इंदौर में हाल ही में इवेंट फोटोग्राफर नितिन पडियार ने पत्नी, साली और सास की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद पुलिस ने परिजन और रिश्तेदारों के हंगामे के तीन दिन बाद पत्नी, साली और सास के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा में केस दर्ज
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यह केस नितिन के 14 पेज के सुसाइड नोट के आधार पर किया गया, जिसमें उसने अपनी प्रताड़ना का जिक्र किया था। नितिन ने बताया था कि ससुराल पक्ष ने उसके खिलाफ झूठे केस दर्ज कराए थे।
हालांकि, यह इंदौर का पहला मामला नहीं है। इस तरह के कई मामलों में युवक आत्महत्या कर चुके हैं, जबकि कई और इस स्थिति से जूझ रहे हैं। इंदौर में पुरुष अधिकारों और हितों के लिए संस्था ‘पौरुष’ पिछले 15 सालों से आंदोलन कर रही है। इसी तरह के मामलों में, चाहे वह इंदौर हो या देश के किसी अन्य शहर में, संस्था हमेशा आगे आई है।
नितिन पडियार केस में भी संस्था से जुड़े सदस्यों ने एकतरफा महिला कानून के आरोपों पर जोरदार प्रदर्शन किया था और समाज, सरकार और कानून तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की।
‘दैनिक भास्कर’ ने संस्था से जुड़े सदस्यों से बात की तो उन्होंने अपना दर्द साझा किया…जानिए उनकी कहानी
भाई की शादी का बोलकर पत्नी मायके गई, फिर कभी नहीं लौटी
पीड़ित संदीप मालवीय की शादी 2015 में भोपाल में हुई थी। शादी के बाद उनकी नौकरी पहले मुंबई में थी और फिर उनका ट्रांसफर बेंगलुरु हो गया। इस दौरान दोनों साथ में ही रहे। संदीप का आरोप है कि शादी के बाद से ही पत्नी अधिकतर समय त्योहारों का बहाना बनाकर मायके में रहती थी। वहां वह तीन-तीन महीने रुकती थी और वापस नहीं आती थी।
आपसी विवाद में पत्नी बार-बार आत्महत्या की धमकी और उन्हें झूठे केस में फंसाने की धमकी देती थी। वह रात को अक्सर मोबाइल में लगी रहती थी और घर का कोई काम नहीं करती थी। अप्रैल 2019 में उसने भाई की शादी का बहाना बनाकर बेटी, सारा सामान और ज्वेलरी लेकर मायके बेंगलुरु चली गई। फिर उसने अपना मोबाइल नंबर बंद कर दिया और वॉट्सऐप, फेसबुक भी ब्लॉक कर दिए।
संदीप ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की और फिर ससुर, साले और रिश्तेदारों को भी कॉल किया, लेकिन पत्नी ने न तो कभी उनसे बात की और न ही अपनी बेटी से बात करने दी। इसके बाद पत्नी ने उन पर दहेज और घरेलू हिंसा का केस लगा दिया। खास बात यह थी कि ये केस पत्नी ने अपने मायके आने के डेढ़ साल बाद लगाए। 2020 से उनकी कई पेशियां हो चुकी हैं और पत्नी बड़ी मुश्किल से किसी केस में उपस्थित होती हैं।
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पीड़ित संदीप मालवीय की छह सालों में कई पेशियां हो चुकी है।
पीड़ित बोला- अतुल सुभाष जैसा हाल करने की धमकी दी
संदीप का कहना है कि उन्होंने पत्नी को घर वापस लाने के लिए सेक्शन 9 (वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना) का केस भी दायर किया। इसकी डिक्री उनके पक्ष में हुई है। कोर्ट ने पत्नी को अप्रैल 2023 में पति के साथ आकर रहने का आदेश दिया था, लेकिन पत्नी आज तक साथ रहने नहीं आई।
वह न तो बच्ची से मिलवाती है और न ही बात करने देती है। अब पत्नी उनसे तलाक चाहती है और 70 लाख रुपए की डिमांड कर रही है। पत्नी की वकील उसकी बहन ही है और वह एक राजनीतिक पार्टी से जुड़ी हुई है। वह धमकी देती है कि “अगर तुमने पैसे नहीं दिए तो तुम्हारा भी हाल अतुल सुभाष जैसा कर देंगे।”
संदीप का आरोप है कि पत्नी ने कोर्ट में शपथपत्र पर झूठे तथ्य पेश किए हैं। इस पर उन्होंने कोर्ट में धारा 191 और 340 के तहत आवेदन दिया, लेकिन एक साल बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है। पत्नी द्वारा बताई गई निवास का स्थान सही नहीं है, क्योंकि जब वहां नोटिस भेजा जाता है, तो पता चलता है कि वह वहां रहती ही नहीं है। मन में बार-बार आत्महत्या के विचार आ रहे हैं।
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संस्था ‘पौरुष’ पुरुषों के हित में प्रदर्शन करती हैं।
पत्नी क्लासमेट थी, शादी के बाद घर से निकाल दिया
संस्था से जुड़े गौरव परमार ने बताया कि उनका विवाह जून 2016 में आर्य समाज से हुआ था। पत्नी पहले उनकी क्लासमेट थी। 2022 में उसने उन पर 498-ए, घरेलू हिंसा और 125 जैसी धाराएं लगवा दीं। अभी भी वह उनके द्वारा खरीदी गई संपत्ति पर अपने परिवार के साथ रह रही है और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया है।
