गुवाहाटी:असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा के बयान ने एक बार फिर मुस्लिम आबादी पर बहस छेड़ दी है। रांची में उन्होंने दावा किया था कि मुस्लिम आबादी के कारण असम की डेमोग्राफी बदल गई है और कई जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं। उन्होंने कहा कि 1951 के दौरान असम में 12 फीसदी मुस्लिम थे, जो अब 40 फीसदी तक पहुंच गई है। उन्होंने इसके लिए अवैध घुसपैठ को जिम्मेदार बताया। उनके आंकड़ों पर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए हैं। टीएमसी की नेता सुष्मिता देव ने दावा किया है कि 1951 में मुसलमानों की आबादी 25 प्रतिशत थी। उन्होंने कहा कि अभी 2021 की जनगणना हुई नहीं है तो 40 पर्सेंट का आंकड़ा कहां से आ गया? बता दें कि 2011 में हुई जनगणना में असम की आबादी 3.12 करोड़ थी। हिंदुओं की जनसंख्या एक करोड़ 92 लाख यानी 61.47 प्रतिशत थी। राज्य में 1 करोड़ 07 लाख मुस्लिम थे, जो कुल आबादी का 34.22 प्रतिशत था। कई एक्सपर्ट मानते हैं कि 2021 में असम में अल्पसंख्यक आबादी 37 फीसदी के पार चली जाएगी।
असम के 9 जिलों में 50 से 79 फीसदी है मुसलमानों की जनसंख्या
आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो 2001 में ही निचले असम के 6 जिले मुस्लिम बाहुल्य हो चुके थे। 2011 में 9 जिले बारपेटा, करीमगंज, दारंग, मोरीगांव, नौगांव, बोंगाईगांव, धुबरी, हैलाकांडी और गोलपाराबतौर मुस्लिम बाहुल्य वाले जिले चिह्नित किए गए। इन जिलों में मुस्लिम आबादी 50 से 80 फीसदी मानी जाती है। रिपोर्टस के अनुसार, धुबरी जिले में मुस्लिम जनसंख्या 79.67 है, जबकि बरपेटा में 70.74 है। दारंग और हैलाकांडी में भी 60 फीसदी से अधिक आबादी है। 9 जिलों के अलावा कामरूप, कछार और नलबाड़ी में भी मुसलमानों की आबादी करीब 40 फीसदी आंकी गई है। मध्य और निचले असम में बदली हुई आबादी के आंकड़ों पर बहस तब और तेज हुई, जब इन क्षेत्रों से कुल 45 विधानसभा सीटों पर फैसला मुस्लिम वोटरों के हाथों में चला गया। 2021 के विधानसभा चुनाव में 31 मुसलमान विधायक चुने गए, जिनमें 16 कांग्रेस और 15 एआईयूडीएफ के हैं। भगवा दल दो दशक से बांग्लादेश से आने वालों के खिलाफ मुखर रहा।
1905 के बंगाल विभाजन के बाद असम में बढ़ी मुस्लिम आबादी
असम में मुसलमानों की आबादी को लेकर कई थ्योरी है। 1901 में हिंदुओं की आबादी 90.02 फीसदी और मुस्लिम आबादी 9.50 फीसदी थी। पहली थ्योरी है कि 1905 के बंगाल विभाजन के बाद पूर्वी बांग्लादेश के लोग असम के निचले इलाके में बसाए गए, जहां जमीन उर्वरा थी। 1947 में आजादी के बाद भी असम में यह रुझान जारी रहा। चूंकि 1971 तक असम में नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्य शामिल थे, इसलिए हिंदू-मुस्लिम अनुपात कम दिखता रहा। 1963 में नागालैंड और 1971 में मेघालय के साथ अरुणाचल प्रदेश के अलग होने के बाद मुसलमानों की आबादी में बढ़ोतरी पर सबकी नजरें गईं। 1971 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, असम की कुल 24.56 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के मुकाबले हिंदू आबादी 72.51 प्रतिशत थी। इसके बाद असम में 20 साल बाद 1991 में जनगणना हुई, तब कुल जनसंख्या में मुसलमानों की संख्या 28.43 फीसदी दर्ज की गई। राज्य में अशांति के कारण 1981 में जनगणना नहीं हुई थी।
बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ भी बदलते डेमोग्राफी के लिए जिम्मेदार
दूसरी थ्योरी में आबादी बढ़ोतरी के लिए बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों को जिम्मेदार बताया जाता है। बीजेपी समेत असमिया संगठनों का दावा है कि बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद असम का डेमोग्राफी बदलने लगा। वोट बैंक की राजनीति ने उन्हें मध्य और निचले असम के इलाकों में बसने का मौका दिया। स्थानीय असमिया लोगों के लिए आज भी बड़ा मुद्दा है। उनका कहना है कि बांग्लादेश मूल के मुसलमान स्थानीय लोगों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकार छीन रहे हैं। हिमांता विस्वा सरमा का बयान इसी थ्योरी के हिसाब से आया है।