पति के इलाज में दो गाड़ियां बिक गई। ब्यूटी पार्लर का काम करती थी, वह भी चौपट हो गया। पति टूर एंड ट्रेवल्स का काम करते थे, वह भी बंद हो गया। हमने लखनऊ में घर बनवाने के लिए एक प्लॉट खरीदा था वह भी बिक गया। आज हम सड़क पर परिवार का पेट पालने के लिए इटली
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यह बात उस महिला की है जो पिछले 5 महीने से अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा रही है। वह लखनऊ में जोनल पार्क के पास एक्टिवा से रोज सुबह आती है। यहां पर इडली सांभर की दुकान लगाकर ग्राहकों का इंतजार करती रहती है।
दैनिक भास्कर ने जब महिला की कहानी को जानने का प्रयास किया तब महिला ने बताया कि साल भर पहले जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था। परिवार में सभी खुश थे। पति टूर एंड ट्रेवल्स का काम करते थे और मैं पार्लर चलाती थी।
6 महीने के भीतर दांव में लगी जिंदगी सड़क पर इडली सांभर बेचने वाली इस महिला का नाम रेनू है। उसके 3 बच्चे हैं। अब इसी रोजगार से बच्चों की पढ़ाई और घर की रसोई चलती है। रेनू कहती हैं कि साल भर पहले अचानक पति की तबीयत खराब हो गई। इलाज के लिए दिन-रात एक कर दिए। लखनऊ में कई डॉक्टरों को दिखाए आराम नहीं मिला तो बनारस भी लेकर गए।
यह तस्वीर रेनू और उनके पति की है।
प्लॉट बिका, गाड़ियां बिकी, ब्यूटी पार्लर हुआ बंद तबीयत में सुधार नहीं होने पर पीजीआई में भर्ती कराया। यहां डॉक्टरों ने जब जांच की तो बोन कैंसर होने की जानकारी हुई। सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। 6 महीने के इलाज में प्लॉट बिक गया। दो गाड़ियां बिक गई। जमा पूंजी खत्म हो गई। इलाज के दौरान भाग-दौड़ इतनी कि ब्यूटी पार्लर भी बंद करना पड़ा।
तस्वीर में देख सकते हैं कि रेनू किस तरह से दुकान चलाती हैं।
बच्चों की फीस जमा करने के भी पैसे नहीं‘ अब स्थिति यह है कि बच्चों की फीस जमा करने के लिए भी पैसे जुटाने पड़ते हैं। दोबारा पार्लर शुरू कर पाना संभव नहीं है। पति कुछ कर नहीं सकते। हमें इडली-सांभर बनाना आता था। हमने सोचा घर चलाने के लिए कुछ तो करना होगा। 5 महीने से अब इडली-सांभर बेच रही हूं। इसी के सहारे मैं बच्चों का पेट पालती हूं।
रेनू स्कूटी पर इडली और सांभर बेचती हैं।
फुटपाथ पर लड़ रही संघर्ष की लड़ाई शुरुआत में रिश्तेदारों ने भी थोड़ी-बहुत सहायता की, लेकिन कोई भी हो हमेशा साथ नहीं देता। जब प्लॉट और गाड़ियां बिकी तो मैं हिम्मत हार गई थी। बीमार पति और तीन छोटे बच्चों का मुंह देखती तो लड़ाई लड़ने की हिम्मत नहीं होती थी। अब जीवन के संघर्ष में फुटपाथ पर खड़ी हूं। यहीं से परिवार का भरण-पोषण कर रही हूं।
रेनू के यहां खाने वाले कई लोगों ने रील भी बनाई है।
इलाज में 25 लाख का है खर्च रेनू कहती है कि पति का इलाज अभी भी एसजीपीजीआई हॉस्पिटल में चल रहा है। डॉक्टरों ने बोन नैरो ट्रांसप्लांट कराने के लिए सुझाव दिया है। इसमें 25 लाख का खर्च बताया गया है। फुटपाथ पर खड़े होकर इतनी बड़ी रकम जमा कर पाना संभव नहीं है।
दैनिक भास्कर ने रेनू से बातचीत की।
सरकार से सहारे की उम्मीद अब हमारे पास घर-परिवार को बचाने के लिए सिर्फ सरकार से ही सहारे की उम्मीद है। अगर मदद मिलती है तो पति का इलाज हो सकेगा। फिलहाल हम इस छोटी सी दुकान के सहारे अपने जीवन की इस लड़ाई को लड़ रहे हैं।