जौनपुर में भाजपा कार्यकर्ताओं का एक जुट नहीं होना कृपाशंकर सिंह के हार का कारण बना और सपा के बाबू सिंह कुशवाहा चुनाव जीत गए। कहा जाता है कि जब नाव में छेद हो तो कुशल खेवन हार चाहे जितना मजबूत पतवार हो, लेकिन बीच मझधार में नाव का डूबना तय रहता है। जौन
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चुनाव के दौरान पार्टी के पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों ने बूथ लेबल के पदाधिकारियों ही नहीं कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की। चुनाव में बाहरी प्रत्याशी थोपे जाने और करियर खत्म होने के भय से कई बड़े नेताओं ने जमकर भितरघात किया। यहीं जौनपुर के साथ मछलीशहर में भाजपा का चुनाव हारने का कारण बना। 2014 के चुनाव में भाजपा को 146310 वोट से जीत मिली थी। जबकि 2019 में सपा और बसपा गठबंधन के प्रत्याशी श्याम सिंह यादव 80936 वोट से जीते थे।
धनंजय सिंह का नहीं रहा असर
जौनपुर और मछलीशहर दोनों सीटों पर पूर्व सांसद और बाहुबली धनंजय सिंह के भाजपा खुलकर समर्थन करने का भी कोई असर दोनों सीटों पर नहीं दिखा। साथ ही सुभासपा के समर्थन के बाद भी भाजपा के कृपा शंकर सिंह को 99335 वोट से हार मिली।
प्रधानमंत्री मोदी के सहारे थे नेता
दोनों सीट गंवाने के पीछे अहम कारण भाजपा नेताओं का जनता से दूरी बनाना माना जा रहा है। मुफ्त राशन,आवास, किसान निधि समेत तमाम मुद्दे को लेकर पदाधिकारी ये मान बैठे थे कि इनका तो हमें वोट मिलेगा ही। इतना ही नही ग्राउंड लेबल पर कार्य न करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे अपनी जीत पक्की मान ली थी। जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा ने बूथ लेबल के कार्यकर्ताओं को भी हतोसाहित कर दिया था।
धनंजय की पत्नी का टिकट कटना भी कारण रहा
जौनपुर लोकसभा सीट पर भाजपा का टिकट घोषित होने के बाद चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सजा हो गई। उच्च न्यायालय से जमानत मिलने के कुछ ही घंटे पहले उनको बरेली जेल में भेज दिया गया। इतना ही नहीं चुनावी समर में उतरी उनकी पत्नी श्रीकला सिंह का बसपा ने टिकट काट दिया। इसे लेकर उनके समर्थकों व राजपूत मतदाताओं में काफी आक्रोश था। सभी इन घटनाओं को पार्टी के हाईकमान और प्रत्याशी की साजिश मान रहे थे।
धनंजय सिंह को जमानत मिलने व भाजपा का खुलकर समर्थन करने के बावजूद भी उनके समर्थकों की पीड़ा कम नहीं हुई। वहीं, कुछ दिनों में आए धनंजय सिंह के दो बयानों ने उनके समर्थकों को भी कंफ्यूज कर दिया। जिसमें पहले उन्होंने कहा कि उन्हें फर्जी मामले में फंसाया गया। फिर कहा कि प्रदेश में अच्छी सरकार चल रही है। इतना ही नहीं गुजरात के राजपूतों पर अपमानजनक टिप्पणी। अनुप्रिया पटेल और उपमुख्यमंत्री का रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया के खिलाफ टिप्पणी करना भारी पड़ गया।
राज्यमंत्री भी ओबीसी वोट नही साध पाए
7 वर्षो से सदर विधायक राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव के साथ नगर पालिका अध्यक्ष मनोरमा मौर्या भी ओबीसी वोट को नहीं साध सकीं। जिससे भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा ओबीसी वोटों को जोड़ने में विफल साबित हुई। ओबीसी वोटरों को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार में दूसरे बार भी राज्यमंत्री बनाया गया, लेकिन वो कुछ काम न कर सकें। नगर पालिका अध्यक्ष मनोरमा मौर्या भी ओबीसी वोटों को खिसकने से नहीं रोक सकीं।