वोटिंग % जारी करने में देरी की क्या है वजह? प्रोविजनल और अंतिम मतदान प्रतिशत में फर्क क्यों? सवालों में घिरा चुनाव आयोग

नई दिल्ली. निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की तरफ से मतदान प्रतिशत के अंतिम आंकड़े देर से जारी करने पर आधिकारिक तौर पर अब तक कुछ नहीं कहा गया है. आयोग की तरफ से पहले और दूसरे फेज के मतदान प्रतिशत के आंकड़े देर से जारी करने के मसले पर विपक्ष की तरफ से सवाल खड़ा किया गया है, तो दूसरी तरफ खुद चुनाव आयोग की मतदान प्रतिशत जल्द जारी करने की क्षमता पर भी सवाल खड़ा हो रहा है. यही नहीं, सबसे बड़ा सवाल यह है कि पहले और दूसरे चरण के प्रोविजनल और अंतिम मतदान प्रतिशत के आंकड़े में लगभग 6% का फर्क क्यों है.
दरअसल, चुनाव आयोग के पास मतदान प्रतिशत के आंकड़े मतदान वाले दिन से लेकर अगले दिन तक आते हैं. हर संसदीय क्षेत्र के पोलिंग बूथ के पीठासीन अधिकारी अपने पोलिंग बूथ के मतदान प्रतिशत की जानकारी सेक्टर ऑफिसर के जरिए रिटर्निंग ऑफिसर को भेजता है. एक सेक्टर ऑफिसर के अंतर्गत आमतौर पर 10 पोलिंग बूथ की जिम्मेदारी होती है. रिटर्निंग ऑफिसर अपने संसदीय क्षेत्र के पोलिंग बूथ की जानकारी अपने राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी कार्यालय को भेजता है और इसके बाद मुख्य चुनाव अधिकारी इन आंकड़ों को चुनाव आयोग को भेजता है.
चुनाव आयोग को रिटर्निंग ऑफिसर की तरफ से अपने संसदीय क्षेत्र के मतदान प्रतिशत की जानकारी मतदान वाले दिन दोपहर में 1 बजे वोटिंग प्रतिशत से जुड़े एक खास फॉर्मेट में भेजता है, इसके बाद शाम 7 बजे और अगले दिन सुबह 7 बजे भी इसी फॉर्मेट में भेजता है. अगर रिटर्निंग ऑफिसर के पास मतदान प्रतिशत की पूरी जानकारी नहीं आई होती है, तो वह आंकड़े को प्रोविजनल करके भेजता है न की अंतिम.
देश के दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने न्यूज़18 इंडिया को बताया कि 2014 के लोकसभा चुनाव में हर चुनावी चरण के बाद चुनाव आयोग में प्रेस कॉन्फ्रेंस की परंपरा थी, लेकिन 2014 के बाद यह परिपाटी और परंपरा खत्म हो गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में तो किसी भी चरण में चुनाव आयोग की तरफ से प्रेस वार्ता नहीं की गई. इसके अलावा, चुनाव आयोग से जुड़े एक दूसरे चुनाव अधिकारी ने बताया की 24 से 48 घंटे के अंदर वोटिंग प्रतिशत के अंतिम आंकड़े आ जाते थे, लेकिन इस बार बहुत देर हुई है.
चुनावी चरण वाले दिन चुनाव आयोग में प्रेस कॉन्फ्रेंस की परंपरा होने से चुनाव आयोग और चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी मशीनरी में भी मतदान प्रतिशत के आंकड़े जारी करने का दबाव रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं दिख रहा. चुनाव आयोग की तरफ से 30 अप्रैल को जारी पहले और दूसरे चरण के मतदान प्रतिशत के आंकड़े को लेकर चुनाव आयोग की सिर्फ देरी पर सवाल नहीं उठ रहा है, बल्कि यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर 19 अप्रैल और 26 अप्रैल को मतदान खत्म होने के बाद शुरुआती मतदान प्रतिशत के आंकड़े और अंतिम मतदान प्रतिशत के आंकड़े में 6% का फर्क क्यों है.
कांग्रेस की बात करें या फिर टीएमसी की या फिर सीपीएम की, तीनो दलों ने मतदान प्रतिशत के जारी करने में हुई देरी और फर्क पर सवाल खड़ा किया है और फेरबदल की आशंका जाहिर की है. न्यूज़18 इंडिया ने चुनाव आयोग में एक अधिकारी से जब जानना चाहा कि चुनाव आयोग का पक्ष क्या है, तो उनकी तरफ से बताया गया कि मतदान प्रतिशत के आंकड़े में देरी पर चुनाव आयोग का अभी कोई पक्ष नहीं है जैसे ही कुछ बताया जाता है जानकारी दी जाएगी.
वोटर टर्नआउट ऐप!
चुनाव आयोग बार-बार पारदर्शिता और चुनाव में तकनीक के अधिक इस्तेमाल की बात करता है. वोटिंग वाले दिन मतदान प्रतिशत की हर दो घंटे के अंतराल की जानकारी के लिए चुनाव आयोग ने वोटर टर्नआउट ऐप भी लॉन्च किया था, इसमें जानकारी अपडेट होती रहती है, लेकिन अंतिम आंकड़े चुनाव आयोग ही जारी करता है.
आखिर मतदान प्रतिशत जारी करने में देरी की क्या है वजह?
चुनाव आयोग की तरफ से मतदान प्रतिशत देर से जारी करने की मूल वजह क्या है यह तो चुनाव आयोग की तरफ से नहीं बताया गया है, लेकिन एक बात जो सरसरी तौर पर दिख रही है वो ये है कि चुनाव आयोग में ईवीएम के मतदान प्रतिशत तैयार और जारी करने वाले अधिकारी एवं कर्मचारियों की तरफ से गंभीरता नहीं दिखाई गई है.
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FIRST PUBLISHED :
May 1, 2024, 19:17 IST