गौरव ने कहा कि वह पुलिस थाने और कोर्ट के चक्कर काटते-करते परेशान हो चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि बेटियां बहुत बचा ली गईं, अब बेटों को बचा लो। नहीं तो इस खराब सिस्टम से कोई भी नहीं बच पाएगा। वह और उनका पूरा परिवार लगातार परेशानियों का सामना कर रहे हैं और बार-बार पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है।
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पीड़ित गौरव परमार ने सरकार से बेटों को बचाने की मांग की।
पत्नी करती थी विवाद, फिर पति को घर से निकाला
पीड़ित किशोर मंडलोई ने बताया कि उनका विवाह 2013 में हुआ था। पत्नी आए दिन विवाद करती रही। फिर 2020 में उसने उन्हें घर से निकाल दिया, तब से वह किराए के घर में रह रहे हैं। पत्नी ने संपत्ति हड़पने के लिए उनके फर्जी साइन कर पेपर तैयार किए।
इसके बाद 2022 में उसने उन पर और उनके माता-पिता पर 498-ए, घरेलू हिंसा और मेंटेनेंस का केस लगा दिया, जबकि उनके माता-पिता कभी भी उनके साथ नहीं रहे। उनसे सिर्फ फोन पर बात होती थी और उनकी मां शादी से पहले ही लकवाग्रस्त हो चुकी थीं।
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किशोर मंडलोई को उनकी पत्नी ने 2020 में घर से बाहर निकाल दिया था।
भरण पोषण देने के बाद भी रिकवरी वारंट
जवाहर धिंगाना के विवाह को 25 साल हो चुके हैं। इनमें से 20 साल वह अपने माता-पिता से अलग होकर पत्नी के साथ रहे। उनके दो बच्चे हैं। पीड़ित जवाहर ने बताया कि, आपसी विवाद के कारण पत्नी ने भरण पोषण का केस दायर किया। कोर्ट ने उन्हें 4,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया।
उन्होंने समय पर 4,000 रुपये दिए और बच्चों का खर्च भी उठाया और उन्हें पढ़ाया। बालिग होने पर कोर्ट ने बच्चों का मेंटेनेंस बंद कर दिया, लेकिन दोनों बच्चे पत्नी के पास हैं। इसके बाद भी उन पर भरण पोषण का केस दायर कर दिया गया और रिकवरी वारंट भी जारी कर दिया गया।
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जवाहर धिंगाना के दो बच्चे है, लेकिन दोनों पत्नी के पास रहते है।
चार तरह के टेररिज्म का शिकार हो जाते हैं पति
संस्था ‘पौरुष’ के अध्यक्ष और एडवोकेट अशोक दशोरा का कहना है कि महिला स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता, स्वेच्छाचारिता और व्यभिचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। महिलाओं के पक्ष में एकतरफा कानून से पुरुष चार तहर के आतंकवाद से ग्रस्त हैं।
जब पत्नी घर में कलह करती है, तो वह वूमन टेररिज्म होता है। पति परेशान होकर जब थाने पहुंचता है, तो पुलिस टेररिज्म शुरू हो जाता है। फिर झूठी एफआईआर दर्ज होने पर लीगल टेररिज्म चालू होता है। आखिर में केस कोर्ट में पहुंच जाता है, तो ज्युडिशियरी टेररिज्म शुरू हो जाता है।
महिलाओं के लिए 65 कानून, 18 तरह की हेल्पलाइन, हेलो डेस्क, आयोग, महिला थाने आदि हैं, जबकि पुरुषों के लिए एक भी कानून और हेल्पलाइन नंबर नहीं हैं।
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एडवोकेट अशोक दशोरा संस्था ‘पौरुष’ के अध्यक्ष हैं।
देश में हर साल 1.64 लाख पुरुष प्रताड़ना से सुसाइड करते
एडवोकेट अशोक दशोरा के अनुसार, देश में हर साल 1.64 लाख पुरुष इस तरह की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर रहे हैं।
दशोरा कहते हैं, अवसादग्रस्त पति कभी अतुल सुभाष, कभी पुनीत खुराना या फिर इंदौर के नितिन पडियार की तरह सुसाइड कर लेते हैं।
सभी पीड़ितों की गुहार है कि अवसादग्रस्त पुरुषों के लिए कम से कम एक हेल्पलाइन शुरू की जाए, ताकि उनकी सुनवाई हो सके। साथ ही सरकार को भी सही डेटा मिल सके। देश में जेंडर इक्वल कानून की जरूरत है।
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समाज सेविका नीलम चावला कहती है, पुरुष आयोग बनना चाहिए।
कानून में बदलाव के साथ पुरुष आयोग की जरूरत
समाज सेविका नीलम चावला का मानना है कि पुरुष की कमाई की सही उम्र 25 से 40 वर्ष की होती है। ऐसे में अगर वह इस तरह के झूठे केसों में फंसा होता है, तो वह नौकरी या व्यवसाय नहीं कर पाता। उसका समय कानूनी लड़ाई में चला जाता है।
दहेज के कानून में बदलाव क्यों नहीं लाया जा सकता? पुरुषों की थाने पर सुनवाई नहीं होती। पुरुषों को वहां टॉर्चर किया जाता है। ये पारिवारिक विवाद होते हैं, लेकिन पुलिस का तरीका अच्छा नहीं होता।
अधिकांश महिलाएं बदले की भावना से केस दर्ज कराती हैं। पहले तलाक एक कलंक था और अब जैसे यह फैशन हो गया है। तलाक के बाद अगर बच्चा मां के पास है, तो पिता को उससे मिलने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए।
बच्चा अगर पिता के पास है, तो मां को भी बच्चों से मिलने का संपूर्ण अधिकार होना चाहिए। अगर कानून नहीं बदला, तो पीड़ित युवक अब आत्महत्या के बाद जघन्य अपराध करने पर उतारू हो सकते हैं। पुरुष आयोग भी बनना चाहिए।