लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का पहला चरण संपन्न हो गया, लेकिन विपक्षी दलों के मोर्चे आइएनडीआइए में खटपट खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने न केवल यह घोषणा की कि कांग्रेस और वामदल आइएनडीआइए के घटक नहीं हैं, बल्कि यह आरोप भी लगाया कि कांग्रेस एवं माकपा ने भाजपा से गुप्त समझौता कर रखा है।
उनके इस आरोप पर यकीन करना कठिन है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वह बंगाल की जनता को यही संदेश देना चाहती हैं कि अन्य भाजपा विरोधी दलों पर भरोसा करना ठीक नहीं। इस सबसे आइएनडीआइए एक ऐसे समय अपनी एकजुटता का संदेश देने में नाकाम है, जब अभी मतदान के छह चरण शेष हैं।
ममता ने इसके पहले भी आइएनडीआइए को तब झटका दिया था, जब उन्होंने बंगाल में अपने बलबूते सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। आइएनडीआइए के साथ यही व्यवहार केरल में वाम दलों ने भी किया। उन्होंने न केवल वायनाड में राहुल गांधी के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया, बल्कि उन्हें यह सलाह भी दी कि यदि वह भाजपा को हराना चाहते हैं तो उत्तर भारत में कहीं से चुनाव लड़ें। आइएनडीआइए के घटकों के बीच जम्मू-कश्मीर में भी कोई समझौता नहीं हो सका।
कांग्रेस का संकट यह है कि वह सहयोगी दलों के असहयोग भरे रवैये का ढंग से प्रतिरोध भी नहीं कर पा रही है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह जिन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को भाजपा की बी टीम यानी सहयोगी बताया करती थी, उन्हें हैदराबाद में समर्थन देने के लिए तैयार हो गई। कांग्रेस को बंगाल, केरल, जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त कुछ अन्य राज्यों में भी अपने सहयोगी दलों की बेरुखी का सामना करना पड़ रहा है।
वह दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, लेकिन पंजाब में उसके खिलाफ, क्योंकि अरविंद केजरीवाल वहां उसे कोई सीट देने को तैयार नहीं हुए। लोकसभा चुनावों की घोषणा होने के पहले जनता दल-यू और राष्ट्रीय लोक दल के आइएनडीआइए से छिटकने से भी कांग्रेस को झटका लगा था। ध्यान रहे जद-यू नेता नीतीश कुमार ही आइएनडीआइए के सूत्रधार थे। आइएनडीआइए की एक समस्या यह भी है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के घोषणा पत्रों में कई मुद्दों पर आम राय नहीं दिख रही है।
उलटे कुछ मुद्दों पर तो वे एक-दूसरे की आलोचना तक कर रहे हैं, जैसे माकपा ने सवाल किया है कि कांग्रेस नागरिकता संशोधन कानून पर चुप क्यों है? कांग्रेस के पास इसका जवाब नहीं कि क्या वह परमाणु हथियार खत्म करने और क्वाड से बाहर निकलने की माकपा की घोषणा से सहमत है? उसे इस पर भी मौन धारण करना पड़ा है कि क्या वह भाकपा की राज्यपाल पद खत्म करने की घोषणा का समर्थन करती है?