Friday, November 29, 2024
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टाटा फैमिली की सबसे ताकतवर महिला, ओलंपिक खेलीं, डायमंड से बड़ा हीरा था पास

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हाइलाइट्स

वह मैसूर के इंस्पेक्टर जनरल की बेटी थीं, 18 साल की उम्र में शादीदेश के जाने माने परमाणु विज्ञानी डॉ. होमी जहांगीर भाभा उनके भांजे थेमहिला अधिकारों को लेकर उन्होंने देश से विदेश तक आवाज उठाई

टाटा ग्रुप की इस महिला के बारे में आप जितना जानेंगे, उतना ही हैरत में पड़ जाएंगे- उसने बहुत कुछ किया. वह देश की पहली महिलावादी आंदोलनकारी थीं. वह साड़ी में ही 1924 के पेरिस ओलंपिक में टेनिस में हिस्सा लेने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनीं. वह ऐसी शख्सियत थीं, जिनकी वजह से देश में बाल विवाह रोकने के लिए कानून बना. जब एक बार टाटा ग्रुप वित्तीय मुश्किल में फंसा, तो उन्होंने तुरंत अपना वो हीरा गिरवी पर रख दिया, जो दुनिया का छठा बड़ा डायमंड था. और ये जान लीजिए कि वह जमशेटजी टाटा की सबसे बड़ी बहू थीं. इंस्पेक्टर जनरल ऑफ एजुकेशन की बेटी.

चलिए बात शुरुआत से शुरु करते हैं. यकीनन टाटा ग्रुप में जितनी महिलाएं हुईं, वो सभी खास हैं लेकिन मेहर बाई जिस दौर में पैदा हुईं, तब महिलाओं की पढ़ने की बात तो दूर रही, उन्हें घर की देहरी लांघने की इजाजत नहीं होती थी, तो वह ना केवल विचारों से क्रांतिकारी थीं. समय से बहुत आगे थीं और बेधड़क थीं. यकीनन टाटा ग्रुप में जितना महिलाएं हुईं, वो उनमें सबसे ताकतवर थीं.

18 साल की उम्र में शादी हुई
मेहरबाई की शादी टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेटजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा के साथ 14 फरवरी 1898 में हुई. जब शादी हुई, तब उनकी उम्र 18 साल थी. वह 10 अक्टूबर 1879 में पैदा हुईं थीं. उनका जन्मदिन की वर्षगांठ मुश्किल से दस दिन पहले थी. शादी के समय दोराबजी की उम्र 39 साल थी. तब तक वह मैट्रिकुलेशन कर चुकी थीं. आगे साइंस से भी पढ़ाई की.

मेहरबाई टाटा देश के शीर्ष औद्योगिक परिवार की ऐसी महिला थीं, जिन्होंने परिवार के बिजनेस से लेकर महिला अधिकार से जुड़े आंदोलनों और खेलों में बड़ी भूमिका निभाई. (courtesy tata trust)

दरअसल उनके पिता और जमशेटजी टाटा दोस्त थे. जमशेटजी मैसूर में उनके घर आए. तब वह मेहरबाई से मिले तो तुरंत सोच लिया कि इस लड़की की शादी उनके बेटे से होनी चाहिए. इस रिश्ते को उनके पिता ने स्वीकार कर लिया.

पिता देश में यूरोपीय शिक्षा लागू करने वालों में एक
मेहरबाई के पिता तब मैसूर के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ एजुकेशन थे. उन्होंने देश में यूरोपीयन आधारित शिक्षा को देश में लागू करने में खास भूमिका अदा की. मेहरबाई के एक भाई थे जहांगार भाभा. जो बहुत नामी वकील हुए. देश के पहले जाने-माने भौतिक विज्ञानी और हमारे परमाणु बम के जनक कहे जाने वाले होमी जहांगीर भाभा उन्हीं के बेटे थे यानि मेहरबाई के भांजे.

पेरिस ओलंपिक के टेनिस इवेंट में खेलीं
जब 1924 में पेरिस ओलंपिक हुए तो मेहरबाई ने उसके टेनिस इवेंट में हिस्सा लिया. वह मिक्स्ड डबल में खेलीं, तब उनके पार्टनर थे मोहम्मद सलीम. तब वह पारसी शैली की साड़ी में कोर्ट में टेनिस खेलने उतरती थीं. जिसे पारंपरिक ‘गारा’ कहा जाता था. टेनिस में उन्होंने बाहर कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीत भी हासिल की. करीब 60 टेनिस प्रतियोगिताएं उन्होंने जीतीं. बाद में उन्होंने भारत के महिला खेलों में खास भूमिका अदा की.

मेहरबाई टाटा को भारत के शुरुआती नारीवादी आंदोलन की अगुवा महिला माना जाता है. (courtesy tata trust)

बालविवाह रोकथाम कानून बनवाने में खास अगुवा रहीं
क्या आपको मालूम है जब भारत में 1929 में बाल विवाह को गैरकानूनी घोषित करने का कानून बनाया गया तो इसके पीछे असल मेहरबाई टाटा ही थीं. उन्होंने तब ब्रिटिश सरकार को ना केवल केवल बाल विवाह अधिनियम यानि सारदा अधिनियम पर कन्वींस किया. बल्कि भारत और विदेशों में इसके लिए सक्रिय रूप से अभियान भी चलाया. हालांकि ये इतना आसान नहीं था. इसे लेकर लंबी लड़ाई उन्होंने लड़ी.

