Tuesday, February 25, 2025
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Home ‘कहे तो से सजना’, जब ससुराल में हुआ शारदा सिन्हा के गायन का विरोध, पति और सास ने दिया साथ

‘कहे तो से सजना’, जब ससुराल में हुआ शारदा सिन्हा के गायन का विरोध, पति और सास ने दिया साथ

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पटना: ‘आप सब की प्रार्थना और प्यार हमेशा मां के साथ रहेंगे. मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया है। मां अब शारीरिक रूप में हम सब के बीच नहीं रहीं।’ स्वर कोकिला शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा के एक्स पर किए गए इस पोस्ट ने सबको शोक से भर दिया। पद्म भूषण और पद्मश्री से सम्मानित लोक गायिका शारदा सिन्हा ने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली। वे पिछले कई दिनों से एम्स में भर्ती थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अंशुमान सिन्हा को फोन कर धैर्य रखने की बात कही थी। उन्होंने शारदा सिन्हा के हेल्थ की जानकारी ली थी।

दिल्ली में शारदा सिन्हा का निधन

शारदा सिन्हा के पति डॉ. बृज किशोर सिन्हा का निधन ब्रेन हेमरेज की वजह से अभी डेढ़ महीने पहले हुआ था। पति के निधन के बाद से शारदा सिन्हा बेहद उदास चल रही थीं। उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ था। हाल में उनके बेटे अंशुमान सिन्हा ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर उनके हेल्थ से जुड़ा अपडेट साझा किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शारदा सिन्हा 2018 से कई तरह की स्वास्थ्य समस्या से जूझ रही थीं। उन्हें ब्लड कैंसर भी था। शारदा सिन्हा ने लोकगीतों के अलावा फिल्मी गीतों में भी अपना जलवा बिखेरा था। कुछ साल पहले अनुराग कश्यप की चर्चित फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के लिए भी उन्होंने गीत रिकॉर्ड किया था।

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छठ गीत से हुईं पॉपुलर

लोक आस्था के महापर्व छठ के दौरान शारदा सिन्हा के गीत गली मोहल्ले और छठ घाटों पर भी गूंजते हैं। हर घर में शारदा सिन्हा के छठ गीत जरूर बजाए जाते हैं। शारदा सिन्हा का जन्म 01 अक्टूबर, 1952 को बिहार के हुलास, राघोपुर, सुपौल जिला बिहार में हुआ था। उनका ससुराल बेगूसराय जिले के सिहमा गांव में है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत मैथिली लोक गीत गाकर की थी। उन्हें वर्ष 2018 में पद्म भूषण और 1991 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था। शारदा सिन्हा को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिला था।

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लोक गीतों से मिली प्रसिद्धि

शारदा सिन्हा ने मैथिली, भोजपुरी के अलावे हिन्दी गीत गाए हैं। मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन और गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्मों में इनके गाये गीत काफी प्रचलित हुए। इनके गाये गीतों के संग्रह आज भी काफी प्रसिद्ध हैं। उन्हें अब डिजिटल रूप में लोग सुनते हैं। पर्व त्यौहार और छठ महापर्व के मौके पर उनके गाने चारों तरफ बजाए जाते हैं। विवाह-समारोह और अन्य संगीत समारोहों में शारदा सिन्हा के गाये गीत अक्सर सुनाई देते हैं। शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत 1970 के दशक से की थी। उन्होंने भोजपुरी, मैथिली और हिंदी में कई गाने रिकॉर्ड किए। उनकी गीतों में हमेशा महिलाओं के साथ बेरोजगारों के पलायन को जगह मिलती रही।

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पिता ने की मदद

शारदा सिन्हा ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू को 2018 में दिए अपने इंटरव्यू में कई अनसुनी बातों को शेयर किया था। उन्होंने कहा था कि उनके घर में पिता- भाई बहन उन्हें पूरी छूट देते थे। उनके पिता शिक्षा विभाग में थे। हमेशा कहते थे कि जो जी में आए करो। तुम्हें जो पसंद है, वहीं करो। उन्होंने आगे बताया था कि पिताजी का तबादला होता रहता था। हम लोग हमेशा छुट्टी गांव में गुजारते थे। मैंने गांव में लोकगीत सुने। उसके बाद उसमें मेरी रूचि पैदा हुई। उन्होंने अखबार को ये भी बताया था कि उन्होंने छठी कक्षा में ही पंडित रघु झा से संगीत सीखना शुरू कर दिया था। रघु झा पंचगछिया घराने के जाने- माने संगीतकार थे।

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घर में मिला माहौल

शारदा सिन्हा ने अपने साक्षात्कार में बताया था कि उन्हें शुरू में सरगम- पलटा और भजन गाने की ट्रेनिंग मिलती रही। उनके दूसरे गुरु रामचंद्र झा रहे, वो भी पंच गछिया घराने से ही थी। शारदा सिन्हा के पिता शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। इसलिए घर में काफी प्रोत्साहित करने वाला माहौल मिला। शारदा सिन्हा के पिता सुखदेव ठाकुर ने उन्हें नृत्य और संगीत की शिक्षा लेने को प्रेरित किया। शारदा सिन्हा ने शास्त्रीय संगीत भी सीखा। शारदा सिन्हा ने भक्ति गीतों के साथ फिल्मी गीत भी गाए। उनके गाए हुए मैंने प्यार किया के गीत- कहे तोसे सजना, तोहरी सजनिया आज भी सुपरहीट की श्रेणी में आता है।

शारदा सिन्हा की लोकप्रियता

शारदा सिन्हा की जब शादी हुई, तब उन्हें उनके ससुराल, बेगूसराय के सिहमा गांव में गायन का विरोध भी हुआ। उनके ससुराल वाले इस तरह गाने के पक्ष में नहीं थे। शारदा सिन्हा को गायन से दूर रहने के लिए भी कहा गया। शुरू में उन्हें अपने पति का साथ मिला। उसके बाद उनकी सास ने मदद की। शारदा सिन्हा उसके बाद लगातार लोक गीतों को गंवई शैली में गाती रहीं। उन्होंने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। शारदा सिन्हा के समकालीन कई लोक गायिकाएं आईं, लेकिन शारदा सिन्हा को जो पहचान मिली और घर- घर में शारदा सिन्हा ने जो प्रसिद्धि पाई, वो किसी को नसीब नहीं हुई।

आशुतोष कुमार पांडेय

लेखक के बारे में

आशुतोष कुमार पांडेय

प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता में 16 वर्षों से ज्यादा समय से सक्रिय. पॉलिटिकल साइंस और जर्नलिज्म में डिग्री. 2003 में जनसत्ता, हिंदुस्तान और दैनिक जागरण में लिखने की शुरुआत. ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय, प्रभात खबर डॉट कॉम और नेटवर्क 18 में काम. चार लोकसभा चुनाव और कई विधानसभा चुनावों में रिपोर्टिंग और डेस्क का काम. राजनीति, इतिहास, साहित्य, संगीत, रंगकर्म और लोक संस्कृति में दिलचस्पी.… और पढ़ें

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