दिन- मंगलवार, तारीख– 22 अक्टूबर, समय- सुबह सवा 10 बजे, जगह- आर्डनेंस फैक्ट्री खमरिया, जबलपुर।
.
यहां हुए ब्लास्ट में 2 लोगों की मौत हो गई। 10 कर्मचारी झुलस गए। वहीं, 3 कर्मचारी गंभीर रूप से घायल हैं। धमाके की आवाज शहर के 10 किमी क्षेत्र में सुनाई पड़ी। 5 किमी के दायरे में तो हालात भूकंप जैसे बन गए थे। घटना के बाद से ही मृतकों के परिजन फैक्ट्री प्रबंधन से नाराज हैं। उनका कहना है कि फैक्ट्री चलाने वाले अपनी मनमानी करते हैं। यहां कई खामियां हैं।
दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर वास्तविक हालात जाने। साथ ही मृतकों के परिजन और वहां के कर्मचारियों से भी बात की। फैक्ट्री के सामने कुछ रिटायर्ड कर्मचारी भी मिले। वे कहते हैं- फैक्ट्री में बम रीफिलिंग का काम बेहद खतरनाक है। सुरक्षा नाकाफी है। जो काम रोबोट से कराना चाहिए, वह यहां इंसान करते हैं। ऐसे में हादसे तो होंगे ही। पढ़िए, ये रिपोर्ट…
5 किमी तक का इलाका कांपा, लगा- भूकंप आया है मंगलवार का दिन भी जबलपुर के लिए आम दिनों की तरह ही शुरू हुआ था। लोग अपने काम-काज में जुट रहे थे। इसी बीच अचानक कानों में ऐसी गूंज सुनाई पड़ी, जिससे लगा कि या तो कहीं बम फटा है या भूकंप आया है। लोगों का एक अंदाजा सही भी था, बम ही फटा था। करीब 5 किलोमीटर का क्षेत्र कांप उठा था। लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए।
ब्लास्ट होते ही फैक्ट्री में अफरा-तफरी मच गई। घायलों को तुरंत अस्पताल भेजा गया।
हादसे में दो कर्मचारियों की मौत, 13 घायल आर्डनेंस फैक्ट्री खमरिया में हुए इस ब्लास्ट में 13 कर्मचारी घायल हुए। वहीं, 2 कर्मचारियों- एलेक्जेंडर टोप्पो और रणवीर कुमार की मौत हो गई। एलेक्जेंडर जबलपुर के ही रहने वाले थे। उनके 2 जुड़वां बच्चे हैं। पत्नी मैहर में बैंक में कार्यरत है। घटना के बाद से पूरा परिवार सदमे में है। पत्नी किसी से बात नहीं कर रही। वहीं, रणधीर राजभर उत्तर प्रदेश के बलिया के रहने वाले थे।
इनके अलावा गंभीर रूप से घायल श्यामलाल और चंदन कुमार जबलपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। बाकी घायलों का भी अन्य निजी अस्पतालों में इलाज चल रहा है।
मृतक के पिता बोले- फैक्ट्री की कमियां गिनवाऊंगा तो गिन नहीं पाएंगे घटना के अगले दिन यानी 23 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे ऑर्डनेंस फैक्ट्री खमरिया में रणधीर कुमार (38) का शव लाया गया। श्रद्धांजलि देने फैक्ट्रीकर्मियों के साथ एम्यूनिशन इंडिया लिमिटेड के सीएमडी देवाशीष बनर्जी भी पहुंचे। मृतक के परिजन भी वहां मौजूद थे। पत्नी, एक बेटी, दो बेटे, उनके पिता, दो बड़े भाइयों के साथ कुछ अन्य लोग भी थे। परिजन का रो-रोकर बुरा हाल था।
रणधीर कुमार (38) का शव फैक्ट्री के बाहर लाया गया, जहां कर्मचारियों ने श्रद्धांजलि दी।
रणधीर की पत्नी बेहोशी की हालत में थी। बच्चे लगातार रो रहे थे। हमने रणवीर के पिता राधामोहन राजभर से बात करने की कोशिश की। पहले उन्होंने कुछ भी बोलने से मना किया। फिर बोले- कहना तो मैं बहुत कुछ चाहता हूं लेकिन कुछ भी नहीं कहूंगा। ऑर्डनेंस फैक्ट्री में कितनी कमियां हैं, गिनवाऊंगा तो गिन नहीं पाएंगे। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए।
रणधीर के भाई हितेंद्र कुमार राजभर ने कहा- हम गरीब लोग हैं। खेती किसानी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अब आगे कुछ मत बुलवाइए। बड़े भाई संजीव ने कहा- मैं एक शब्द नहीं बोलूंगा। आपको फैक्ट्री प्रशासन से बात करनी चाहिए।
फैक्ट्री का काम बहुत सेंसेटिव, कुछ भी हो सकता है फैक्ट्री कर्मचारी शिवमणि राजभर बताते हैं- फैक्ट्री से देश के तमाम सुरक्षा संस्थानों को हर तरह के छोटे-बड़े बम सप्लाई होते हैं। हर बम की अलग-अलग एक्सपायरी डेट होती है। जब सुरक्षा संस्थानों के पास रखे बम एक्सपायर हो जाते हैं तो वह उन्हें फैक्ट्री में बारूद रीफिलिंग के लिए भेजते हैं ताकि कम खर्च में नया बम मिल जाए।
