क्यों 14 साल बाद मिली गोवा को आजादी, कैसे 36 घंटे में सेना ने उखाड़ फेंका 450 सालों का पुर्तगाली शासन
Goa Liberation Day: भारत 1947 में ब्रिटेन से आजाद हुआ तो उस समय गोवा पर पुर्तगाली शासन था. भारत ने कड़े संघर्ष के बाद अंग्रेजी हुकूमत से तो आजादी पा ली थी, लेकिन इसके बाद भी 14 साल तक गोवा पुर्तगालियों का गुलाम बना रहा था. 50 के दशक में भारत ने पुर्तगाल से इस हिस्से को खाली करने को कहा. जब पुर्तगाल ने ऐसा नहीं किया तो नेहरू सरकार ने वहां सेना भेजी. 36 घंटे के युद्ध के बाद पुर्तगाली सेना ने घुटने टेक दिए. उसके बाद गोवा भारत का अंग बन गया. वह आज ही का दिन यानी 19 दिसंबर था. साल 1961 में गोवा को पुर्तगाल से आजादी मिली थी. इसीलिए आज गोवा का लिबरेशन डे मनाया जाता है.
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तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आदेश के बाद 18 दिसंबर, 1961 को ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय सेना के तीनों अंगों के 0 हजार सैनिकों ने गोवा में प्रवेश किया. हालांकि, पुर्तगालियों ने शुरुआत में लड़ने की ठानी और भारतीय सैनिकों के प्रवेश मार्ग यानी वास्को के पास के पुल को उड़ा दिया. आखिरकार पुर्तगालियों को अपनी हार नजर आने लगी. भारतीय सेना ने अगले दिन यानी 19 दिसंबर को गोवा को पुर्तगाल की 450 साल की गुलामी से आजादी दिलाई.
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भारत और पुर्तगाल की सेनाओं के बीच करीब डेढ़ दिन तक युद्ध चला. अंततः पुर्तगाली सेना ने भारत के सामने घुटने टेक दिए. भारतीय नौसेना की एक वेबसाइट के मुताबिक, 19 दिसंबर को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मेन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण करते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये. इसके बाद गोवा पूरी तरह से भारत में शामिल हो गया और दमन-दीव को भी आजादी मिल गई. इसीलिए हर साल 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस के रूप में आजादी का जश्न मनाया जाता है. इसके बाद 30 मई, 1987 में गोवा को एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया. गोवा आधिकारिक तौर पर भारत का 25वां राज्य बन गया.
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दरअसल, वास्को डी गामा 1498 में भारत आए और इसके बाद धीरे-धीरे कुछ ही सालों में पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा कर लिया. साल 1510 तक भारत के कई हिस्सों पर पुर्तगालियों ने अपना कब्जा कर लिया था, लेकिन फिर 19वीं शताब्दी आते-आते पुर्तगाली उपनिवेश गोवा, दमन, दादर, दीव और नागर हवेली तक सीमित हो गया. भारत सरकार ने इस मामले में बार-बार पुर्तगाल से बातचीत की मांग की. लेकिन पुर्तगाल हर बार उसकी मांग ठुकरा दे रहे थे.
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भारत की मांग ठुकराने के बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के तहत सेना की छोटी टुकड़ी भेजने का फैसला किया. ऑपरेशन विजय की कार्रवाई 18 दिसंबर 1961 के दिन शुरू की गई. भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा की सीमा के अंदर प्रवेश किया. भारतीय सेना ने 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई कार्रवाई की. इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण कर दिया.
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उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक बार अपने भाषण के दौरान कहा था कि गोवा में पुर्तगालियों का शासन एक फुंसी की तरह है, जिसे मिटाना बहुत जरूरी है. हालांकि, जितना आसान इसे समझा जा रहा था, यह उतना आसान नहीं था. उस समय पुर्तगाल ‘नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन’ (नाटो का हिस्सा था. इसी वजह से पीएम नेहरू किसी तरह से सैन्य टकराव से कतरा रहे थे.
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हालांकि, पुर्तगालियों की एक गलती भारत के लिए एक सुनहरा मौका बन गई. दरअसल, 1961 के नवंबर में पुर्तगाली सैनिकों ने भारतीय मछुआरों पर गोलियां बरसा दीं. जिसमें एक मछुआरे की मौत हो गई. इस घटना के बाद हालात बेकाबू हो गए. हालात पक्ष में देखकर पीएम नेहरू ने तत्कालीन रक्षा मंत्री केवी कृष्णा मेनन के साथ आपातकालीन बैठक की और एक सख्त कदम उठाते हुए कार्रवाई करने का फैसला किया.