Saturday, November 30, 2024
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कृष्ण जन्मभूमि केस में मुस्लिम पक्ष ने दी ऐसी दलील; हिंदू पक्ष बोला- भगवान न..

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कृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह केस में मुस्लिम पक्ष ने दी ऐसी दलील; हिंदू पक्ष बोला- भगवान न तो …

प्रयागराज: मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद केस में लगातार सुनावई जारी है. कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से जुड़ी याचिकाओं पर बहस का दौर जारी है और आज भी हिंदू पक्ष अपनी दलीलें रखेगा. इस बीच बुधवार को मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने दलील दी कि भगवान ना तो वर्ष 1968 में हुए कथित समझौते में पक्षकार थे और ना ही 1974 में पारित अदालत की डिक्री (आदेश) में वह पक्षकार थे. दरअसल, हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष की दलील पर यह बात कही.

कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन द्वारा की जा रही है जो आज यानी बृहस्पतिवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. वर्ष 1968 में हुए समझौते के सवाल पर मुस्लिम पक्ष द्वारा दी गई दलील के जवाब में हिंदू पक्ष की ओर से बुधवार को कहा गया कि भगवान ना तो वर्ष 1968 में हुए कथित समझौते में पक्षकार थे और ना ही 1974 में पारित अदालत की डिक्री (आदेश) में वह पक्षकार थे.

मुस्लिम पक्ष ने क्या दलील दी थी?
सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि कथित समझौता श्री कृष्ण जन्म सेवा संस्थान द्वारा किया गया जो किसी भी तरह का समझौता करने के लिए अधिकृत नहीं था. उन्होंने कहा कि उस संस्थान की जिम्मेदारी केवल दिन प्रतिदिन की गतिविधियों का प्रबंधन करने की थी और उसे इस तरह का कोई समझौता करने का अधिकार नहीं था. पूर्व में मुस्लिम पक्ष की वकील तस्लीमा अजीज अहमदी ने दलील दी थी कि यह वाद समयसीमा से बाध्य है. उनके मुताबिक, उनके पक्षकारों ने 12 अक्टूबर, 1968 को समझौता किया था जिसकी पुष्टि 1974 में एक दीवानी वाद के निर्णय में की गई थी. एक समझौते को चुनौती देने की समयसीमा तीन वर्षों की है, लेकिन यह वाद 2020 में दायर किया गया इसलिए मौजूदा वाद समयसीमा से बाध्य है.

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हरिशंकर जैन ने किसका दिया हवाला?
हिंदू पक्ष ने दलील दी कि यह वाद पोषणीय है और वाद की गैर पोषणीयता के संबंध में आवेदन पर साक्ष्यों को देखने के बाद ही निर्णय किया जा सकता है. हरिशंकर जैन ने कुछ निर्णयों का हवाला भी दिया. मंगलवार को, हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई थी कि पूजा स्थल कानून, 1991 के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होंगे क्योंकि इस कानून में धार्मिक चरित्र परिभाषित नहीं किया गया है। किसी स्थान या ढांचे का धार्मिक चरित्र केवल साक्ष्य से ही निर्धारित किया जा सकता है जिसे दीवानी अदालत द्वारा ही तय किया जा सकता है. हिंदू पक्ष के वकील ने ज्ञानवापी मामले में पारित निर्णय का भी हवाला दिया, जिसमें अदालत ने कहा था कि धार्मिक चरित्र एक दीवानी अदालत द्वारा ही तय किया जा सकता है.

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Tags: Allahabad high court, Allahabad news, Mathura Krishna Janmabhoomi Controversy, Mathura news, Sri Krishna Janmashtami

FIRST PUBLISHED :

May 2, 2024, 09:48 IST

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