नई दिल्ली: उसका सपना था कि वो बस कुछ बन जाए। अपने परिवार को उसने तंगी के दिनों में जूझते हुए देखा था। कुछ ख्वाहिशों को उसने अपने अंदर ही समेट लिया और कुछ को पूरा करने का जिम्मा खुद के कंधों पर उठा लिया। 6 लोगों के परिवार में पिता अकेले कमाने वाले थे, इसलिए उसे खुद भी आगे बढ़ना था और अपनी दोनों छोटी बहनों के साथ-साथ छोटे भाई को भी साथ लेकर चलना था। कहते हैं कि जब तक इंसान मजबूर नहीं होता, तब तक मजबूत नहीं होता। मध्य प्रदेश के सतना में रहने वालीं नेहा प्रजापति की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने मजबूरी के दिनों से मजबूती की मिसाल कायम करने तक का सफर तय किया।
बात उस वक्त की है, जब नेहा ने चीजों को समझना बस शुरू ही किया था। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत में नेहा ने बताया कि उनके पिता संतोष प्रजापति सीमेंट की एक दुकान पर मजदूर के तौर पर काम करते थे और मां आंगनबाड़ी सहायिका थीं। नेहा जानती थीं कि वो और उनके छोटे भाई-बहन जब तक पढ़ेंगे-लिखेंगे नहीं, तब तक उनकी जिंदगी में बदलाव आने वाला नहीं है। हालांकि, घर के हालात ऐसे नहीं थे कि चारों भाई-बहन अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर सकें। लेकिन कहते हैं ना कि जहां चाह, वहां राह। इसी दौरान नेहा को नवोदय और ज्ञानोदय स्कूल के बारे में पता चला, जहां पढ़ाई के साथ-साथ रहने और खाने की फ्री सुविधा मिलती है। उन्होंने तैयारी शुरू कर दी। उनकी मेहनत रंग लाई, नेहा और उनसे छोटी बहन को ज्ञानोदय में एडमिशन मिल गया। वहीं, सबसे छोटी बहन का दाखिला नवोदय स्कूल में हो गया।
एक सलाह और जिंदगी में आ गया मोड़
वक्त आगे बढ़ रहा था और देखते ही देखते नेहा ने 12वीं पास कर ली। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने सतना कॉलेज में एडमिशन लिया ही था कि उसी दौरान उनकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ आया। दरअसल नेहा के एक मामा सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने नेहा के अंदर छिपी प्रतिभा को पहचाना और सलाह दी कि उन्हें भी इस परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए। नेहा ने तैयारी शुरू की और कुछ समय बाद उनके मामा का सेलेक्शन डीएसपी के पद पर हो गया। नेहा को जैसे एक मोटिवेशन मिल गया। ग्रेजुएशन पूरी होते ही उन्होंने ठान लिया कि अब वो भी सिविल सेवा में ही जाएंगी।
पिता ने नेहा के लिए 60 हजार रुपए उधार
हालांकि, सबकुछ इतना आसान नहीं था। परीक्षा की तैयारी के लिए नेहा को बाहर कोचिंग करने की जरूरत थी, लेकिन उनका परिवार ना इसके लिए सक्षम था और ना ही तैयार। ऐसे में उनके मामा ने परिवार को समझाया कि अगर नेहा ने कामयाबी की तरफ कदम बढ़ाए हैं, तो हम सभी को उसका साथ देना चाहिए। नेहा के पिता सीमेंट की जिस दुकान पर काम करते थे, उन्होंने वहां से 60 हजार रुपए उधार लिए और बेटी को कोचिंग के लिए भोपाल भेज दिया। भोपाल आने के बाद नेहा ने सस्ते कोचिंग सेंटर की तलाश शुरू की और यहां उन्हें दर्पण सिविल सर्विसेज में एडमिशन मिल गया।
प्रीलिम्स के बाद लग गया देश में लॉकडाउन
नेहा के पास संसाधन बेहद सीमित थे। वो जानती थीं कि उनके पास सफलता हासिल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वो पूरी शिद्दत के साथ तैयारी में जुट गईं। साल 2019 में नेहा ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी और प्रीलिम्स क्लियर कर लिया। लेकिन शायद अभी उनके हिस्से में और इंतजार लिखा था। 2020 में कोविड महामारी आई और देश में लॉकडाउन लग गया। नेहा को भोपाल से वापस सतना लौटना पड़ा। उनकी कोचिंग अब ऑनलाइन माध्यम से चलने लगी। 2021 के मार्च में उनकी मेंस परीक्षा थी और तैयारी के लिए उन्हें वापस भोपाल लौटना था लेकिन इसी दौरान उनकी सबसे छोटी बहन ने नीट क्लियर कर लिया।
कोचिंग सेंटर में किया कॉपी चेक करने का काम
अब नेहा के सामने मुश्किल खड़ी हो गई। इधर छोटी बहन की फीस जमा होनी थी और उधर उन्हें खुद की तैयारी के लिए भोपाल भी जाना था। उस वक्त उनके खाते में महज 20 हजार रुपए थे, जिसमें उनकी स्कूल-कॉलेज की स्कॉलरशिप और बाकी सेविंग्स शामिल थी। नेहा को भोपाल जाकर तैयारी करना मुश्किल लगना लगा था। ऐसे में उन्हें अपने कोचिंग सेंटर में ही कॉपी चेक करने और कंटेंट लिखने का काम मिल गया। इससे नेहा को अपनी तैयारी में भी मदद मिली। हालांकि 2021 में फिर से लॉकडाउन लगा और नेहा को वापस लौटना पड़ा। वहीं, मध्य प्रदेश में आरक्षण के मुद्दे पर कानूनी विवाद के चलते 2021 और 2022 में उनका रिजल्ट भी रुक गया।
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और फिर आया कामयाबी का वो पल
साल के आखिर में यानी दिसंबर 2022 में नेहा का रिजल्ट आया और उन्होंने मेंस क्लियर कर लिया। साल 2023 में फाइनल रिजल्ट घोषित हुआ और सफलता के लिए नेहा का इंतजार आखिरकार खत्म हो गया। उन्हें आबकारी विभाग में सब इंस्पेक्टर पद के लिए चुन लिया गया। नेहा के लिए ये कामयाबी बेहद खास थी क्योंकि संघर्ष का एक लंबा रास्ता तय करके वो यहां तक पहुंचीं थी। नेहा के अलावा उनकी छोटी बहन का सेलेक्शन लेखपाल के पद पर हो चुका है। वहीं सबसे छोटी बहन मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। उनका छोटा भाई भी जेईई की तैयारी में जुटा है। जिस मकसद को हासिल करने के लिए नेहा ने कदम बढ़ाई, वो आखिरकार उन्हें मिल गया।
पढ़ाई के खर्च के लिए बेचे बेलपत्र
नेहा बताती हैं कि उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए कदम-कदम पर मुश्किलें झेली हैं। अपनी पढ़ाई के खर्चों को पूरा करने के लिए कॉलेज के दिनों में नेहा छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाती थीं, जिसके बदले में उन्हें 100-150 रुपए मिलते थे। उनके घर में एक बेल का पेड़ है और पूजा के लिए बेलपत्र भगवान शिव को चढ़ाए जाते हैं। नेहा इन बेलपत्रों को भी बेचा करती थीं। इसके अलावा अपने घर की गाय के दूध का मट्ठा बेचकर भी नेहा अपने भाई-बहनों के पढ़ाई के खर्चे निकाला करती थीं। नेहा की पोस्टिंग फिलहाल रीवा आबकारी विभाग में है।