मुंबई: महाराष्ट्र के जलगांव रेल हादसे ने एक बार फिर सुरक्षित सफर पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हादसे में 15 लोगों की मौत ने 31 साल पहले की घटना के भयावह मंजर को ताजा कर दिया है। तब मुंबई में इसी तरह की घटना में कुल 22 की जान चली गई थी। 13 अक्टूबर, 1993 को शाम 7.14 बजे मुंबई के गोरेगांव में यह घटना हुई थी। तब पश्चिम रेलवे की एक बोरिवली से कांदिवली के चलने वाली एक लेडीज स्पेशल लोकल के फर्स्ट क्लास डिब्बे की महिला आग की अफवाह पर कूद गई थीं।फर्स्ट क्लास डिब्बे से कूद कर पटरी आई महिला यात्रियों को दूसरी लोकल ट्रेन के कुचल दिया था। इसमें 21 महिलाओं के साथ एक लड़के की मौत हुई थी। तब मुंबई की लाइफ लाइन लोकल डेथलाइन बन गई थी।
तब नहीं भांप पाई थी महिलाएं
31 साल पहले की भयावह घटना में आग को लेकर मची अफरा-तफरी से महिला यात्री डर गई थीं। महिलाएं यह नहीं भांप पाई थीं कि बोरिवली-चर्चगेट लोकल उनकी तरफ आ रही है। हादसे के वक्त बिजली की कड़क के साथ हो रही बारिश ने हादसे की वीभत्सता को बढ़ दिया था। उस वक्त पर बिजली के पावरकट ने बचाव अभियान को बुरी तरह से प्रभावित किया था। हादसे के बाद में फायर अलार्म को गलत पाया गया था। जलगांव में 15 लोगों की मौत हुई है। इसमें विदेशी नागरिकों की मौत हुई है। जलगांव हादसे में सामने आया है कि टैक पर कर्व होने के कारण यात्री दूसरी ट्रेन का ड्राइवर एक दूसरे को नहीं देख पाए। गोरेगांव लोकल हादसे की तरह इस घटना में आग लगने की बात अफवाह साबित हुई है।
तब मौसम और अब कर्व बना ‘काल’
गोरेगांव हादसे की वजह जलगांव की तरह से समान थी लेकिन भारी बारिश और पावरकट ने बचाव अभियान को बुरी तरह से प्रभावित किया था। इससे ज्यादा महिला यात्री की जान चली गई थी। जलगांव की घटन में सामने आया है कि पटरियों के घुमावदार होने के कारण ट्रेन (कर्नाटक एक्सप्रेस) की दृश्यता और इसके ब्रेक लगने की दूरी प्रभावित हुई। नहीं तो यह हादसा टल सकता था। रेलवे अनुसार इस खंड पर ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार से चलती हैं।