ये 7 जुलाई की तस्वीर है, जब आरोपियों ने साथियों के साथ मिलकर पीड़िता के भाई के साथ मारपीट की थी।
राजधानी की पॉश मिनॉल रेसीडेंसी में किराए से रहने वाली युवती और उसका भाई गुंडों के डर से अपने घर नहीं जा रहे हैं। वे अपने परिचित के मकान में आसरा लिए हुए हैं। वजह ये है कि जिन आरोपियों ने आधी रात को घुसकर युवती को खींचने की कोशिश की थी, उन्हें 4 घंटे
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दैनिक भास्कर संवाददाता ने पीड़िता से संपर्क किया तो उसने कहा- अब जब वो गुंडे खुले घूम रहे हैं तो हम उस मकान में कैसे लौट जाएं? हमारी जान की क्या गारंटी? उसने उलटा सवाल पूछा कि क्या मेरे साथ रेप हो जाता, तब पुलिस एक्शन लेती? पीड़िता का आरोप है कि पुलिस आरोपियों को बचाने का काम कर रही है। यदि ऐसा नहीं तो फिर क्या वजह है कि उन्हें चंद घंटों में जमानत मिल गई?
भास्कर ने पीड़ित लड़की के इस सवाल का जवाब जानने के लिए कानून के जानकारों से बात की। समझा कि क्या वाकई में पुलिस ने इस केस को बेहद कमजोर कर दिया? या पुलिस नए कानून को समझ ही नहीं पाई? आखिर क्या वजह रही कि आरोपियों को इतनी जल्दी जमानत मिल गई?
जानकारों का कहना है कि पुलिस ने इस केस को गंभीरता से नहीं लिया। पुलिस चाहती तो आरोपियों की जमानत रोक सकती थी। पढ़िए क्या है पीड़िता के आरोप और क्या कहते हैं जानकार…
पहले जानिए पीड़िता क्यों कह रही मेरे साथ रेप होता क्या तब एक्शन होता?
दरअसल, पीड़िता का कहना है कि मीनाल रेसीडेंसी के जिस फ्लैट में वह रहती है। वहां आरोपी और उसके दोस्त शराब पीकर हंगामा करते रहे हैं। उनकी यही हरकतें अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों को परेशान करती थी। पीड़िता के मुताबिक उसकी एक कजिन ने तो महीने भर पहले फ्लैट खाली कर दिया था।
एक और फ्लैट में रहने वाली महिला भी इन लड़कों के बर्ताव को लेकर परेशान थीं, उन्होंने भी मकान छोड़ दिया। पीड़िता ने बताया कि इन लड़कों की हरकतों की वजह से मैं रात में दरवाजा खोल कर डस्टबीन में कचरा डालने से भी डरती थी। लड़के आए दिन कमेंट्स करते थे, जिससे हम सभी लोग तंक आ चुके थे।
वो बताती है कि 7 जुलाई को उन्होंने हद कर दी। वे मेरे घर में घुसकर मुझे खींचने लगे। इतना सब होने के बाद जब मैंने और मेरे भाई ने विरोध किया तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर मेरे भाई को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। सुरक्षा गार्ड और बाकी लोग केवल देखते रहे। डायल 100 को बुलाया तो पुलिस वालों ने हमें थाने जाने की सलाह दी।
7 जुलाई को रात 1 बजे दोनों आरोपी इस तरह से युवती के कमरे में दाखिल हुए थे और उसके साथ छेड़छाड़ की थी।
कोर्ट में लड़के हंसी-ठिठोली करते रहे, मेरा तो पुलिस से भरोसा उठा
पीड़िता ने बताया कि हम रात 1 बजे थाने पहुंचे, तो एफआईआर कराने के बाद अगले दिन सुबह 8 बजे घर पहुंचे। एक घंटे आराम करने के बाद हम फिर कोर्ट पहुंचे। वहां शाम तक रहे। मगर क्या हुआ… उन्हें तो चंद घंटों में ही जमानत मिल गई।
पीड़िता ने कहा कि कोर्ट में वो लड़के बैठकर हंसी ठिठोली कर रहे थे। वो तो हमें पहले ही धमकी दे चुके थे कि तुम कहां जाओगे हमसे बचकर। पुलिस तो उन लड़कों के साथ जाकर खड़ी हो गई। उनके दो दोस्त जिन्होंने मेरे भाई से मारपीट की थी, वो भी कोर्ट में घूम रहे थे। पुलिस ने उन पर भी कोई एक्शन नहीं लिया।
पीड़िता ने कहा कि मैंने पुलिस को दावे के साथ कहा कि उन्होंने शराब पी थी, लेकिन जब हमने एफआईआर देखी तो उसमें शराब पीने वाली बात का जिक्र ही नहीं था। पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में भी बहुत समय बर्बाद किया। अगर पुलिस अपना काम ईमानदारी से करती तो आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाती।
अब मैं डरी सहमी हूं, लेकिन वे अपराध करके भी खुलेआम घूम रहे हैं। मेरा तो पुलिस से भरोसा उठ गया है। अब उनके डर की वजह से हमें अपने परिचित के घर जाकर रहना पड़ रहा है।
क्या पुलिस ने लापरवाही बरती, क्या बोले एक्सपर्ट?
