नई दिल्ली: भारत ने साफ संकेत दिया है कि उसे निवेश के नाम पर चीन की फूटी कौड़ी नहीं चाहिए। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बारे में बड़ी बात कही है। उन्होंने इस बात पर बल दिया है कि भारत आर्थिक उदारीकरण की दिशा में अपनी राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल सकता। भारत का चीन के निवेश से मुंह फेरने का आखिर क्या कारण है? आइए, यहां समझते हैं।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि आज हर देश को राष्ट्रीय सुरक्षा के अनुरूप संवेदनशील क्षेत्रों का प्रबंधन करने का अधिकार है। उन्होंने खुली अर्थव्यवस्था के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते से इनकार किया। खासकर तब जब क्षेत्रीय दावे करने वाले देश (चीन) के साथ व्यवहार करना हो। उन्होंने कहा है कि हमारी आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों दांव पर हैं। जयशंकर ने भारतीय उत्पादकों, खासकर लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों (एसएमई) के साथ कार्यबल और कामकाजी वर्ग की चिंताओं की रक्षा के महत्व पर बल दिया।
किस तरह की हैं चिंंताएं?
भारत को चीन के निवेश को लेकर कई तरह चिंताएं हैं। सबसे पहली चिंता सुरक्षा खतरे की है। चीन के निवेश का इस्तेमाल रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने के लिए किया जा सकता है। मसलन, चीन ने भारत के बंदरगाहों, टेलीकॉम और बिजली ग्रिड जैसी महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में निवेश किया है। कुछ लोगों का मानना है कि इसका इस्तेमाल चीन भारत की जासूसी या महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को बाधित करने के लिए कर सकता है।
दूसरा आर्थिक खतरा है। भारत को यह भी चिंता है कि चीन के निवेश से भारतीय कंपनियों के लिए अनुचित प्रतिस्पर्धा पैदा हो सकती है। चीन की कंपनियां अक्सर सरकारी सब्सिडी और कम कर्ज दरों का लाभ उठाती हैं। इससे उन्हें भारतीय बाजार में कम कीमत पर उत्पादों और सेवाओं की पेशकश करने में मदद मिलती है। इससे भारतीय कंपनियों के लिए मुनाफा कमाना और जीवित रहना मुश्किल हो सकता है।
नौकरियों और राजनीतिक व्यवस्था की भी टेंशन
कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि चीन के निवेश से भारत में नौकरियों को नुकसान हो सकता है। चीन की कंपनियां अक्सर कम वेतन वाले श्रमिकों को नियुक्त करती हैं। इससे भारतीय श्रमिकों के लिए रोजगार ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
चौथी चिंता टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर है। चीन के निवेश से महत्वपूर्ण तकनीक चीन में ट्रांसफर हो सकती है। इससे भारत को तकनीकी रूप से चीन पर निर्भर बनाया जा सकता है। इससे उसकी सौदेबाजी की शक्ति कमजोर हो सकती है।
चीन के निवेश का इस्तेमाल भारत की राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है। चीन की कंपनियां भारतीय मीडिया और राजनीतिक दलों को दान दे सकती हैं। इससे उनकी नीतियां प्रभावित हो सकती हैं।