महिलाओं से जुड़े कई मुद्दे उठाए
वह 1929 में अंतर्राष्ट्रीय महिला परिषद के शिखर सम्मेलन में गईं. 1920 के दशक में भारतीय महिला आंदोलन का अंतर्राष्ट्रीय चेहरा बनीं. वह महिलाओं के मताधिकार, लड़कियों की शिक्षा और पर्दा प्रथा को हटाने के लिए डटी रहीं. वैश्विक मंचों पर इन्हें लेकर अपनी बात असरदार तरीके से रखी. वह दुनियाभर की महिलाओं से जुड़ी कई असरदार संस्थाओं की भी सदस्य थीं.

उनके पास था कोहिनूर से बड़ा हीरा
उन्हें लेकर एक किस्सा दुनिया के छठे बड़े हीरे का भी है, जिसने मुश्किल के समय में इसे गिरवी रखकर टाटा ग्रुप को उबारा. ये हीरा 1900 में उनके पति सर दोराब ने लंदन में एक नीलामी में खरीदा था. ये 245.35 कैरेट का था. कोहिनूर से दोगुना बड़ा. ये हीरा उनकी मृत्यु के बाद सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के निर्माण और उसके परोपकारी कामों के लिए बेच दिया गया.

ये हीरा तब काम आया जबकि टाटा के पास कंपनी के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं थे? इस विकट परिस्थिति से बाहर निकालने में लेडी मेहरबाई टाटा ने खास भूमिका अदा की थी. उन्होंने प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे से दोगुना बड़ा अपना जुबली हीरा पास गिरवी रखकर कंपनी को डूबने से बचाया.

लेडी मेहरबाई टाटा न्यूयार्क में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज से मुलाकात के दौरान. साथ में उनके पति सर दोराबजी टाटा. ये मुलाकात महिला अधिकारों के संबंध में ही हुई थी.वह अपने जीवनकाल के दौरान इंग्लैंड के राजा और रानी से भी मिलीं. (file photo)

ये हीरा तब बेशकीमती था और आज भी
लेडी मेहरबाई टाटा इस हीरे को केवल ख़ास मौकों पर ही पहनती थीं. जब वह इस हीरे को प्लैटिनम चेन में पहनती थीं, तो हर कोई हैरान रह जाता था। 1900 के दशक में इसकी कीमत करीब £100,000 पाउंड (करीब 1.1 करोड़ रुपए) थी. इसे जुबिली हीरे के तौर पर जाना जाता है. अब तो इसका दाम कई सौ करोड़ में होगा.

इस हीरे ने कंपनी को बचा लिया
1924 में विश्व युद्ध के कारण आई आर्थिक मंदी के कारण टाटा स्टील कंपनी को चलाना मुश्किल हो गया, उस समय इसे टिस्को कहा जाता था. दोराबजी टाटा को समझ नहीं आ रहा था कि कंपनी को कैसे बचाया जाए. उस समय मेहरबाई टाटा ने अपने जुबली डायमंड को गिरवी रखकर पैसे जुटाने की सलाह दी.

बाद में ये हीरा परिवार में लौटा लेकिन …
धन जुटाने के लिए दोराबजी टाटा और मेहरबाई टाटा ने इस हीरे को इंपीरियल बैंक के पास गिरवी रख दिया था. उस समय उन्होंने कंपनी के कर्मचारियों और कंपनी को बचाने के लिए जुबली डायमंड सहित अपनी पूरी निजी संपत्ति इंपीरियल बैंक के पास गिरवी रख दी थी ताकि कंपनी के लिए धन जुटा सकें. इस कदम के बाद टाटा कंपनी में आई समस्या का समाधान हो गया. कंपनी फिर से समृद्ध हो गई. बाद में ये हीरा दोराबजी के पास लौटा लेकिन दोराबजी के निधन के बाद उनके ट्रस्ट ने इसे कल्याणकारी कामों के लिए बेच दिया.

सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट को इस जुबिली डायमंड को कार्टियर को बेचने से जो धन मिला, उसका इस्तेमाल टाटा मेमोरियल अस्पताल और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज व टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च जैसे संस्थानों की स्थापना में किया गया.

आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि जुबली हीरे के साथ क्या हुआ? इसे कार्टियर से एक फ्रेंच उद्योगपति एम पॉल-लुइस विलर ने ले किया. इसके बाद प्रतिष्ठित ज्वैलर्स व घड़ी निर्माता राबर्ट माउवाड ने इसे खरीदा. यह 1890 से आज भी उनके पास है. आजकल ये बेरुत में उनके प्राइवेट रॉबर्ट मौवादज प्राइवेट म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है.

52 की उम्र में मृत्यु
52 साल की उम्र में वर्ष 1931 में बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई. लेडी मेहरबाई की मृत्यु ल्यूकेमिया नामक बीमारी से वेल्स के एक अस्पताल में हुई.

लंदन के एक प्रकाशन कॉमन कॉज ने लिखा, ‘जून में लेडी टाटा की मृत्यु भारत में महिला आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है।. वह पिछले कुछ वर्षों से भारत में महिला अधिकारों की प्रवक्ता के रूप में देखी जा रही थीं. उनका मानना ​​था कि महिलाओं की स्थिति में सुधार से ही भारत का विकास संभव होगा, जिसके लिए शिक्षा जरूरी है.

Tags: Indian women, Ratan tata, Tata steel, Women rights

FIRST PUBLISHED :

October 21, 2024, 12:52 IST

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