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Tax on Dividend : क्या आपको पता है कि भारत में डिविडेंड पर करीब 49 फीसदी टैक्स वसूला जाता है, जबकि अमेरिका में यह सिर्फ 20 फीसदी तक ही रहता है. ब्रिटेन जैसे देशों में तो बिना किसी टैक्स के ही डिविडेंड बांटा जाता है….और पढ़ें
नई दिल्ली. अगर आप भी शेयर बाजार में निवेश करते हैं और कंपनियों की ओर से उनके प्रॉफिट में डिविडेंड के रूप में हिस्सा मिलता है तो आने वाले बजट से बड़े तोहफे की उम्मीद है. ऐसे निवेशक जो भारत में रहते हैं, उन्हें मिलने वाले डिविडेंड पर अभी करीब 50 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ता है. सरकार से मांग की गई है कि 1 फरवरी, 2025 को पेश होने वाले बजट में डिविडेंड पर लगने वाले इस भारी-भरकम टैक्स को कम कर दिया जाए. डिविडेंड पर अभी दोहरा टैक्स लगाया जाता है. इससे इक्विटी बाजार में निवेश करने वालों पर बड़ा बोझ पड़ता है.
लाभांश वितरण कर (डीडीटी) यानी डिविडेंट पर टैक्स लगाने की शुरुआत 1997 में पेश किए बजट में शुरू किया गया था, लाभांश पर टैक्स को सरल बनाया जा सके. पहले टैक्स डिविडेंड देने वाली कंपनियों को देना पड़ता था, लेकिन साल 2020 में इसे समाप्त कर दिया गया और टैक्स देने का बोझ शेयरधारकों पर डाल दिया गया. सरकार ने कहा था कि पारदर्शिता बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल बैठाने के लिए शेयरधारकों पर सीधा बोझ डाला गया है.
कैसे लगता है डिविडेंड पर टैक्स
वित्तीय वर्ष 2020-21 से लाभांश वितरण कर (DDT) को समाप्त कर दिया गया है. अब लाभांश पर निवेशकों के हाथों में उनके आयकर स्लैब के अनुसार टैक्स लगाया जाता है. उन करदाताओं के लिए जिनकी शुद्ध कर योग्य आय पुराने टैक्स रिजीम में 10 लाख रुपये से अधिक या नए रिजीम में 15 लाख रुपये से अधिक है, उन पर प्रभावी टैक्स 31.2% है, जो कर योग्य आय 1 करोड़ रुपये से अधिक होने पर 35.88% तक बढ़ जाती है. इसके साथ ही 25.17% की कॉर्पोरेट टैक्स दर को मिलाकर, प्रभावी टैक्स 48.51% हो जाता है. इस तरह डिविडेंड पर सरकार करीब 49 फीसदी के आसपास टैक्स वसूलती है.
कैसे बढ़ जाता है इतना टैक्स
डिविडेंड पर 49 फीसदी के आसपास टैक्स इसलिए बढ़ जाता है, सबसे पहले कंपनी द्वारा कमाए गए मुनाफे पर सरकार 25.17% (22% प्लस 10% सरचार्ज प्लस 4% सेस) टैक्स वसूल लेती है. इसके बाद बचे मुनाफे से डिविडेंड घोषित किया जाता है. अब यह डिविडेंड व्यक्तिगत शेयरधारकों को मिलता है और फिर सरकार उनके स्लैब के हिसाब से प्राप्त डिविडेंड राशि पर टैक्स लगाती है, जैसे कि 31.2% (30% प्लस 4% सेस).
एनआरआई पर लगता है कम टैक्स
एक तरफ भारतीय निवेशकों और कंपनियों से कुल मिलाकर 49 फीसदी तक टैक्स लिया जाता है तो दूसरी ओर एनआरआई पर कम टैक्स लगता है. आयकर कानूनों के अनुसार, गैर-निवासियों को डिविडेंड पर 20% की दर से फ्लैट टैक्स चुकानी होती है, जिसमें 4% सेस जोड़ने पर प्रभावी टैक्स दर 20.8% हो जाती है. यदि किसी वित्तीय वर्ष में शुद्ध कर योग्य आय (जिसमें डिविडेंड शामिल है) 50 लाख रुपये से अधिक हो जाती है, तो सरचार्ज लागू होता है. यह 20% की फ्लैट टैक्स दर डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट्स (DTAA) द्वारा अधिकांश मामलों में 5%-15% तक कम हो जाती है.
