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(Source: Dainik Bhaskar)
हिंदी न्यूज़न्यूज़इंडियाइलेक्टोरल बॉन्ड योजना बहाल करने पर विचार नहीं करेगा सुप्रीम कोर्ट, खारिज की पुनर्विचार याचिका
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना बहाल करने पर विचार नहीं करेगा सुप्रीम कोर्ट, खारिज की पुनर्विचार याचिका
Electoral Bond Scheme Review Petition: 2017 में केंद्र सरकार ने राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को साफ-सुथरा बनाने के नाम पर चुनावी बांड का कानून बनाया था.
By : निपुण सहगल | Updated at : 05 Oct 2024 06:40 PM (IST)
Supreme Court Dismisses Review Petition of Electoral Bond Scheme: इलेक्टोरल बॉन्ड योजना रद्द करने के फैसले पर दोबारा विचार से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. इस साल 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था. वकील मैथ्यू नेदुंपरा ने उस फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. उसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.
क्या थी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना?
2017 में केंद्र सरकार ने राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को साफ-सुथरा बनाने के नाम पर चुनावी बांड का कानून बनाया था. इसके तहत स्टेट बैंक के चुनिंदा ब्रांच से हर तिमाही के शुरुआती 10 दिनों में बांड खरीदने और उसे राजनीतिक पार्टी को बतौर चंदा देने का प्रावधान था. सरकार का कहना था कि इससे कैश में मिलने वाले चंदे में कमी आएगी. बैंक के पास बांड खरीदने वाले ग्राहक की पूरी जानकारी होगी. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी.
कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं
इस योजना के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुईं थीं. याचिकाकर्ता एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (ADR) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) ने कहा था कि इस व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं है. बैंक से बांड किसने खरीदे, उसे किस पार्टी को दिया, इसे गोपनीय रखे जाने का प्रावधान है. यहां तक कि चुनाव आयोग को भी ये जानकारी नहीं दी जाती. यानी सरकार से फायदा लेने वाली कोई कंपनी बांड के ज़रिए सत्ताधारी पार्टी को अगर चंदा दे तो किसी को पता ही नहीं चलेगा. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. इतना ही नहीं, विदेशी कंपनियों को भी बांड खरीदने की इजाज़त दी गई है. जबकि, पहले विदेशी कंपनी से चंदा लेने पर रोक थी.
क्या था फैसला?
15 फरवरी को संविधान पीठ ने इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक करार दिया था. कोर्ट ने माना था कि दानदाता और उससे चंदा पाने वाली पार्टी की जानकारी गोपनीय रखना गलत है. मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया. अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि किस दानदाता ने किस तारीख को कितनी राशि का बॉन्ड खरीदा स्टेट बैंक इसकी जानकारी चुनाव आयोग को दे. साथ ही, स्टेट बैंक यह भी बताए कि उस बॉन्ड को किस पार्टी ने कैश करवाया. कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह स्टेट बैंक से मिली जानकारी को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे.
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Published at : 05 Oct 2024 06:40 PM (IST)
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