विदिशा में आज (रविवार) मुनि श्री वीर सागर जी महाराज के सानिध्य में आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का 57वां दीक्षा दिवस मनाया गया। शहर के परिणय गार्डन में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।जहां शहर की सभी पाठशाला के भैया बहन तथा शिक्षकाएं सहित बड़
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इस मौके पर श्री सकल दि. जैन समाज एवं श्री शीतल विहार न्यास ट्रस्ट, मुनि सेवक संघ के साथ जैन मंदिरों के पदाधिकारियों ने मुनिसंघ को चातुर्मास के लिए श्री फल भेंट किया। इस मौके पर मुनिश्री वीर सागर जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर के बाद उनकी जीवंत और निर्दोष चर्या को यदि किसी ने जीवंत कायम रखा है तो वह थे आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर महाराज। जिन्होंने धर्म, समाज और लोक कल्याण की भावना से कई ऐसे कार्य किए जो इतिहास में हजारों हजार वर्ष तक जीवंत रहेंगे।
उन्होंने कहा कि 20 वर्ष की उम्र में कर्नाटक का एक युवक आचार्य ज्ञानसागर महाराज के पास अपने आपको समर्पित कर मोक्ष मार्ग पर चलने की भावना रखता है, तो आचार्य श्री ज्ञानसागर जी कहते हैं कि नाम ही तुम्हारा विद्याधर है ज्ञान प्राप्ति के पश्चात उड़ जाओगे तो वह विद्याधर ने उसी समय से आजीवन वाहन का त्याग कर दिया। मुनि श्री ने कहा जो दृश्य दिख रहा है उसे तो सभी देख लेते हैं, लेकिन जो अदृश्य है उसे वही देख पाता है जिनकी नजर पारखी होती है। आचार्य ज्ञान सागर ने विद्याधर में भगवान महावीर की परंपरा को हजारों हजार वर्ष तक जीवंत रखने वाला एक साधक नजर आया और उन्होंने 30 जून 1968 को अजमेर नगर में सोनीजी की नसियां में दीक्षा देकर एक नए युग की शुरुआत कर दी।
ऐसा साहित्य लिखा वह उनको हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर गया
मुनि श्री ने कहा कि साधना के माध्यम हमें महापुरुषों के जीवन चरित्र पड़ने का मौका मिलता है। हजारों हजार वर्ष पूर्व आचार्य पुष्पदंत आचार्य भूतबलि, आचार्य समन्तभद्राचार्य आदि हुए हैं, जिनको आज भी जमाना याद करता है क्योंकि उन्होंने ऐसे कार्य किये ऐसा साहित्य लिखा वह उनको हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर गया। आचार्य श्री तो चले गए लेकिन उनके द्वारा प्राचीन परंपरा का निर्दोष रूप से पालन एवं उनके द्वारा लिखा गया साहित्य, उनके द्वारा किए गए लोक कल्याण कारी कार्य जिसमें जीव दया के लिए एक सौ पचास से अधिक व्यवस्थित गौ शालाएं जिसमें सेवाभावी लोगों के माध्यम से लाखों गायों का संरक्षण हो रहा है।
वहीं बेटियों की शिक्षा और चारित्र निर्माण के लिए भारतीय शिक्षा पद्धति जिससे भारतीय संस्कृति जीवंत रहे। प्रतिभास्थलीओं का निर्माण करा कर योग्य शिक्षकाओं की नियुक्ति की।
उन्होंने कहा कि जिन्होंने हमारे जीवन में यदि छोटा सा भी उपकार किया है तो उन उपकारों को हमें भूलना नहीं चाहिए। सबसे पहले हमें उन माता पिता का ऋणी होना चाहिए, जिन्होंने हमें जन्म दिया और पालन पोषण कर इस योग्य बनाया कि आज हम कुछ कार्य कर पा रहे हैं। धरती को माता और सूर्य को देवता इसी संदर्भ को लेकर कहते हैं। इन सभी का हमारे जीवन में उपकार है और उपकारी के उपकार को भूल जाना कृतघ्नता है उनके उपकारों सदैव गुणगान करते रहना चाहिए।
एक करोड़ का पैकेज छोड़ वीरसागर जी ने सन्यास लिया
विदिशा में विराजमान निर्यापक श्रमण वीरसागर जी महाराज का जन्म 31 मई 1973 को नागपुर में सुषमा देवी एवं शिखरचंद जैन नायक परिवार में दूसरे पुत्र के रूप में हुआ। बचपन से ही असाधारण एवं तेज बुद्धि के धनी शैलेश की लौकिक शिक्षा बी.टेक के साथ एमबीए (फाइनेंस) से हुई। साथ ही सीएफए के तीसरे लेवल को भी पूरा किया एवं पीजीडीसीए किया। 23 वर्ष की युवावस्था में ही इस सदी के महान संत आचार्य गुरु देव विद्यासागरजी महाराज जब गुजरात की यात्रा पर थे उनसे प्रभावित होकर 31 जुलाई 1996 को सूरत के पास सिद्धक्षेत्र महुआ जी में जाकर वृहमचर्य व्रत धारण किया,।
धार्मिक शिक्षा के साथ नौकरी एवं आंतरिक साधना को भी करते रहे। 21 अगस्त 2004 को दयोदय तीर्थ तिलवारा घाट जबलपुर में संत शिरोमणि आचार्य गुरुदेव विद्यासागरजी महाराज से मुनि दीक्षा ली। उस समय वे बॉम्बे के स्टॉक एक्सचेंज की एक कंसल्टेंट फर्म में जाॅब पर थे। उस समय उनका पैकेज एक करोड़ रूपए सालाना था। वर्तमान में आपके संघस्थ है। साथ ही मुनि श्री विशाल सागर जी एवं मुनि श्री धवल सागर जी सहित चार छुल्लक जी आपके ही संघस्थ हैं। मुनि श्री ने अपने व्यावहारिक ज्ञान एवं शास्त्रों के अध्ययन से वर्तमान के युवक एवं युवतियों को काफी प्रभावित किया है। वे अच्छे मनोनिवेशनल स्पीकर भी हैं।