यहां उन बमों का बारूद निकाला जाता है, फिर नया बारूद रीफिल किया जाता है। इस फैक्ट्री में हम बम से जुड़े कई तरह के काम करते हैं। कहीं भी किसी की भी शिफ्ट लगती रहती है। बम कैसे फटा, ये नहीं बताया जा सकता। ये काम बहुत सेंसेटिव है। कभी भी कुछ भी हो सकता है।
बारूद नाखून में लगा और रगड़ खाया तो हाथ फट सकता है शिवमणि राजभर कहते हैं- हम सामान्य कपड़े पहनकर फैक्ट्री के अंदर नहीं जा सकते। जहां बम की फिलिंग का काम होता है, वहां एंट्री से पहले एक टैम्प्रेचर मशीन होती है। अगर आपके शरीर का तापमान ज्यादा है तो आप अंदर नहीं जा सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादा टैम्प्रेचर के चलते बारूद फट सकता है। कई बार फटता भी है।
टैम्परेचर ज्यादा होने पर हमें पानी पीना होता है ताकि डाउन हो जाए। टैम्परेचर डाउन होने के बाद ही अंदर जा सकते हैं। अंदर जाने से पहले ग्लव्ज पहनना होता है, कैप पहननी होती है। अंदर जाने के बाद बारूद फिलिंग के वक्त हमें बारूद एक-एक तुकड़ा बड़ी सावधानी से उठाना होता है। बारूद नाखून में लग गया और कहीं भी रगड़ गया तो वहां किसी भी कर्मचारी का हाथ फट सकता है। बड़ा विस्फोट हो सकता है। यहां हर दिन छोटे-बड़े हादसे होते हैं।
नॉन ट्रेंड कर्मचारी को सीधे बन बनाने का काम कर्मचारी राजू मीना का कहना है- फैक्ट्री में मशीनें आधुनिक नहीं हैं। बिना ट्रेनिंग यानी नॉन फिलिंग वाले लोगों को फिलिंग का काम दिया जा रहा है। यानी सीधे बम बनाने का काम दिया जा रहा है। इसके पीछे की वजह है काम का दबाव। इसी वजह से फैक्ट्री में हर दिन कोई ना कोई वारदात होती रहती है।
रिटायर्ड कर्मचारी बोले- बारूद का नेचर किसी को नहीं पता फैक्ट्री के रिटायर्ड कर्मचारी अरुण दुबे ने कहा- गोला बारूद की फैक्ट्री है। बारूद का नेचर किसी को नहीं पता। जैसे आज काम हो रहा है, वैसे ही कल होगा। आज एक्सीडेंट नहीं होगा, कल हो जाएगा। ये हादसा जिस बम कि फिलिंग की वजह से हुआ है उस बम का नाम पिरोचा बम है। इसका इस्तेमाल एयर फोर्स करती है। बड़ा बम होता है। इसको ऊपर से ड्रॉप किया जाता है। ये बम वायु सेना की बड़ी ताकत है।
बम कई साल तक यूज नहीं होता तो एक्सपायर हो जाता है। इसके बाद एयर फोर्स फैक्ट्री को इसकी रिफिलिंग के लिए भेजती है। ये रिफिलिंग का काम बड़ा सेंसेटिव है। लोग इसको पहले से करते रहे हैं, बड़ी सावधानी से करते रहे हैं। पिछले 10 सालों में करीब 20 हजार से ज्यादा बम यहां से रिफिल कर सुरक्षा संस्थानों को दिए हैं। पुराने बम को बॉयल आउट करके नया बार हेड भरा जाता है। पुराने बम का बार हेड खोलने के दौरान ही ये घटना हुई।
रिफिलिंग प्रोसेस में दो से तीन लोग ही लगते हैं। इस बम की फिलिंग के लिए भी 3 लोग ही काम पर लगे थे, जिनमें से 2 की मौत हो गई है। एक गंभीर घायल है। ये बहुत बड़ा बम था, इसलिए इतना बड़ा धमाका हुआ। ये इतना बड़ा बम था कि साबूत फटता तो 10 बड़ी इमारतें तबाह हो जातीं।
निगमीकरण का नाम, कंट्रोल सरकार कर रही दुबे कहते हैं- दुर्भाग्य ये है कि फैक्ट्री के निगमीकरण होने के बाद जो सुविधाएं मिलनी चाहिए वो नहीं मिल रही हैं। निगमीकरण का नाम है पर कंट्रोल सरकार कर रही है। यहां पहले भी हादसे हो चुके हैं। सरकार को ये ध्यान देना चाहिए कि यहां जान जोखिम में डालने वाले कर्मचारियों को कम से कम पेंशन तो मिले। साथ ही उनके बच्चों को सरकारी नौकरी मिले।
कर्मचारियों को यहां मोबाइल रखने की अनुमति नहीं अरुण दुबे का कहना है- फैक्ट्री के अंदर कर्मचारियों को मोबाइल रखने तक की अनुमति नहीं है। हालांकि अधिकारी खुद मोबाइल लेकर आते हैं, लेकिन कर्मचारियों को इजाजत नहीं। उनका इंक्रिमेंट रोक देते हैं। किसी की बीवी बीमार हो जाए तो कोई ऐसी सुविधा नहीं है कि कर्मचारी को तुरंत पता चल सके। यहां कोई कर्मचारी अपने पिता, पत्नी से संपर्क नहीं कर पाता। ये बड़ी समस्या है।
मृतकों की हर संभव मदद करेंगे। पीड़ित परिवारों को 25-25 लाख रुपए दिए गए हैं। परिवार अनुकंपा नियुक्ति चाहेगा तो एक माह में उन्हें नौकरी दी जाएगी।
-देवाशीष बनर्जी, फैक्ट्री के सीएमडी