शरीर के सेल्स और अंग, लाइलाज बीमारियों का उपचार मिलेगा। यह संभव होगा 3डी बायोप्रिंटिंग तकनीक से। एम्स भोपाल में इस तकनीक के उपयोग से लाइलाज बीमारियों के निदान खोजने में भी सहायता मिलेगी। एम्स डायरेक्टर डॉ अजय सिंह ने शुक्रवार को 3-डी बायो प्रिंटर का
.
कैसे काम करता है 3–डी बायोप्रिंटिंग
3डी या थ्री डायमेंशनल प्रिंटिंग में जीवित कोशिकाओं और बायोमटेरियल से बने बायो-इंक की परत बनाकर तीन आयामी जैविक संरचनाएं बनाती है। इसमें लंबाई, चौ़ड़ाई, ऊंचाई और गहराई में से तीन आयामों को लेकर डिजाइन कंप्यूटर पर तैयार किया जाता है और डिजाइन के मुताबिक अलग-अलग लेयर्स में उन्हें जोड़कर वस्तु का निर्माण किया जाता है। जिससे ह्यूमन टिशु यानी कि इंसान के शरीर में मौजूद टिशु निकाले जा सकते हैं।
सुविधा सुविधा का उद्घाटन
कैसे करेंगे काम
विशेषज्ञों के मुताबिक कैंसर या अन्य बीमारियों में नए उपचार के लिए नई दवाओं का ट्रायल या तो मरीज परकिया जाता है। या इसके लिए चूहे या अन्य जानवरों पर शोध किया जाता है। अब 3-डी बायो प्रिंटर मावन उत्तक को तैयार किया जाएगा। लैब में तैयार उत्तक पर दवाओं का ट्रायल किया जाएगा। अपेक्षित परिणाम मिलने पर इस दवा का उपयोग मानव शरीर पर किया जाएगा।
यह होंगे काम
इस मशीन के द्वारा मानव स्किन यानी की त्वचा को बनाया जा सकता है। अभी तक यह केवल तभी संभव था जब कोई व्यक्ति अंग डोनेट करें या फिर किसी सर्जरी के माध्यम से टिशु को निकाला जाए। इस तकनीक का उपयोग रक्त वाहिकाओं हड्डियों हृदय त्वचा आदि जैसे जीवित ऊतकों को बनाने के लिए किया जा सकता है।