उदाहरण से समझिए पूरा मामला
मान लीजिए कि एक कंपनी ने 100 रुपये का लाभ कमाया. इस लाभ पर कंपनी द्वारा 25.17 रुपये का कर चुकाया जाता है, जिससे लाभांश वितरण के लिए 74.83 रुपये बचते हैं. शेयरधारकों को प्राप्त लाभांश पर, जो उच्चतम कर स्लैब में आते हैं, उन्हें 31.2% (30% प्लस 4% सेस) कर चुकाना होगा, यदि पुरानी कर व्यवस्था में कर योग्य आय 10 लाख रुपये से अधिक हो या नई कर व्यवस्था में 15 लाख रुपये से अधिक हो. इस दोहरे कराधान के कारण प्रभावी टैक्स की दर 48.51% हो जाती है.
साझेदारी फर्मों पर भी कम लगता है टैक्स
साझेदारी फर्मों और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) के मामले में, वर्तमान प्रभावी टैक्स दर 34.94% है, क्योंकि भागीदारों पर उनके लाभांश पर कोई अतिरिक्त कर नहीं लगता है. केवल निवासी व्यक्तियों या कंपनियों के मामले में ही प्रभावी टैक्स दर सबसे अधिक होती है और लगभग 50% के बराबर होती है. इतनी उच्च टैक्स दर न केवल लाभांश वितरण को हतोत्साहित करती है, बल्कि भारत में इक्विटी निवेश को भी प्रभावित करती है.
ज्यादा टैक्स से क्या होगा नुकसान
- डबल टैक्सेशन से व्यक्तिगत निवेशकों के निवेश निर्णयों पर असर पड़ेगा, क्योंकि यह कंपनियों को डिविडेंड के रूप में वितरण करने के बजाय कमाई को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती है.
- निवेशक डिविडेंड की तुलना में पूंजीगत लाभ को प्राथमिकता दे सकते हैं क्योंकि इस पर कम टैक्स लगता है, जिससे इक्विटी बाजार में धन के प्रवाह पर असर पड़ता है.
- टैक्सेशन की कई परतों का अनुपालन कंपनियों और निवेशकों दोनों के लिए प्रशासनिक बोझ और अनुपालन लागत को बढ़ाता है.
- खुदरा निवेशक, विशेष रूप से वे जो नियमित नकदी प्रवाह के लिए लाभांश आय पर निर्भर हैं, वर्तमान व्यवस्था के तहत असमान रूप से ज्यादा टैक्स का बोझ उठाते हैं. एसएमई, जो अक्सर शेयरधारकों का विश्वास बनाए रखने के लिए लाभांश वितरित करते हैं, उच्च प्रभावी टैक्स की दर के कारण विकास के लिए पूंजी बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करते हैं.
- संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों में योग्य लाभांश पर 0% से 20% तक की आय स्तर के आधार पर वरीयता दर पर टैक्स लगाया जाता है. यूके टैक्स मुक्त लाभांश देता है, जबकि इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे विकासशील देशों में 10% लाभांश टैक्स लगता है तो वियतनाम में यह 5% है.
कितना होना चाहिए डिविडेंड टैक्स
उपरोक्त चुनौतियों को देखते हुए डिविडेंड पर टैक्स के प्रबंधन को सरल बनाना बहुत जरूरी है. निवासियों के लिए डिविडेंड पर टैक्स को 15% (सर्चार्ज और सेस को छोड़कर) तक सीमित करने की आवश्यकता है, जिससे उन निवेशकों के लिए अधिकतम प्रभावी टैक्स दर 17.94% हो सकती है. जिन करदाताओं पर सर चार्ज लागू नहीं होता, उनके लिए प्रभावी टैक्स दर 15.6% (15% प्लस 4% सेस) होगी. निवासियों के लिए डिविडेंड टैक्सेशन को सरल बनाने से इक्विटी बाजारों में खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ सकती है और डिविडेंड देने वाली कंपनियों के मूल्यांकन में महत्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
January 19, 2025, 23:49 IST