Saturday, November 30, 2024
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Home नीतीश के जमीन सर्वे प्रोजेक्ट में PK ने खोजा ‘ताबूत की आखिरी कील’, बिहार में भूमि सर्वेक्षण का सॉल्यूशन भी बताया

नीतीश के जमीन सर्वे प्रोजेक्ट में PK ने खोजा ‘ताबूत की आखिरी कील’, बिहार में भूमि सर्वेक्षण का सॉल्यूशन भी बताया

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कैमूर: चुनाव रणनीतिकार से नेता बनने की राह पर निकले प्रशांत किशोर ने बिहार सरकार की ओर से कराए जा रहे भूमि सर्वेक्षण पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पीके का दावा है कि इस सर्वेक्षण से भारी विवाद और मुकदमेबाजी होगी, जिससे राज्य में अशांति फैलेगी। उनका मानना है कि ये सर्वेक्षण नीतीश कुमार सरकार के लिए ‘आखिरी कील’ साबित होगा। प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में पहले से ही एक तिहाई जमीन विवादित है और इस सर्वेक्षण के बाद ये आंकड़ा दो तिहाई तक पहुंच सकता है।

‘जेडीयू के लोगों को दौड़ा-दौड़ा के गांव वाले मारेंगे’

पीके ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘बोतल से जिन्न निकाला जा रहा है लेकिन सरकार को पता नहीं है कि उसको वापस बोतल में डालेंगे कैसे। नीतीश कुमार को पता ही नहीं है कि ये ऐसा जिन्न है जो खत्म नहीं होगा।’ उन्होंने आगे कहा कि इस सर्वेक्षण से परिवारों में झगड़े, मुकदमे और हिंसा बढ़ेगी। पीके का मानना है कि भूमि को लेकर बिहार के लोग बहुत संवेदनशील हैं और जदयू नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

प्रशांत किशोर ने कहा, ‘जैसे ही विवाद खड़ा होगा तो जेडीयू के लोगों को दौड़ा-दौड़ा के गांव वाले मारेंगे। ज्यादातर लोगों की जमीन में विवाद होना तय है। नीतीश कुमार ने भूमि सुधार के लिए 18 साल में कोई प्रयास नहीं किए, वो अंतिम घड़ी में बड़ा बखेड़ा शुरू कर दिए हैं। ये उनके ताबूत में आखिरी कील होगा। समाज के लिए परेशानी होगी लेकिन हमारे कहने से रोकेंगे नहीं।’

‘बुआ के बच्चे साइन नहीं करेंगे, वंशावली कभी बनेगी ही नहीं’

वंशावली को लेकर भी पीके ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 20-30 साल से जिन जमीनों का बंटवारा नहीं हुआ है, उनकी वंशावली बनाना मुश्किल होगा। कई मामलों में तो बुआ या अन्य रिश्तेदारों की मृत्यु हो चुकी होगी और उनके वारिसों से सहमति लेना आसान नहीं होगा। पीके ने कहा, ‘बुआ के बच्चे साइन नहीं करेंगे, वंशावली कभी बनेगी ही नहीं।’ उन्होंने कहा कि बेटियों को कानूनी तौर पर जमीन का अधिकार नहीं दिया गया है, जिससे और भी मुश्किलें आएंगी।

उन्होंने कहा, ‘बेटियों को हमने कानूनी रूप से जमीन दिया ही नहीं। बेटियों ने मांगा भी नहीं। 40-50 साल में जमीन का भाव पांच हदार से पांच करोड़ हो गया। बेटी है नहीं। अब दूसरी-तीसरी पीढ़ी साइन नहीं करेगी। वंशावली कभी बनेगी ही नहीं। सारे जमीन और विवाद में चले जाएंगे।’ पीके के मुताबिक इस समस्या का समाधान 1918 की तर्ज पर नए सिरे से सर्वेक्षण कराना है, जिसमें मालिकाना हक स्पष्ट रूप से तय हो। उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा व्यवस्था में भ्रष्टाचार व्याप्त है और अफसर पैसे कमाने के लिए इस सर्वेक्षण का इस्तेमाल कर रहे हैं।

‘भ्रष्ट तंत्र में सीओ, डीसीएलआर सब पैसा ले रहा है’

पीके ने कहा, ‘भ्रष्ट तंत्र में सीओ, डीसीएलआर सब पैसा ले रहा है। भाई का जमीन बहन पर, बहन का जमीन भाई पर चढ़ रहा है।’ उन्होंने कहा कि इस सर्वेक्षण से पहले डिजिटाइजेशन के नाम पर भी गड़बड़ी हुई थी और जमीन के आंकड़े गलत हो गए थे। राजस्व विभाग की जो यहां व्यवस्था है उसमें रजिस्टर 2 का एक ही कॉपी है, सेकेंड रिकॉर्ड है ही नहीं। कर्मचारी आपके रजिस्टर 2 पर इंक गिरा देगा तो विवाद हो जाएगा। पीके का मानना है कि भूमि सुधार के लिए अंग्रेजों के समय हुए पहले सर्वेक्षण से सीख लेनी होगी।

उन्होंने कहा, ‘बिहार में भूमि सुधार के लिए अंग्रेजों ने जो पहली बार मापी कराई थी, उससे शुरुआत करनी होगी, तब ये जमीन का मामला सुलझेगा। कम से कम तीन से पांच साल का प्रयास होना चाहिए। चुनाव से पहले इसे खोलकर बखेड़ा खड़ा कर दिया गया है। लोग दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु से बिहार आ रहे हैं और इस सर्वेक्षण से उनके लिए भी परेशानियां खड़ी हो रही है।’

सुनील पाण्डेय

लेखक के बारे में

सुनील पाण्डेय

सुनील पाण्डेय इस समय nbt.in के साथ Principal Digital Content Producer तौर पर जुड़े हुए हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 16 वर्षों का अनुभव है। ETV News, Zee Media, News18 सहित कई संस्थानों में अहम पद पर रहे। ग्राउंड और रिसर्च स्टोरी पर रिपोर्टिंग में माहिर माने जाते हैं। राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर खासी पकड़ रखते हैं। TV News के लिए शो बनाने में ​एक्सपर्ट सुनील को डिजिटल माध्यम में दिलचस्पी और सीखने की प्रबल इच्छा इन्हें नवभारत ​टाइम्स डिजिटल तक खींच लाई।… और पढ़ें

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