लखनऊ के निजी अस्पताल में आंख की सर्जरी कराने के लिए OT में गए 10 साल के बच्चे की मौत की घटना ने टॉप क्लास मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर के दावे की पोल खोल दी है। इस घटना के बाद से परिजन पुलिस से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक दोषी अस्पताल और डॉक्टर के खिलाफ कार्र
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शनिवार को परिजनों ने लखनऊ के CMO से मिलकर पूरी घटना की निष्पक्ष जांच करने की गुहार लगाई। CMO की तरफ से पीड़ित परिवार को आश्वासन भी दिया है।
दैनिक भास्कर ने इस घटना को लेकर मेडिकल फील्ड के कई एक्सपर्ट्स से बात की और जाना आखिर कहां और किस स्तर पर चूक हुई होगी? इनमें बेहोशी यानी एनेस्थिसिया के एक्सपर्ट से लेकर आई सर्जन, फार्मासिस्ट एक्सपर्ट और नर्सिंग ऑफिसर भी शामिल रहे।
सबसे पहले बात, यूपी के सबसे बड़े चिकित्सा विश्वविद्यालय, KGMU के एनेस्थीसिया विभाग के एडिशनल प्रोफेसर तनमय तिवारी से…
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प्रो.तन्मय तिवारी, KGMU
बेसिक प्रोटोकॉल फॉलो करना जरूरी बातचीत में डॉ. तन्मय तिवारी कहते है कि ये बेहद दुखद और झकझोरने वाली घटना है। सबसे अहम बात ये है कि 10 साल के बच्चे को किसने उसे इंजेक्शन दिया था? आम तौर पर बच्चों के मामले में हम लोकल एनेस्थीसिया की जगह जनरल एनेस्थीसिया देते हैं। अब इस मामले में कैसे दिया है, ये एक बड़ा सवाल है।
इसके साथ ही अहम ये भी है, कि लोकल एनेस्थीसिया देने के समय कुछ बेसिक प्रोटोकॉल है, जिनका पालन करना बेहद जरूरी है। जैसे फर्स्ट लेवल सेंसीटिविटी चेक जरूर किया जाना चाहिए। इसके जरिए ही पता चलता है कि मरीज किसी ड्रग को लेकर ओवर सेंसीटिव तो नहीं है।
बेहद घातक हो सकती है कंडीशन डॉ. तन्मय तिवारी कहते है कि कुछ मामलों में ‘ओकलो कार्डियो रिफ्लेक्स’ भी देखने को मिलते हैं। ये लक्षण बेहद घातक होता है। ऐसे मामलों में एनेस्थिसिया का इंजेक्शन देते हुए मरीज बेहद सुस्त पड़ जाता है। कुछ ही देर में बीपी गिरने लगता है और फिर कार्डियो कॉलेप्स होने के कारण उसकी मौत हो जाती है।
सेंसीटिविटी टेस्ट क्यों है जरूरी किसी भी दवाई से शरीर को कभी भी एलर्जी हो सकती है। केमिकल दवाईयों और ड्रग्स का प्रभाव हर शरीर पर अलग तरीके से पड़ता है। इसके लिए हमेशा सेंसिटिविटी टेस्ट कराया जाना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि एनेस्थीसिया देने पर शरीर में कोई भी एलर्जी या रिएक्शन न हो, पर कुछ मामलों में इसका असर बेहद घातक भी हो सकता है।
ऐसे मामलों में ये जानलेवा साबित होता। मरीज को सांस लेने में परेशानी के साथ ही हार्ट कोलैप्स जैसा फील हो सकता है। संभव है इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ हो।
ऑपेरशन तभी कराए जब OT में एनेस्थिसिया विशेषज्ञ मौजूद हो डॉ. तन्मय कहते है कि मेरा यही कहना है, कि अब समय आ गया है कि जब सभी को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए। कही भी ऑपेरशन बिना एनेस्थीसिया विशेषज्ञ के नहीं होना चाहिए। मरीजों और तीमारदारों को इसको लेकर बेहद जागरूक होना चाहिए। बिना एनेस्थीसिया विशेषज्ञ से मिले OT में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
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डॉ. संजय तेवतिया, नेत्र रोग विशेषज्ञ, बलरामपुर अस्पताल, लखनऊ।
अब सुनिए क्या कहते है आई सर्जन यानी नेत्र रोग विशेषज्ञ, डॉ. संजय तेवतिया लखनऊ के बलरामपुर चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय कहते हैं कि आम तौर पर आई सर्जन लोकल एनेस्थिसिया देकर ऑपेरशन कर देते हैं। ऐसे में ये कोई नया काम नहीं है, जिसे किसी डॉक्टर ने किया। पर इस मामले में इसका रिजल्ट बेहद दुखद है।
मेरा ये कहना है कि कभी भी बिना एनेस्थीसिया एक्सपर्ट की मौजूदगी के जब हम लोकल एनेस्थेटिक देकर सर्जरी के लिए जाते हैं, तब स्टैंड बाय मोड में एक जनरल फिजिशियन और एक कार्डियोलॉजिस्ट की मौके पर तैनाती हो, ये भी सुनिश्चित करते है। संभव है, इस मामले में ऐसी कोई तैयारी न रखी गई हो।