भास्कर ने इस मामले में कानून के जानकारों से बात की। उनसे पूछा कि पुलिस ने केस में कोई लापरवाही बरती है क्या? एडवोकेट सूर्यकांत बुजादे ने कहा कि अब मामले आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराओं में दर्ज किए जा रहे हैं।
मगर बीएनएस में महिला अपराधों को लेकर कुछ अलग प्रावधान नहीं किए गए हैं। कुछ मामलों में तो धाराएं कम कर दी गई हैं। उदाहरण बताते हुए वे कहते हैं कि अगर कोई किसी महिला का पीछा करता है तो आईपीसी की धारा 354 डी में कड़ी कार्रवाई के प्रावधान थे। उसे कैटेगराइज भी किया गया था, लेकिन बीएनएस में कैटेगरी की बजाय सिर्फ 5 साल की सजा का प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में आरोपियों ने आधी रात में घर में जबरन घुसकर छेड़छाड़ का प्रयास किया। पीड़िता का ये भी कहना है कि आरोपी उस पर कुछ दिनों से गलत कमेंट और इशारे कर रहे थे। पुलिस ने जिन धाराओं में केस दर्ज किया उन धाराओं में इस केस को बेहद सामान्य तरीके से हैंडल किया।
वे कहते हैं कि पुलिस का ये रवैया जानबूझकर या फिर असंवेदनशील हो सकता है। जिसकी वजह से आरोपियों को कुछ घंटे में जमानत मिल गई। पुलिस ने बिना इंटेरोगेशन और पुख्ता सबूत के आरोपियों को गिरफ्तार किया और कोर्ट में पेश किया। वहां से उन्हें जमानत मिल गई। इससे संदेह तो पैदा होता है।
पुलिस ने आरोपी अभिनव और शुभम को 8 अगस्त को गिरफ्तार किया। तत्काल बाद कोर्ट में भी पेश किया और चंद घंटे में वे जमानत पर रिहा हो गए।
क्या पुलिस इस केस में आरोपियों की जमानत को रोक सकती थी?
इस सवाल का जवाब देते हुए एडवोकेट सूर्यकांत बुजादे कहते हैं कि यदि पुलिस इस केस में गंभीर होती तो सरकारी वकील की मदद से कोर्ट में जमानत के खिलाफ अपील कर सकती थी। साथ ही पुलिस का कर्तव्य भी बनता था कि वह फरियादी पक्ष को यह सलाह दें कि वे अपराधियों की जमानत के खिलाफ कोर्ट में कार्रवाई करें।
जब भी कोर्ट में किसी की जमानत के खिलाफ कोई ऑब्जेक्शन फाइल किया जाता है तो कोर्ट उसे बहुत गंभीरता से लेता है। कोर्ट, फरियादी पक्ष से ऑब्जेक्शन के खिलाफ कोई सबूत नहीं मांगती, बस साधारण से सवाल पूछती है।
बहुत से ऐसे केस होते हैं, जिनमें बहुत आसानी से जमानत मिल जाती है, लेकिन पुलिस या फरियादी में से किसी एक की तरफ से ऑब्जेक्शन उठाने पर जमानत तुरंत खारिज हो जाती है। इसके बारे में आम लोगों काे ज्यादा नहीं पता होता, इसलिए यह पुलिस का फर्ज है कि वे पीड़िता को इसके बारे में बताएं।
पुलिस को ये सब बातें ट्रेनिंग में भी सिखाई जाती हैं। पुलिस ने इस केस में इन सब बातों को ओवरलुक किया।
इसी केस को IPC के आधार पर दर्ज किया जाता तो केस पर क्या प्रभाव पड़ता?
महिला अपराध के मामलों को देखने वाली एडवोकेट भारती ने केस एफआईआर देखी फिर बोलीं- केस में बीएनएस की धारा 74, 333, 296, 115(2) और 3(5) लगी हुई है। ये सारी धाराएं इस पूरे प्रकरण को एकदम साधारण बना देती हैं। पीड़िता के अनुसार घटना के वक्त अपराधियों ने शराब पी रखी थी।
इस बात को एफआईआर में छिपाया गया। बिना महिला की इजाजत के पुलिस भी किसी महिला के घर में शाम 6 बजे बाद नहीं जा सकती। लेकिन इस केस में तो अपराधियों ने शराब पीकर घर में घुसकर छेड़खानी और मारपीट करने की कोशिश की। एफआईआर पढ़ने पर यही समझ आ रहा है कि पुलिस ने कहीं न कहीं असंवेदनशील रवैया अपनाया है।