लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर और एनकाउंटर पर राजनीति दोनों का इतिहास नया नहीं है। वर्ष 1980 में भी इस प्रकार के मामले सामने आए थे। उस समय प्रदेश में डाकुओं के बढ़ते प्रभाव पर नियंत्रण के लिए तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने एक्शन शुरू किया था। बेहमई नरसंहार के बाद यूपी में राजनीति गरमाई थी। प्रदेश की सरकार पर डाकुओं के वर्चस्व का आरोप लगा था। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने यूपी पुलिस को डाकुओं के एनकाउंटर का आदेश दिया। 2 साल और 39 दिन के भीतर 1000 से अधिक डाकुओं का एनकाउंटर कर दिया गया। तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि पांच साल तक भी डाकुओं के पीछे यूपी पुलिस को लगाए रखेंगे।
गरमाती रही है राजनीति
यूपी में एनकाउंटर के बाद 1980 के दशक में भी राजनीतिक खूब गरमाई थी। विपक्ष के नेता मुलायम सिंह यादव से लेकर मोहन सिंह तक ने एनकाउंटर को सवालों के घेरे में ला दिया था। अभी सुल्तानपुर आभूषण डकैती कांड के बाद हुए एनकाउंटर पर इसी प्रकार के सवाल उठाए जा रहे हैं। योगी सरकार ने माफिया और अपराधियों के खिलाफ एनकाउंटर नीति अपनाई है। इसको लेकर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर राहुल गांधी और मायावती तक सवाल उठाते दिख रहे हैं।
वीपी सिंह के कार्यकाल में खूब एनकाउंटर
विश्वनाथ प्रताप सिंह के दो साल 39 दिन के कार्यकाल में 1000 से अधिक एनकाउंटर हुए थे। उस समय लोकदल के नेता रहे मुलायम सिंह यादव और मोहन सिंह ने सरकार पर फर्जी मुठभेड़ कराने का आरोप लगाया था। दरअसल, प्रदेश में 1975 से लेकर 1985 के बीच प्रदेश के कई जिलों में डाकुओं ने आतंक मचाया हुआ था।
वीपी सिंह ने 9 जून 1980 को यूपी के सीएम का पद संभाला। सीएम बनने के कुछ सप्ताह बाद ही सीएम सिंह ने डकैतों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। अमूमन एक दिन के अंतराल पर एनकाउंटर की खबरें सुर्खियों में बनने लगी।
बेहमई नरसंहार से हुए खफा
वीपी सिंह को मुख्यमंत्री बने एक साल भी नहीं बीता और कानपुर के बेहमई में डकैत फूलन देवी ने 14 फरवरी 1981 को एक बड़े नरसंहार को अंजाम दिया। 20 ठाकुरों की हत्या कर दी गई। इस नरसंहार में फूलन देवी के साथ मुस्तकीम, राम प्रकाश और लल्लू समेत 25 डकैत शामिल थे। वीपी सिंह ने सभी डकैतों को खत्म करने का आदेश दिया। इसके बाद यूपी पुलिस ने खूब एनकाउंटर किया।
सरेंडर पर नहीं था जोर
वीपी सिंह सरकार ने डाकुओं के खात्मे पर जोर दिया। सीएम सिंह लोगों के भीतर से डाकू बनने पर मौत का खौफ भरने की कोशिश में थी। यही वजह रही कि यूपी पुलिस लगातार एक्शन मोड में रही। उस दौरान वीपी सिंह ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा था कि सरकार डाकुओं का सरेंडर कराने का कोई प्रयास नहीं करेगी। डाकुओं के खिलाफ पूरी ताकत के साथ अभियान जारी रहेगा। डकैत फूलन देवी ने बाद में मध्य प्रदेश में सरेंडर किया।
मुलायम ने उठाए थे सवाल
लोकदल के नेता मुलायम सिंह यादव ने वीपी सिंह सरकार की ओर से डाकुओं के खिलाफ होने वाली एनकाउंटर कार्रवाई पर सवाल उठाया था। उन्होंने इस पूरे मामले को जाति के एंगल से हमला बोला। लोकदल ने वीपी सिंह की ठाकुर (राजपूत) जाति की ओर इशारा करते हुए एक ही जाति के अफसरों को तैनात करने का आरोप लगाया था।
लोकदल का आरोप था कि प्रशासन को जातीय आधार पर बांटने की कोशिश हो रही है। तब बीपी सिंह का बयान आया था कि इंसान के खून की कोई जाति नहीं होती है। मुलायम ने उस समय राज्यपाल के 418 लोगों की लिस्ट सौंपकर सरकार पर फर्जी एनकाउंटर कराने का आरोप लगाया था।
योगी सरकार में भी एनकाउंटर
योगी आदित्यनाथ सरकार के बनने के साथ ही यूपी में एनकाउंटर का दौर शुरू हुआ। 20 मार्च 2017 से 5 सितंबर 2024 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी पुलिस ने 12,964 एनकाउंटर किए। इस दौरान 207 संदिग्ध आरोपियों की मौत हो गई। एनकाउंटर के बाद 27,117 गिरफ्तार किए गए। इन मुठभेड़ों के दौरान 1601 संदिग्ध आरोपी घायल भी हुए हैं। 5 सितंबर के बाद भी कई एनकाउंटर हुए हैं। 75 हजार से 5 लाख रुपये तक इनाम वाले बदमाशों का एनकाउंटर हुआ है।
सुल्तानपुर डकैती केस में ही एक अन्य आरोपी अनुज प्रताप सिंह का एनकाउंटर हुआ। इसके अलावा गाजीपुर में एक लाख के इनामी जाहिद उर्फ सोनू का एनकाउंटर हुआ है। योगी सरकार के दौरान औसतन हर 13वें दिन एक लिस्टेड संदिग्ध आरोपी मुठभेड़ में मारा गया है। इन एनकाउंटर्स में 1601 पुलिसकर्मी घायल हुए और 17 शहीद हो गए।