अब बात टॉप फार्मासिस्ट से… इस मामले में यूपी स्टेट फार्मेसी काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष सुनील यादव कहते हैं कि ये मामला बेहद गंभीर है। इसमें डिटेल इन्वेस्टिगेशन की जरूरत है। ये कहा जा सकता है कि OT में ले जाने से पहले कुछ बेसिक हाईजीन टेस्ट है, साथ ही कुछ सेट प्रोटोकॉल हैं, जिन्हें फॉलो कराना बेहद जरूरी होता है।
यदि इन्हें अमल में नही लाया गया तो कई बार ये मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। फिलहाल बिना हर पहलू को समझे किसी ठोस निष्कर्ष पर नही निकला जा सकता है। हां ये जरूर है, कि इन मानकों को पालन करने में कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।
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सुनील यादव, पूर्व अध्यक्ष, यूपी फार्मेसी काउंसिल
यह सावधानी रखनी चाहिए पहला- ऐसा देखा गया है कि लोकल एनेस्थिसिया ज्यादा हाइपर सेंसिटिव होता है। यही कारण है कि इसके प्रयोग से पहले आफ्टर सेंसिटिव टेस्ट करना जरूरी होता है। पर कई बार सेंसीटिविटी टेस्ट के बावजूद इसका सटीक विश्लेषण का अंदाजा नही लग पाता है, ऐसे में यदि बाद में एनेस्थीसिया की डोज दी गई तो संभव है मरीज को कुछ ज्यादा परेशानी हो सकती है।
दूसरा- ये भी हो सकता है कि बिना सेंसीटिविटी टेस्ट किए ही बच्चे को एनेस्थिसिया की डोज दी गई है और इसी कारण, इंजेक्शन लगते ही उसकी जान चली गई हो। पर पीएम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हो जाएगी।
तीसरा- हर OT में एक इमरजेंसी ट्रे जरूर होनी चाहिए। जिसमें ऐनाफाईलेक्सिस दवा किट होना बेहद जरूरी है। इस तरह के बेहद इमरजेंसी जैसे मामलों में इसका प्रयोग तत्काल किया जाना चाहिए और इसके जरिए किसी की जान भी बचाई जा सकती है।
चौथा- एनेस्थीसिया देते समय ये जरूर ध्यान में रखना होगा कि सिरिंज वेन्स में न लगे। यही कारण है कि प्रोफेशनल एनेस्थेटिक की मौजूदगी पर हम सभी जोर देते हैं। डॉक्टर द्वारा खुद ही लगाने की बात कही जाती है, तो हो सकता है, कि इस मामले में इसको न फॉलो किया गया हो।
सामान्य तौर पर जब कोई फार्मासिस्ट xylocan जैसे इंजेक्शन लगाता है, तो नीडल को इन्सर्ट करने के साथ ही सिरिंज को पीछे की तरफ एक बार हल्का सा पुल जरूर करता है। ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए जिससे ये पता चल सके कि वेन्स में तो सुई नहीं लगी रही। इसको लेकर अलर्ट रहना जरूरी है।
मेरा ये भी कहना है कि बेहतर होगा कि आज के दौर में हर OT में फार्मासिस्ट की तैनाती भी सुनिश्चित की जाए, जिससे ऐसी कोई घटना जब सामने आए तो तत्काल मौके पर ही एक्शन लेते हुए मरीज की जान बचाई जा सके।
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प्रदीप गंगवार, अध्यक्ष, नर्सिंग एसोसिएशन, KGMU
डॉक्टर की निगरानी में नर्सिंग स्टॉफ करता है सेंसिटिविटी टेस्ट KGMU के नर्सिंग स्टॉफ एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप गंगवार कहते हैं कि डॉक्टर के द्वारा बिना सेंसीटिविटी टेस्ट किए कोई भी एनेस्थीसिया के इंजेक्शन नही दिया जाता है। कई बार डॉक्टर की निगरानी और मौजूदगी में ये नर्सिंग स्टॉफ भी कर देता है, पर ये प्रोटोकॉल का हिस्सा है और हर हाल में ये किया जाना चाहिए।
इसके अलावा दूसरी बात, ऐसा भी संभव है कि बच्चे को पहले से कुछ समस्या रही है। जब उसे OT में ले जाया गया, तो ये समस्या अचानक से बढ़ गई हो, जिसके चलते उसकी मौत हो गई। हालांकि किसी भी ठोस नतीजे पर पहुंचने से पहले गहन जांच जरूरी है। पीएम रिपोर्ट के आधार पर ही सही आकलन किया जा सकता है।
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लखनऊ में एक प्राइवेट हॉस्पिटल में बेहोशी का इंजेक्शन लगाने से 10 साल के बच्चे की मौत हो गई। ऑपरेशन के बाद होश नहीं आया तो बच्चे को गुपचुप तरीके से 600 मीटर दूर चैतन्य हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया। परिजनों को इसकी जानकारी तक नहीं दी। डॉक्टर परिजनों को गुमराह करते रहे। बच्चे के होश में आने तक इंतजार की बात कहते रहे। देर रात चैतन्य हॉस्पिटल ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया, जिससे आक्रोशित परिजनों ने जनकल्याण आई हॉस्पिटल पहुंचकर जमकर हंगामा किया। इसके बाद डॉक्टर और पूरा स्टाफ अस्पताल बंद करके भाग गया। परिजनों ने गाजीपुर थाने में डॉक्टर के खिलाफ शिकायत दी। बच्चे का परिवार पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचा। पढ़ें पूरी खबर…