारी मिलती है तो इसके लिए कंपनी जिम्मेदार होगी और उसपर कड़ी कार्यवाई और जुर्माना लगाया जाएगा। एक बार कानून पारित होने के बाद कंपनियों को एक साल का समय दिया जाएगा जिसमें उन्हें तय करना होगा कि नियमों का पालन कैसे किया जा सकता है।

ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस फैसले को मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ काफी अच्छा और जरूरी मान रहे हैं।

सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, यू.एस. में 69% वयस्क और 81% किशोर सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। एक डेटा के मुताबिक साल 2023 में, दुनियाभर में अनुमानित 4.9 बिलियन (490 करोड़) सोशल मीडिया उपयोगकर्ता थे। औसत व्यक्ति हर दिन सोशल मीडिया पर 145 मिनट बिताता है। 

सोशल मीडिया पर दोस्तों और परिवार के पोस्ट देखना आपको उनसे जुड़ाव महसूस कराने का एक तरीका जरूर हो सकता है, हालांकि इसका एक नकारात्मक पक्ष भी है।

अध्ययनों से पता चलता है कि सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल के कारण चिंता, अवसाद, अकेलेपन और FOMO (फियर ऑफ मिसिंग आउट यानी किसी का साथ छूट जाने का डर) की समस्या बढ़ रही है जिसका हमारे समग्र स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। किशोरों और युवा वयस्कों में इस तरह के मामले अधिक देखे जाते रहे हैं।

मेंटल हेल्थ के लिए ठीक नहीं है सोशल मीडिया

मेंटल हेल्थ को लेकर हुए कई शोध इस तरफ इशारा करते हैं कि सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल चिंता और अवसाद की भावनाओं को बढ़ाने वाला हो सकता है, विशेष रूप से किशोरों और युवा वयस्कों में। सोशल मीडिया की लत की प्रकृति मस्तिष्क में डोपामाइन नामक कैमिकल रिलीज करके ब्रेन के रिवार्ड सेंटर को एक्टिव करती है। इससे आपको अच्छा महसूस होता है।

हालांकि जब आपको अपनी इच्छा के अनुरूप लाइक्स या कमेंट्स नहीं मिल पाते हैं तो इससे स्ट्रेस और एंग्जाइटी जैसी समस्याएं बढ़ने लगती है। दीर्घकालिक रूप से इसका मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक और गंभीर असर भी हो सकता है।

क्या कहते हैं मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ?

अमर उजाला से बातचीत में भोपाल स्थित एक अस्पताल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे बहुत जरूरी कदम बताया है। डॉ सत्यकांत कहते हैं, इस तरह के फैसले भारत में भी लिए जाने चाहिए, हालांकि इससे पहले माता-पिता इसकी जरूरत को समझें और बच्चों के मोबाइल-सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल पर रोक लगाएं। 

सोशल मीडिया के इस्तेमाल से कई लोगों में फोमो की भावना बढ़ती देखी गई है। सोशल मीडिया के जरिए दोस्तों और अन्य लोगों के बारे में जानने से आपको लग सकता है कि दूसरे लोग आपसे ज्यादा मौज-मस्ती कर रहे हैं या बेहतर जिंदगी जी रहे हैं। इस तरह की भावना मेंटल हेल्थ के लिए कई प्रकार की समस्याओं को बढ़ाने वाली हो सकती है।

सोशल मीडिया का लत खतरनाक

डॉ सत्यकांत बताते हैं, ओपीडी में डिप्रेशन की शिकायत वाले अधिकतर रोगियों में सोशल मीडिया का लत देखी गई है। साइबरबुलिंग भी एक बढ़ती समस्या है जो बच्चों और किशोरों को काफी परेशान करने वाली हो सकती है। यह आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली समस्या है।

माता-पिता सुनिश्चित करें कि बच्चे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से दूर रहें, इसकी जगह आसपास दोस्त बनाएं और उनके साथ बाहर खेलें। ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस फैसले से दुनिया के अन्य देशों को भी सीख लेने की आवश्यकता है।

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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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